फिलीपींस में 'कम्युनिस्ट आतंक' स्थापित करने वाले जोस सिसोन की मौत, 65 हजार से अधिक लोगों की मौत का था परोक्ष रूप से जिम्मेदार

न्यू पीपल्स आर्मी अभी भी सक्रिय रूप से आतंकी गतिविधियों में शामिल है, जिसका एकमात्र उद्देश्य है कि फिलीपींस में माओवादी शासन की स्थापना की जाए। बीते 5 दशक से भी अधिक समय से चल रहा यह सशस्त्र विद्रोह वर्तमान में 64 हजार से अधिक लोगों की जान ले चुका है

The Narrative World    20-Dec-2022   
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communist in Philippines 
 
लगभग छः वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ से प्रकशित होने वाले वामपंथी झुकाव के एक समाचार पत्र समूह में एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसमें फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक का एक वक्तव्य लिखा गया था, जो कुछ इस प्रकार था - 'पेड़ खामोश होना चाहते हैं, मगर हवाएं हैं कि रुकती नहीं', इस लेख को देश विरोधी तत्वों का समर्थन करने वाले वामपंथी विचारक सुभाष गाताड़े ने लिखा था।
 
सुभाष गाताड़े का यह लेख बाद में विभिन्न वामपंथी मीडिया वेबसाइट में भी प्रकाशित हुआ था। इस लेख की आश्चर्यजनक बात यह थी कि इसमें फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक 'जोस मारिया सिसोन' को फिलीपीन का इंकलाबी (क्रांतिकारी) और कवि बताया गया था।
 
अब जिस सुभाष गाताड़े ने निवेदिता मेनन से लेकर कन्हैया कुमार के पक्ष में लेख लिखें हों और हिंदुत्व एवं हिंदुओं की तुलना आतंक से की हो, उसके पश्चात समझा जा सकता है कि उसके द्वारा जिसे 'इंकलाबी' कहा जा रहा है उसका व्यक्तित्व कैसा होगा।
 
दरअसल हम यहां बात कर रहे हैं फिलीपींस में माओवादी आतंक को जन्म देने वाले जोस मारिया सिसोन की, जिसकी बीते 16 दिसंबर को नीदरलैंड में मृत्यु हुई है।
 
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स की खबर के अनुसार बीते शुक्रवार को दो सप्ताह तक अस्पताल में रहने के बाद 83 वर्ष की आयु में फिलीपींस के इस माओवादी नेता की मौत हुई है।
 
दरअसल जिस सिसोन को भारत के कम्युनिस्ट क्रांतिकारी और कवि बताते फिर रहें हैं वह एक खूंखार आतंकी संगठन का संस्थापक और प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से 62,000 से अधिक लोगों की मौत का जिम्मेदार है।
 
अपने कम्युनिस्ट समूह में कॉमरेड जोमा (Ka Joma) के नाम से चर्चित जोस मारिया सिसोन ने मार्क्सवाद, लेनिनवाद के साथ माओवाद के विचार को शामिल कर वर्ष 1968 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ द फिलीपींस (फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टी) की स्थापना की थी।
 
सिसोन ने अपने विचार को 'नेशनल डेमोक्रेसी' नाम दिया था, हालांकि यह सर्वविदित है कि माओवाद और डेमोक्रेसी अर्थात लोकतंत्र कभी एक साथ दिखाई नहीं देते हैं।
 
हालांकि यह भी एक दिलचस्प पहलू है कि जिस कम्युनिस्ट नेता को अमेरिका ने वर्ष 2002 में ही 'आतंकवाद गतिविधियों को समर्थन' देने वाला व्यक्ति घोषित कर दिया था, उसे वर्ष 2006 में भारतीय वामपंथियों द्वारा 'क्रांतिकारी' कहा जा रहा था।
ख़ैर, बात करें सिसोन की तो उसका जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था। हाई स्कूल के दौरान सिसोन हुकबलाहप नामक वामपंथी आंदोलन एवं विचार से प्रभावित हुआ और 1960 के दशक में फिलिपिनो कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गया।
 
अपने वामपंथी दूषित विचारों को युवाओं तक फैलाने के लिए सिसोन ने वर्ष 1964 में एक युवा संगठन बनाया और गुप्त रूप से इस संगठन का कार्य करता रहा। हालांकि वर्ष 1972 में इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
 
इस संगठन के माध्यम से सिसोन ने वियतनाम युद्ध में अमेरिका से लेकर फिलीपींस की सरकार के विरुद्ध लड़ाके तैयार किए और यहीं से उसने गुरिल्ला युद्ध की कला सीखी।
 
दिसंबर 1968 में उसने फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की जिसमें बड़ी संख्या में युवाओं को शामिल किया। 1969 में माओवाद की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए सिसोन ने बर्नाबे (कमांडर डांटे) के साथ मिलकर सशस्त्र विद्रोह की शुरुआत की जिसके लिए उन्होंने अपनी सैन्य शाखा 'न्यू पीपल्स आर्मी' का गठन किया।
 
ठीक जिस प्रकार भारत में माओवादियों (नक्सलियों) ने गरीबों, किसानों, वंचितों और जनजातियों के कंधे में बंदूक तानकर हमला करना शुरू किया था, उसी प्रकार फिलीपींस के भी इस माओवादियों ने गरीबों, ग्रामीणों और किसानों को जमींदारों के विरुद्ध भड़काना शुरू किया और अपने सशस्त्र विद्रोह का आगाज किया।
 
न्यू पीपल्स आर्मी अभी भी सक्रिय रूप से आतंकी गतिविधियों में शामिल है, जिसका एकमात्र उद्देश्य है कि फिलीपींस में माओवादी शासन की स्थापना की जाए। बीते 5 दशक से भी अधिक समय से चल रहा यह सशस्त्र विद्रोह वर्तमान में 64 हजार से अधिक लोगों की जान ले चुका है।
 
कम्युनिस्ट विचार के नाम पर आतंक फैला रहे इस संगठन को फिलीपींस सहित अमेरिका, यूरोपीय संघ और न्यूजीलैंड के द्वारा आतंकी संगठन घोषित किया जा चुका है।
 
विभिन्न रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि अपने संगठन के सर्वोच्च स्तर पर न्यू पीपल्स पार्टी के 20 हजार से अधिक लड़ाके थे जो अब वर्तमान में लगभग 2000 के करीब हैं।
 
माओवादी आतंकी गुट की स्थापना करने वाले सिसोन और उसके संगठनों के द्वारा की जा रही आतंकी गतिविधियों के चलते सिसोन को 1977 में गिरफ्तार कर लिया गया था, जिसके बाद 9 वर्षों तक उसे जेल में बंद रखा गया।
 
1986 में मार्कोस की सत्ता से बेदखली के बाद उसे जेल से बाहर निकाला गया। इसके बाद से सिसोन यूरोप में निर्वासन की जिदंगी जीने लगा लेकिन उसके द्वारा बनाए गए संगठन का आतंक लगातार जारी रहा।
 
हालांकि वर्ष 2016 में तत्कालीन फिलिपिनो राष्ट्रपति रोड्रिगो दुटरते ने इस सशस्त्र विद्रोह को खत्म करने के लिए पहल की, लेकिन वार्ता के दौरान भी इन माओवादी आतंकियों के हमले लगातार जारी रहे।
 
न्यू पीपल्स आर्मी के आतंकी सिसोन के सिखाए रास्ते पर चलते हुए आम फिलीपीनी नागरिकों की हत्याएं करते रहे। जिसके बाद वर्ष 2017 में फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टी को आतंकी संगठन घोषित कर दिया।
 
जन युद्ध के नाम पर जिस तरह से फिलीपींस के कम्युनिस्ट विचारक सिसोन ने आतंकियों की पूरी फौज खड़ी की, उससे फिलीपींस में आज भी कई क्षेत्रों में अस्थिरता बनी हुई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि आगामी छुट्टियों के अवसर पर भी फिलीपींस में कम्युनिस्ट आतंकियों ने 'युद्धविराम' करने से इंकार कर दिया है।
 
इसके अलावा एनपीए ने खुलकर उन क्षेत्रों में रणनीतिक विरोध करने का आह्वान किया है जहां उद्योग एवं व्यापार स्थापित किए जा रहे हैं। खदान, विदेशी निवेश द्वारा स्थापित परियोजनाएं, बांध, सड़कें समेत उन तमाम योजनाओं का विरोध भी इस कम्युनिस्ट आतंकियों द्वारा किया जा रहा है।
 
यह ठीक वैसा ही है जैसा भारत माओवादी आतंकी (कम्युनिस्ट आतंकी) करते हैं, यही कारण है कि भारत में माओवादियों का परोक्ष रूप से समर्थन करने वाले लोग सिसोन जैसे आतंकी समर्थकों को 'इंकलाबी और कवि' कहते फिरते हैं, क्योंकि इन लोगों के लिए वामपंथ का विचार आम जनता की जान से अधिक महत्वपूर्ण है।