कांकेर में नक्सल हिंसा के कारण वीरान पड़ा गांव सुरक्षाबलों के कैंप के चलते हो रहा आबाद, वहीं ओडिशा में 907 माओवादी समर्थकों ने किया सरेंडर

इस घटना ने ग्रामीणों के भीतर ऐसा भय पैदा किया कि एक-एक कर सभी ने पलायन करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते गांव के 200 परिवार पंखाजूर में जाकर निवास करने लगे

The Narrative World    23-Dec-2022   
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माओवादियों के विरुद्ध चल रहे विभिन्न अभियानों के बीच दो ऐसी खबर सामने आई है जो ना सिर्फ माओवादियों को बैकफुट पर धकेलने का कार्य करेगी, बल्कि सुरक्षाबलों के मनोबल को बढ़ाएगी।
 
यह दो ख़बरें अति माओवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़ और ओडिशा से सामने आई हैं, जहां एक ओर माओवादियों के भय से 14 वर्ष पूर्व खाली हुआ छत्तीसगढ़ का एक गांव दोबारा बस रहा है, वहीं ओडिशा में 900 से अधिक माओवादियों/समर्थकों ने आत्मसमर्पण कर दिया है।
 
सबसे पहले यदि हम बात करें ओडिशा की तो मलकानगिरी में माओवादी गतिविधियों में संलिप्त कुल 907 लोगों ने सरेंडर किया है, जिसमें से 467 व्यक्ति सक्रिय रूप से माओवादी मिलिशिया के सदस्य हैं।
 
मलकानगिरी जिला पुलिस अधीक्षक ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वाले लोग आंध्रप्रदेश और ओडिशा की सीमा से लगे विभिन्न गांवों के निवासी हैं, जो माओवादियों से जुड़ी गतिविधियों में शामिल रहे हैं।
 
बीएसएफ और पुलिस के समक्ष सरेंडर करने के बाद इन आत्मसमर्पित माओवादियों ने अपनी 'नक्सली वर्दी' को आग के हवाले किया और सामूहिक रूप से माओवाद विरोधी नारे भी लगाए। इस दौरान बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों के साथ-साथ मीडियाकर्मी भी मौजूद थे।
 
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने माओवाद की विचारधारा को खोखला बताते हुए उसे विकास का विरोधी बताया। इस आत्मसमर्पण को लेकर जिला पुलिस अधीक्षक ने कहा कि सरकार द्वारा चलाई जा रहे विभिन्न विकास परियोजनाओं एवं सुरक्षाबलों की रणनीतिक तैनाती के चलते ही इन माओवादी समर्थकों ने मुख्यधारा से जुड़ने का फैसला किया है।
 
एसपी ने कहा कि अब जिले के अंदरूनी क्षेत्रों में भी नई सड़क, पुलिया, स्वास्थय व्यवस्थाएं, मोबाइल टॉवर, पेयजल की व्यवस्थाएं एवं बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता के कारण भी स्थानीय जनता और आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी समर्थकों का शासन-प्रशासन के प्रति विश्वास बढ़ा है।
छत्तीसगढ़ में नक्सल हिंसा के कारण वीरान पड़ा गांव हो रहा आबाद
लगभग 14 वर्ष पहले माओवादी आतंक के कारण कांकेर जिले का महला गांव पूरी तरह से वीरान हो गया था। गांव के अंदरूनी हिस्सों से लेकर सटे क्षेत्रों में माओवादियों के द्वारा आये दिन हिंसक वारदातों को अंजाम दिया जाता था।
 
स्थितियां ऐसी हो चुकी थी कि गांव के अधिकांश परिवारों को माओवादियों से जान से मारने की धमकी भी मिल चुकी थी। वर्ष 2008 के दौर में नक्सल आतंकियों ने इस गांव को अपना पनाहगाह बना लिया था, साथ गांव के बच्चों और युवाओं को माओवादी आतंकी संगठन में शामिल करने के लिए ग्रामीणों पर दबाव भी बनाने लगे थे।
 
विषम परिस्थितियों के बाद भी स्थानीय ग्रामीणों ने अपनी जन्मभूमि-कर्मभूमि को नहीं छोड़ा और आतंक के साएं में संघर्षरत जीवन जीते रहे। इन सब के बीच माओवादियों ने ग्रामीणों के भीतर भी को बढ़ाने के लिए ग्राम सरपंच की हत्या कर दी।
 
इस घटना ने ग्रामीणों के भीतर ऐसा भय पैदा किया कि एक-एक कर सभी ने पलायन करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते गांव के 200 परिवार पंखाजूर में जाकर निवास करने लगे।
 
हालांकि शासन ने ग्रामीणों की विपरीत परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें जीविकोपार्जन के लिए 3 डिसमिल जमीन आवंटित की थी, लेकिन जिन्होंने अपना घर, अपनी जमीन और अपनी जन्मभूमि को छोड़ा हो, उसकी मानसिक स्थित को समझना आसान नहीं है।
 
2008 से लेकर 2016 तक कोयलीबेड़ा का यह महला गांव बस्तर में माओवादियों के सबसे बड़े गढ़ में से एक था। वर्ष 2016 में सुरक्षाबलों की नई रणनीति के बाद क्षेत्र में एक बार फिर वनवासी ग्रामीणों की वापसी की किरण दिखाई दी।
 
नक्सलियों के इस गढ़ में रणनीति बनाकर बीएसएफ का सुरक्षा शिविर स्थापित किया गया, जिसके बाद माओवादियों की पैठ धीरे-धीरे इस क्षेत्र से खत्म होते गई।
 
सुरक्षा शिविर स्थापित होने के बाद क्षेत्र में ना सिर्फ हलचल बढ़ी बल्कि जिन परिवारों ने अपना घर-खेत छोड़कर पलायन किया था, वे भी वापस लौटने लगे। वर्तमान स्थिति अब इतनी सकारात्मक हो चुकी है कि अब 100 से अधिक परिवार दोबारा गांव में आकर बस चुके हैं।
 
हालांकि इन सब के बीच माओवादियों ने क्षेत्र में आतंक फैलाने के कुछ प्रयास जरूर किए, लेकिन सुरक्षाबलों ने ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया कि अब इस क्षेत्र में माओवादी गतिविधियां न्यूनतम हो चुकी हैं। इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता एवं सुरक्षात्मक माहौल लाने के लिए माओवादियों से मुकाबला करते हुए 4 जवानों ने अपना बलिदान भी दिया है।
 
स्थानीय ग्रामीणों ने क्षेत्र में लौटती शांति और स्थिरता के लिए सुरक्षाबलों का आभार भी जताते हुए कहा है कि सुरक्षाबलों के बलिदान और संघर्ष के चलते ही उनके (ग्रामीण) जीवन में सकरात्मकता आ पाई है।
 
नक्सल हिंसा के कारण पुराना विद्यालय भवन खंडहर हो चुका था, जिसके बाद प्रशासन ने स्थानीय ग्रामीणों के बच्चों की शिक्षा के लिए नया विद्यालय भवन निर्मित किया जा चुका है। नये विद्यालय भवन में अब ग्रामीण बच्चे नियमित रूप से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
 
सुरक्षाबलों एवं प्रशासन की गतिविधियों के कारण अब स्थानीय ग्रामीणों के बीच शासन-प्रशासन और सुरक्षाबलों को लेकर विश्वास भी बढ़ा है।