तिब्बतियों के जीवन को नर्क बनाने का चीनी कम्युनिस्ट षड्यंत्र

चीनी मीडिया में सामने आई जानकारी के अनुसार यह डेटा सेंटर वर्ष 2017 में बनना आरंभ हुआ था, जिसे 3656 मीटर की ऊंचाई में बनाया गया है

The Narrative World    23-Nov-2022   
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tibbeten citizen 
 
तिब्बत, जिस पर चीन ने अवैध कब्जा कर रखा है, साथ ही तिब्बतियों के जीवन को नर्क से भी बुरी बना चुका है, अब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इन्हीं तिब्बतियों पर कड़ी निगरानी रखने के लिए नई रणनीति लेकर आई है। चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा में एक विशाल डेटा सेंटर आरंभ किया है, जहां वह तिब्बतियों के डेटा सैंपल को एकत्रित कर रहा है।
 
बीते 31 अक्टूबर को आरंभ हुए इस डेटा सेंटर को लेकर चीनी कम्युनिस्ट मीडिया का कहना है कि इस डेटा सेंटर का प्रमुख उद्देश्य क्षेत्रीय स्तर पर डेटा संग्रहण एवं एप्लिकेशन प्रसार है, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस डेटा सेंटर के माध्यम से चीनी कम्युनिस्ट सरकार अब स्थानीय तिब्बतियों के जीवन से जुड़ी तमाम गतिविधियों एवं अनुवांशिक परिस्थितियों पर भी कड़ी निगरानी रखेगी।
 
इस डेटा सेंटर को लेकर दुनियाभर के विशेषज्ञों एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसके आरंभ के साथ ही अब तिब्बत में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा पुलिसिंग एवं निगरानी बढ़ा दी जाएगी।
 
दरअसल ऐसी जानकारी भी सामने आई है कि चीनी कम्युनिस्ट प्रशासन ने इस डेटा सेंटर में तिब्बती नागरिकों के ब्लड सैंपल भी एकत्रित किए हैं, जिससे उनके अनुवांशिक लक्षणों एवं परिस्थितियों की भी जांच की जाएगी।
 
मिली जानकारी के अनुसार इस डेटा सेंटर को शंघाई एवं झेजियांग जैसे शहरों में पहले से स्थापित उच्च श्रेणी के डेटा सेंटर की भांति ही बनाया गया है, इसीलिए इस बात की आशंका जताई जा रही है कि इसका उपयोग चीन तिब्बती नागरिकों पर विशेष निगरानी के लिए करेगा, क्योंकि शंघाई, सिचुआन और झेजियांग के डेटा सेंटर का उपयोग भी चीन अपने नागरिकों की अवैध रूप से निगरानी के लिए करता है।
 
चीनी मीडिया में सामने आई जानकारी के अनुसार यह डेटा सेंटर वर्ष 2017 में बनना आरंभ हुआ था, जिसे 3656 मीटर की ऊंचाई में बनाया गया है। दरअसल तिब्बत में इस डेटा सेंटर के पीछे चीनी कम्युनिस्ट तानाशाह शी जिनपिंग की सोच को माना जा रहा है, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान तिब्बत क्षेत्र में कम्युनिस्ट प्रणाली को और अधिक कठोर किया हुआ है।
 
इस डेटा सेंटर को लेकर चीनी सरकारी मीडिया ने अलग-अलग समय में अलग-अलग बातें भी की हैं, जिसके चलते इस पर आशंका और अधिक बढ़ी हुई है। 2 वर्ष पूर्व जब यह डेटा सेंटर बनकर तैयार हुआ था तब चीनी सरकारी मीडिया ने इसे पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से जुड़े डेटा एकत्रित का माध्यम बताया था।
 
लेकिन वर्तमान में शिन्हुआ न्यूज़ (चीनी सरकारी मीडिया) का कहना है कि इस डेटा सेंटर का उद्देश्य सरकारी कामकाज, आर्थिक उन्नति, फाइनेंस, आपातकालीन अग्निशमन व्यवस्था, सीमावर्ती गतिविधियां समेत सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देना एवं उससे जुड़ी जानकारियों को एकत्रित करना है।
 
हालांकि दुनियाभर के मानवाधिकार विशेषज्ञ बार-बार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इस दावे को खारिज करते आ रहे हैं। इन विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के डेटा सेंटर से तिब्बतियों की निजी स्वतंत्रता भी लगभग समाप्त हो जाएगी।
 
इस डेटा सेंटर के आरंभ से होने से पूर्व ही चीनी कम्युनिस्ट प्रशासन द्वारा स्थानीय तिब्बतियों के रक्त नमूने लिए जा रहे थे। इस मामले का खुलासा करते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच ने सितंबर 2022 में एक जानकारी साझा करते हुए कहा था कि चीनी कम्युनिस्ट प्रशासन द्वारा तिब्बती नागरिकों के ब्लड सैंपल जबरन लिए जा रहे हैं, जिसका उद्देश्य केवल पुलिसिंग निगरानी को बढ़ाना है।संस्था ने बताया था कि इस दौरान तिब्बत के कई गांवों और कस्बों में मनमाने ढंग से डीएनए सैंपल लिए गए हैं।
 
चीनी कम्युनिस्ट प्रशासन द्वारा तिब्बतियों के डीएनए लेने की पुष्टि कुछ सरकारी रिपोर्ट के माध्यम से भी हुई है। दरअसल अप्रैल 2022 में ल्हासा नगर पालिका की एक रिपोर्ट जारी हुई थी जिसमें कहा गया था कि डीएनए जांच के लिए छोटे बच्चों (किंडरगार्टन के बच्चे) से लेकर स्थानीय बड़े लोगों के रक्त नमूने लिए जा रहे थे।
 
इसके पूर्व वर्ष 2020 में भी तिब्बत के किंगहाई नगर में 5 वर्ष से अधिक आयु के सभी लड़कों का ब्लड सैंपल लिया जा रहा था। ह्यूमन राइट्स वॉच में चीन मामलों की प्रमुख सोफी रिचर्ड्सन ने स्पष्ट रूप से इसे चीनी कम्युनिस्ट सरकार का दमन करार दिया है।
 
उन्होंने कहा है कि चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा पहले से ही तिब्बतियों का शोषण किया जा रहा हैज़ उनकी स्वतंत्रता छीनी जा रही है, वहीं अब उनपर निगरानी तंत्र को मजबूत करने के लिए जबरन उनके डीएनए सैंपल लिए जा रहे हैं।
 
टोरंटो विश्वविद्यालय से जुड़ी एक आनुवंशिकी विषय से संबंधित एक संस्था ने भी इस बात का दावा किया था कि चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा वर्ष 2016 के बाद से ही लगभग 10 से अधिक तिब्बतियों के ब्लड सैंपल लिए जा चुके हैं।
 
तिब्बतियों के जीवन को नर्क बनाने में तुला चीन
 
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि डेटा सेंटर द्वारा डीएनए सैंपल केवल तिब्बत के मूलनिवासियों का ही नहीं, बल्कि तिब्बत में अस्थायी रूप से निवास कर रहे नागरिकों का भी लिया जा रहा है। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि निवासियों को इस सैंपल को देने से इंकार करने की अनुमति नहीं है।
 
दरअसल चीन द्वारा की जा रही ये गतिविधियां केवल डेटा इकट्ठा करने तक सीमित नहीं है। मिली जानकारी के अनुसार चीनी कम्युनिस्ट प्रशासन द्वारा गर्भवती महिलाओं को प्रमुख रूप से केंद्रित कर उनके सैंपल लिए जा रहे हैं।
 
इसके अलावा एक रिपोर्ट ऐसी भी आई है कि चीनी कम्युनिस्ट सेना इन गर्भवती महिलाओं को जबरन ले जाकर उनके गुप्तांगों में एक इलेक्ट्रिक डिवाइस डालते हैं, जिसके माध्यम से अजन्में बच्चे को करंट का झटका दिया जाता है, जिससे उनका गर्भपात हो जाता है।
 
तिब्बती महिलाओं की इस दर्द भरी जिंदगी को सुनने वाला और देखने वाला कोई नहीं है, उन्हें चीनी कम्युनिस्ट सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति को झेलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। तिब्बती महिलाएं जो भारत में निर्वासित जिंदगी व्यतीत कर रहीं हैं, उन्होंने कई बार बताया है कि कैसे चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा तिब्बती महिलाओं के साथ जुल्म किए हैं।
 
इसके अलावा तिब्बत के छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों पर भी चीनी कम्युनिस्ट प्रशासन अत्यधिक सख्त है। तिब्बती मूल के लोगों की संख्या को कम करने से लेकर तिब्बती संस्कृति को खत्म करने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने कई तरह की रणनीतियों का इस्तेमाल किया है।
 
तिब्बती क्षेत्र में हान चीनियों को बसाकर उनकी संख्या बढ़ाई जा रही है, तिब्बती विद्यालयों में मंदारिन पढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। ल्हासा अब पूरी तरह चीनी सेना की।छावनी बन चुकी है और तिब्बतियों का जीवन पूरी तरह से नर्क।