जनजातियों को विलेन बनाकर ईसाइयों को पीड़ित दिखाने के पीछे की सच्चाई क्या है ?

जनजातियों पर आरोप लगाने वाले लोगों में इरफान इंजीनियर और जॉन दयाल जैसे लोग शामिल हैं। इरफान इंजीनियर वही व्यक्ति है, जो भारत में अल्पसंख्यक समूहों के ऊपर तथाकथित खतरे की बात करता आया है, और जिसने इस्लामिक आतंकी याकूब मेमन को माफी दिलाने के लिए राष्ट्रपति को लिखे पत्र में हस्ताक्षर भी किया था।

The Narrative World    31-Jan-2022   
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बीते एक सप्ताह से छत्तीसगढ़ के कोंडागांव से एक खबर आ रही है, जिसमें यह दावा किया जा रहा है कि स्थानों जनजातियों ने 'ईसाइयों' के साथ कथित रूप से मारपीट की है और भय का माहौल तैयार कर दिया है। इस मामले को लेकर अब कुछ तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिपोर्ट सामने आई है जिसमें कहा गया है कि 1000 से अधिक ईसाइयों को जबरन धर्म परिवर्तन करने का दबाव डाला जा रहा है, जिसे लेकर उनके साथ हिंसा भी की गई है।
 
इस रिपोर्ट को तथाकथित नागरिक अधिकार समूह सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेक्युलरिज़्म ने पीपुल्स फोरम, आल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फ़ॉर जस्टिस और यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के साथ मिलकर जारी किया है। रिपोर्ट की विश्वसनीयता और उसके पीछे की नीयत का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इसके पीछे इरफान इंजीनियर जैसे लोग शामिल हैं, जो सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेक्युलरिज़्म के निदेशक हैं।
 
इरफान इंजीनियर को समझने से पहले इस पूरी घटना को समझना आवश्यक है। दरअसल ईसाई मिशनरियों ने अंग्रेजों के शासन काल के दौरान उत्तर पूर्वी क्षेत्र में पूरी तरह से अपना जाल फैलाया और बड़ी संख्या में स्थानीय हिंदुओं का मतांतरण किया।
 
इसका परिणाम यह हुआ कि आज उत्तर पूर्व के राज्यों में ईसाइयों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी हुई है, और कुछ राज्यों में तो वो बहुसंख्यक आबादी हैं। इसके बाद ईसाई मिशनरियों ने दक्षिण भारत और मध्य भारत के क्षेत्र में अपना विस्तार किया।
 
मध्य भारत के क्षेत्र में उन्होंने उत्तर पूर्व की भांति जनजातियों को लक्षित कर अपना शिकार बनाया और बड़ी संख्या में उनका मतांतरण किया। बस्तर जैसी भूमि, जहां सहस्त्राब्दियों से वन्य परंपरा और रीतियाँ चली आ रही थी, वहां ईसाई मिशनरियों के आने के चलते ना सिर्फ जनजातियों की संस्कृति का ह्रास हुआ, बल्कि उनके अधिकारों को ईसाई समूह के द्वारा छीना जाने लगा।
 
ईसाई मतावलंबियों के द्वारा क्षेत्र में जनजातियों की आस्था, परंपरा, रीति, रूढ़ि और पर्व का उपहास उड़ाया जाने लगा, जिससे जनजाति समाज आहत भी हुआ और धीरे-धीरे अक्रोश भी फैलने लगा।
 
इन सब के बीच हाल ही के वर्षों में ईसाई मिशनरियों द्वारा जबरन मतांतरण, प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन और चर्च एवं प्रार्थना सभा में 'चमत्कार' के नाम पर ईसाई बनाने का खेल शुरू किया गया, जिसमें सबसे अधिक जनजाति समाज को ही निशाना बनाया गया।
 
अब एक ही गांव में जनजाति समाज के बीच मौजूद एक धर्मांतरित परिवार वनवासी संस्कृति और परंपरा को छोड़, चर्च जाने लगा और यीशु की आराधना करने लगा। जनजाति समाज को इससे भी कोई समस्या नहीं हुई, लेकिन जब इन मतांतरित समूहों ने जनजातियों की संस्कृति का उपहास उड़ाना आरंभ किया, तब दोनों समूहों में वैमनस्यता बढ़ने लगी।
 
स्थानीय जनजातियों का कहना है कि धर्म परिवर्तन कर चुके लोग जनजातियों के देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी करते हैं, इसके अलावा ग्राम के सामूहिक पूजन के दौरान उपहास उड़ाने का कार्य करते हैं।
 
कुछ ऐसी ही गतिविधियों के कारण कोंडागांव में पहले भी ईसाई समूह के विरुद्ध स्थानीय जनजातियों का गुस्सा फूटा था, जिसके बाद मतांतरण के विरोध में हजारों जनजातियों ने सड़क पर उतर कर अपना विरोध जताया था।
 
ईसाई बन चुके लोगों पर यह भी आरोप है कि वे गांव के अन्य सदस्यों को लगातार ईसाई बनने के लिए प्रलोभन देते रहते हैं, इसके लिए वो मुख्यतः परिवार की महिलाओं को अपना शिकार बनाते हैं। इसके अलावा जब किसी ईसाई परिवार में मृत्यु होती है, तो उसके शव का अंतिम संस्कार भी जनजाति रीति-रिवाज से जनजाति क्षेत्र में करने का प्रयास किया जाता है, जिससे जनजाति समाज की भावनाएं आहत होती हैं।
 
ईसाई कब्रिस्तान को छोड़कर जानबूझकर ऐसे स्थान चुने जाते हैं, जहां से तनाव पैदा किया जा सके। स्थानीय जनजातियों ने पूर्व में ऐसे कई मामलों को लेकर विरोध प्रकट किया है, वहीं कुछ मामलों में तो तनाव इतना बढ़ चुका था कि प्रशासन को आकार माहौल शांत कराने की आवश्यकता पड़ी थी।
 
दरअसल ईसाई समूह के द्वारा की जाने वाली ये तमाम गतिविधियां केवल बस्तर तक सीमित नहीं है, छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र से लेकर झारखंड और देश के अन्य जनजाति क्षेत्रों में भी ईसाई समूह इन्हीं हरकतों को अंजाम दे रहा है। सरगुजा से लेकर झारखंड के रांची तक जनजाति समाज के द्वारा ईसाइयों की इन अवैध गतिविधियों को लेकर विरोध प्रदर्शन देखे गए हैं।
 
अब बात करते हैं वर्तमान परिस्थितियों की, जिसमें कोंडागांव के जनजातियों पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उनकी हिंसा के चलते ईसाई समूह को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा है। कोंडागांव के अलावा नारायणपुर के जनजातियों पर भी ऐसे आरोप लगाए गए हैं।
 
जनजातियों पर आरोप लगाने वाले लोगों में इरफान इंजीनियर और जॉन दयाल जैसे लोग शामिल हैं। इरफान इंजीनियर वही व्यक्ति है, जो भारत में अल्पसंख्यक समूहों के ऊपर तथाकथित खतरे की बात करता आया है, और जिसने इस्लामिक आतंकी याकूब मेमन को माफी दिलाने के लिए राष्ट्रपति को लिखे पत्र में हस्ताक्षर भी किया था।
 
वहीं जॉन दयाल जैसे ईसाई कार्यकर्ता लंबे समय से विवादित टिप्पणी करते आए हैं और मिशनरी समूह के एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं। अब ऐसे लोग यदि किसी रिपोर्ट की बात करें तो यह स्पष्ट रूप से समझ आता है कि इनका पूर्वाग्रह ही इनके निष्कर्ष का हिस्सा है, जिसके तहत ये एजेंडाधारी समूह जनजातियों को बदनाम कर ईसाइयों की अवैध गतिविधियों पर पर्दा डालने का प्रयास कर रहा है।