भारत-चीन सीमा संघर्ष पर क्या कह रही है चीनी जनता ?

The Narrative World    16-Dec-2022   
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Sino India conflict 
 
भारत और चीन की सेना के बीच तवांग क्षेत्र में बीते सप्ताह हुई हिंसक झड़प की खबर अभी भी अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस हिंसक झड़प के तत्काल बाद अमेरिका का आक्रामक बयान भी सामने आया जिसमें अमेरिका ने भारत का स्पष्ट तौर पर समर्थन किया, वहीं जर्मनी के राजदूत ने भी भारत के पक्ष में बड़ा बयान दिया।
 
इन सब के बीच जिस तरह से इस हिंसक झड़प में भारतीय सेना ने चीनी कम्युनिस्ट सेना को धूल चटाई है, वह चीनी कम्युनिस्ट सरकार के लिए भी अप्रत्याशित था। कथित रूप से इस हिंसक झड़प से जुड़े एक वायरल वीडियो में यह साफ दिखाई दे रहा है कि भारतीय सेना ने चीनी सेना की जमकर 'खातिरदारी' की है।
 
भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना को ना सिर्फ करारा जवाब दिया, बल्कि उन्हें सीमा पार खदेड़ा भी। कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस झड़प में 300 के करीब चीनी सैनिक और 100 से कुछ अधिक भारतीय सैनिक शामिल थे।
 
एक चीनी भाषी मीडिया की रिपोर्ट में कहा गया कि इस हिंसक झड़प में 100 के करीब चीनी सैनिक घायल हुए थे और 12 चीनी सैनिकों को भारतीय सैनिकों ने पकड़ लिया था, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया।
 
वहीं भारत के भी 20 के करीब सैनिक इस हिंसक संघर्ष में घायल हुए थे। इस घटना को लेकर अब मीडिया से लेकर सोशल मीडिया में तमाम तरह के दावे किए जा रहे हैं।
 
दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुई इस घटना को लेकर जहां आधिकारिक बयान भी सामने आ चुके हैं, वहीं चीनी सोशल मीडिया में कुछ अलग नजारा देखने को मिल रहा है।
 
चीनी सोशल मीडिया में आम चीनी नागरिकों के इस घटना के बारे में विचारों को का विश्लेषण करते हुए एक मीडिया समूह ने रिपोर्ट प्रकाशित की है।
 
इंडिया टुडे द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तवांग में हुए इस हिंसक संघर्ष को लेकर चीनी मीडिया की रिपोर्टिंग बिल्कुल ही नगण्य है। इसके अलावा समाज में ना ही पारदर्शिता है और ना ही सरकार के प्रति कोई खास विश्वास है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी मीडिया ने तवांग की घटना को लगभग 'सेंसर' कर रखा है और विदेशी मीडिया के द्वारा की गई रिपोर्टिंग की चीनी सोशल मीडिया में भी कोई खास मौजूदगी नहीं है।
 
इन परिस्थितियों के कारण आम चीनी जनता अपने देश की सोशल मीडिया में यह प्रश्न उठा रही है कि आखिर उन्हें 'सीमावर्ती क्षेत्रों' संबंधित संवेदनशील जानकारियों के लिए हमेशा विदेशी मीडिया के भरोसे ही रहना पड़ता है।
 
इन सब के अलावा चीनी सोशल मीडिया में एक बात यह भी देखी गई कि आम चीनी जनता भारत के विरुद्ध किए जा रहे आक्रामक रवैये से नाखुश है। हालांकि चीनी कम्युनिस्ट सरकार की तानाशाही कुछ ऐसी है कि दुनिया के सबसे न्यूनतम पारदर्शी देशों में उसका नाम शामिल है, यही कारण है कि आम जनता को सही और वास्तविक जानकारी मिल ही नहीं पाती है।
 
हालांकि अब चीनी जनता इस विषय को लेकर जागरूक हो रही है, जिसके बाद चीनी सोशल मीडिया में भी आम जनता द्वारा चीन में पारदर्शिता को लेकर चर्चाएं की जा रही है।
 
भारत और चीन की सेना के बीच हुए संघर्ष की रिपोर्ट के विषय में एक चीनी पत्रकार हु शिजिन ने एक पोस्ट किया, जिसके बाद आम चीनी नागरिकों ने उस पत्रकार के साथ-साथ चीनी कम्युनिस्ट सरकार की भी इसलिए आलोचना की क्योंकि उनके द्वारा पूरी और वास्तविक जानकारी नहीं दी जा रही थी।
 
इससे पूर्व जून 2020 में गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष को भी याद कर चीनी जनता द्वारा सोशल मीडिया में नाराजगी जताई जा रही है।
 
भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए हिंसक संघर्ष के बाद भी यह देखा गया कि चीनी जनता सोशल मीडिया में 'सीमाई गतिविधियों' से अधिक 'आंतरिक मामलों' को लेकर अधिक चिंतित है।
 
दरअसल बीते कुछ समय से चीन में शून्य कोविड नीति, घटती आर्थिक रफ्तार, डूबती अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी के साथ-साथ कम्युनिस्ट तानाशाही के विरुद्ध जनता में आक्रोश है।
 
इस आक्रोश को प्रदर्शित करते हुए चीनी जनता ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शनों को अंजाम भी दिया था। ऐसे में यह भी माना जा सकता है कि चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने आम जनता का ध्यान भटकाने के लिए 'सीमावर्ती तनाव' को बढ़ाने का प्रयास किया हो, ताकि इस बहाने वह आंतरिक मामलों से जुड़े जनता के आक्रोश को धुंधला कर सके।
 
चीनी सोशल मीडिया में खुलकर इस बारे में लिखा भी जा रहा है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी 'शून्य कोविड नीति' और बढ़ते कोरोना के केस जैसे आंतरिक मामलों से ध्यान भटकाने की नीयत से ऐसे घटनाओं को अंजाम दे रही है।
 
इन सब के बीच मीडिया रिपोर्ट में चीनी सोशल मीडिया में चल रही कुछ 'कहानियां' भी शामिल की गई हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि चीन से जुड़ी घटनाओं में भारत का हाथ है।
 
हालांकि चीनी सोशल मीडिया में आम यूजर्स इस बात की भी चर्चा कर रहे हैं कि चीनी हैकरों के द्वारा भारत के पावर ग्रिड सिस्टम को अस्थिर करने का प्रयास भी किया गया था।
 
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थकों ने भारत के विरुद्ध इस तरह के हमलों को जारी रखने की इच्छा जताई है। इन सब के बीच चीनी कम्युनिस्ट सरकार के समर्थकों का भय भी सोशल मीडिया में दिखाई दे रहा है।
 
भारत के द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में की जा रही सैन्य तैयारियों, अभ्यासों एवं हथियारों और लड़ाकू विमानों के जमावड़े के बाद इसे भारत द्वारा युद्ध की तैयारी के रूप में पेश किया जा रहा है।
 
हालांकि इन सब के बीच स्पष्ट है कि चीनी सोशल मीडिया में भारत को लेकर जहां कम्युनिस्ट समर्थकों में डर है, वहीं आम चीनी जनता नहीं चाहती कि चीनी कम्युनिस्ट सरकार भारत के साथ किसी तरह के विवाद में पड़े, जनता आंतरिक परिस्थितियों को सुधारने की ओर अधिक ध्यान देना चाहती है।
 
वहीं, हम चीनी कम्युनिस्ट सरकार की बात करें तो यह भी दिखाई देता है कि चीन की यह सरकार ने सिर्फ भारत से बल्कि लगभग अपने सभी पड़ोसियों के साथ विवाद की स्थिति बनाए हुए है। जमीन से लेकर आसमान और पहाड़ों से लेकर समुद्र तक, चीन का किसी न किसी देश के साथ विवाद बना हुआ है।
 
तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान और इनर मंगोलिया पर कब्जा करना हो या मकाऊ जैसे क्षेत्र पर चीनी संस्कृति को जबरन शामिल करना हो। हांगकांग की स्वायत्तता खत्म करना हो, या 'एक चीन नीति' के नाम पर ताइवान को खत्म करने का प्रयास करना हो, चीन ने हर ओर अतिक्रमण किए हैं।
 
नेपाल, भारत, भूटान, जापान, वियतनाम जैसे देशों के साथ तो चीन का सीधा विवाद मौजूद है। इसके अलावा हाल ही में तालिबान और चीन के बीच भी विवाद सामने आ रहा है।
 
दरअसल चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा किए जा रहे इस अतिक्रमण की नीति के पीछे कम्युनिस्ट तानाशाह माओ ज़ेडोंग द्वारा दिया गया वह सिद्धान्त है जिसे चीन आज भी मानता आया है। पाम एंड फाइव फिंगर्स (हथेली और पांच उंगलियां) के इस सिद्धांत को माओ ज़ेडोंग ने दिया था।
 
इसमें हथेली का अर्थ है तिब्बत और पांच उंगलियों का अर्थ है अरुणाचल प्रदेश, भूटान, सिक्किम, नेपाल और लद्दाख। चीन इस पूरे हिमालयी क्षेत्र पर कब्जा जमाने के उद्देश्य से अपनी अतिक्रमणकारी गतिविधियों को अंजाम देता है, और बार-बार यह भांपने का प्रयास करता है कि उसके इस कदम का सम्बंधित क्षेत्र और वैश्विक राजनीति में कैसी प्रतिक्रिया है।