इस क्रिसमस चर्च को अपने 'यौन शोषण' के कुकृत्यों के लिए माफी मांगनी चाहिए, इससे पाप नहीं धुलेंगे लेकिन यह एक शुरुआत होगी

उन सभ्यताओं को नष्ट के दौरान चर्च और उसके अनुयायियों ने ना सिर्फ संबंधित सभ्यता और उसकी संस्कृति को खत्म किया, बल्कि वहां रहने वाले मूलनिवासियों का भीषण नरसंहार भी किया

The Narrative World    25-Dec-2022   
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sexual misdeed of church 
 
पूरे विश्व में चर्च के द्वारा किए गए असंख्य अपराधों की जानकारी अब एक के बाद एक सामने आ रही है। शताब्दियों से दुनियाभर के विभिन्न हिस्सों में चर्च और उससे जुड़े लोगों ने आम जनता के साथ जितने दुराचार किए हैं उसके सबूत भी देखे जा रहें हैं।
 
इन सबके अलावा ईसाई धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरुओं (पोप फ्रांसिस और पोप बेनेडिक्ट-16) ने भी चर्च के भीतर होने वाले कुकृत्यों को स्वीकार किया है, लेकिन बावजूद इसके चर्च की भारत समेत विभिन्न देशों में अनैतिक गतिविधियां जारी हैं।
 
चर्च और उसके अनुयायियों ने बीते शताब्दियों में अपने कुकृत्यों, षड्यंत्रों एवं आतंक से विश्व की बड़ी से लेकर छोटी-छोटी सभ्यताओं, परम्पराओं और संस्कृतियों को नष्ट कर उनका अस्तित्व ही खत्म कर दिया, जिसके लिए उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता है।
 
उन सभ्यताओं को नष्ट के दौरान चर्च और उसके अनुयायियों ने ना सिर्फ संबंधित सभ्यता और उसकी संस्कृति को खत्म किया, बल्कि वहां रहने वाले मूलनिवासियों का भीषण नरसंहार भी किया। चर्च के कुकर्मों की कहानी ऐसी है कि उन्होंने किसी भी स्थान में नरसंहार करने के साथ-साथ महिलाओं और छोटे बच्चों को भी अपने यौन शोषण का शिकार बनाया।
 
चर्च के भीतर यौन शोषण का मकड़जाल काफी बड़ा और भयावह है। एक रिपोर्ट में इस बात की जानकारी आई थी कि चर्च, जिसे ईसाई समूह द्वारा पवित्र स्थल माना जाता है, उसके भीतर भी यौन शोषण की घटनाएं होती हैं, जिसमें मुख्य रूप से नन एवं छोटे बच्चे ईसाई पादरियों के शिकार बनते हैं।
 
ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने स्वयं वर्ष 2019 में मध्य-पूर्व के अपने ऐतिहासिक दौरे में इस बात को स्वीकार किया था कि चर्चों के भीतर ईसाई पादरियों द्वारा ननों का यौन शोषण किया जाता है। उन्होंने उस बात का भी जिक्र किया था जब पोप बेनेडिक्ट ने ननों की पूरी एक धर्मसभा को इसलिए भंग कर दिया था क्योंकि उनका यौन शोषण पादरियों द्वारा किया जा रहा था।
 
इसके अलावा हाल ही में एक डच पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि जिस रोमन बिशप कार्लोस फिलिपे जिमेनेस बेलो को नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है, वह असल में एक दुराचारी ईसाई पादरी है।
 
ईसाई बिशप कार्लोस को लेकर छपी रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 1980 से लेकर 1990 के दशक में पूर्वी तिमोर में बिशप के रूप में पदस्थ कार्लोस ने स्थानीय बच्चों का यौन शोषण किया था।
 
पीड़ितों ने खुद इस बात की जानकारी देते हुए बताया था कि वे उस दौरान किशोरावस्था में थे और आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति में थे, जिसका फायदा उठाकर बिशप कार्लोस ने उनके से कुकृत्यों को अंजाम दिया था।
 
पूर्वी तिमोर में ईसाइयत का प्रचार कर उसे अलग राष्ट्र बनाने में षड्यंत्रकारी भूमिका निभाने वाले बिशप कार्लोस को लेकर छपी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पीड़ित अब इस मामले को लेकर ईसाई बिशप के साथ-साथ चर्च से भी माफीनामा चाहते हैं। पीड़ितों का कघन है कि यह घटना पूरी दुनिया के सामने आनी चाहिए ताकि आगे से कभी कोई अपने पद एवं शक्ति के नशे में चूर ऐसा कृत्य ना करे। बिशप कार्लोस को 1996 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
 
जर्मनी से भी सामने आई रिपोर्ट के अनुसार कैथोलिक पादरियों ने दुनियाभर के विभिन्न देशों में यौन उत्पीड़न की घटनाओं को अंजाम दिया और साथ ही शिकायत होने पर उसे छिपाए भी रखा।
 
इसके अलावा बलात्कारी, दुराचारी एवं दुष्कर्मी ईसाई पादरियों को संबंधित देशों की सजा से बचाने के लिए कैथोलिक संस्थाओं के दूसरे स्थानों में स्थानांतरित कर दिया गया ताकि उन्हें कानूनी कार्यवाइयों से बचाया जा सके।
 
इसका एक उदारहण देते हुए रिपोर्ट में बताया गया था कि जब एक पादरी के विरुद्ध गिरफ्तारी का वारंट जारी हुआ तब चर्च ने उसे तत्काल कानूनी कार्यवाई से बचाने के लिए पराग्वे भेज दिया, जिसके बाद उसपर कोई कार्यवाई नहीं हो आई।
 
कुछ ऐसी ही घटना ऑस्ट्रिया में भी देखी गई जब वहां के एक पादरी ने दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया तब उसे न्यायालय से दोषी तो करार दे दिया गया लेकिन चर्च के प्रभाव में उसे जेल नहीं भेजा जा सका, और अंततः उसने दोबारा यौन शोषण की घटना को अंजाम दिया।
 
वर्ष 2018 में एक रिपोर्ट में कहा गया था कि वेटिकन इन सभी घटनाओं को रोकने में असफल साबित हुआ है, और उसने इसे रोकने के लिए बेहद ही कम प्रयास किए हैं।
 
भारत के चर्चों में भी ननों की स्थिति दोयम दर्जे की होकर रह गई है। भारत में चर्च की दीवारों में ननों की उन चीत्कारों को सुना है, जिसे वेटिकन ने सुनने से इंकार कर दिया। भारत की ही एक नन लूसी कलाप्पुरा ने इस यौन शोषण के विरुद्ध आमरण अमशन भी किया था, जिसके बाद भारत में भी चर्च के भीतर खलबली मच गई थी।
 
1985 से नन के रूप में ईसाई धर्म की सेवा कर रही लूसी का कहना है कि चर्च के भीतर यौन शोषण की घटना आम हो चुकी है। उन्होंने उसी बिशप फ्रेंको मुलक्कल के विरुद्ध प्रदर्शन का भी नेतृत्व किया था जिसके विरुद्ध 46 वर्षीय नन के साथ 13 बार दुष्कर्म करने का आरोप लगा था।
 
लूसी ने बताया कि बीते 20 वर्षों में ईसाई पादरियों की हरकतों के चलते 28 ननों ने आत्महत्या की है, जिसमें प्रमुख रूप से यौन हिंसा भी एक कारण है। एक अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार ननों का कहना है कि ईसाई पादरी यौन संबंधों के लिए उन पर दबाव डालते हैं।
 
यही कारण है कि अब चर्च के द्वारा किए जा रहे इस शोषण को लेकर ईसाई समाज में भी तेजी से जागरूकता बढ़ रही है। भारत सहित विश्व भर में चर्च को अपनी बेटी देने के लिए लोगों ने इंकार करना शुरू कर दिया गया है, जिसकी गवाही ननों की संख्या दे रही है।
 
केरल, जहां सबसे अधिक इसाई महिलाएं नन बनती थी, वहां अब इन आंकड़ों में 25% तक की गिरावट आई है। अमेरिका में भी 60 वर्ष पूर्व तकरीबन दो लाख नन हुआ करते थे, वहीं अब वर्तमान में ननों की संख्या 50 हजार से भी कम है।
 
अमेरिका में ही वर्ष 2004 में एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि वहां 4,392 ऐसे ईसाई पादरी थे जिनके विरुद्ध यौन शोषण का आरोप लगा हुआ था।
 
सितंबर 2009 में आर्कबिशप सिल्वानो मारिया टोमसी ने इस बात को स्वीकार किया था कि बीते 5 दशकों में 5% कैथोलिक पादरी किसी ना किसी यौन शोषण के मामले में शामिल रहे हैं।
 
फ्रांस से भी आई रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि वर्ष 1950 से लेकर वर्ष 2020 के बीच 70 वर्षों में ईसाई पादरियों और चर्च से जुड़े लोगों ने लाखों बच्चों का यौन शोषण किया है।
 
इस मामले में 2500 पन्नों की रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ था कि बीते सात दशकों में तकरीबन 3,30,000 से अधिक बच्चों का यौन शोषण ईसाई पादरियों के द्वारा किया गया था। पोप फ्रांसिस ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक बताया था।
 
पोलैंड के भी कैथोलिक चर्च का नाम ऐसी घटनाओं में सामने आ चुका है जिसमें यह जानकारी आई थी कि ईसाई पादरियों ने 3
वर्षों में 368 नाबालिग किशोरों-किशोरियों के साथ यौन उत्पीड़न की घटना को अंजाम दिया गया था।
 
इसके अलावा चर्च के बिशप ने इस बात को भी स्वीकार किया था कि इन घटनाओं को चर्च के द्वारा छिपाने का प्रयास किया गया, जिसके बाद बिशप इसकी माफी भी मांगी थी। चर्च के द्वारा किए जा रहे इन तमाम कुकृत्यों को लेकर वर्ष 2021 में मानवाधिकारों उच्चायुक्त के कार्यालय के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि की एक टीम ने वेटिकन की जमकर आलोचना की थी।
 
दरअसल चर्च के पादरियों के द्वारा यौन शोषण करने का लंबा कुख्यात इतिहास रहा है। दुनिया भर के तमाम देशों में चर्च के द्वारा किए गए कुकृत्यों की सूची लंबी है। चर्च के द्वारा किए गए यह कुकर्म किसी एक देश या एक महाद्वीप तक सीमित नहीं रहे। चर्च ने दुनिया के लगभग सभी महाद्वीपों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और वहां पर अपने अनैतिक कार्यों को भी अंजाम दिया।
अफ्रीका के केन्या और तंजानिया जैसे देशों में तो व्यापक स्तर पर चर्च के द्वारा किए गए यौन शोषण से संबंधित मामले सामने आए। चर्च ने दुनिया भर में जितना यौन शोषण किया है उसकी गिनती नहीं की जा सकती।
 
एक बात स्पष्ट है कि चर्च के द्वारा किए गए यह कुकृत्य ऐसे हैं कि इन्हें कभी भी माफ नहीं किया जा सकता। लेकिन फिर भी चर्च को अपने द्वारा किए गए इस कुकर्म पर माफी मांगनी चाहिए और इसी क्रिसमस से इसकी शुरुआत होनी चाहिए।