ईसाइयों के आतंक के विरोध में आक्रोशित जनजाति समाज ने किया बस्तर बंद का आह्वान, पूरे संभाग में दिख रही जनजातियों की एकजुटता

पीड़ित जनजातियों ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया है कि ईसाई समूह ने इस हमले को कुछ जनजाति ग्रामीणों की हत्या करने के इरादे से किया था

The Narrative World    13-Jan-2023   
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बस्तर संभाग के नारायणपुर जिला में ईसाइयों के द्वारा जनजातियों पर किए गए हिंसक हमले के विरोध में एवं ईसाई मिशनरियों के द्वारा की जा रही अनैतिक गतिविधियों के विरोध में समस्त जनजाति समाज ने बस्तर बंद का आह्वान किया है। इस आह्वान के बाद मानो पूरे बस्तर का जनजाति समाज एकजुट दिखाई दे रहा है।
 
संभाग के सभी जिलों में बंद और चक्काजाम सफल होने की संभावना दिखाई दे रही है, वहीं जनजाति समाज के भीतर का आक्रोश अभी भी शांत नहीं हुआ है, जिसके पीछे पुलिस प्रशासन का षड्यंत्र भी एक महत्वपूर्ण कारक है।
 
इस बंद के समर्थन में विभिन्न जनजातीय संगठनों ने भी अपने स्तर पर आह्वान किया है। छत्तीसगढ़ के ही एक जनजाति संगठन ने बस्तर संभाग के आयुक्त, रेंज के पुलिस महानिरीक्षक एवं समस्त जिलों के जिलाधिकारी एवं जिला पुलिस अधीक्षकों को पत्र जारी करते हुए 5 जनवरी, गुरुवार को बस्तर बंद की घोषणा की है।
 
इस पत्र में बंद के पीछे का कारण नारायणपुर की हिंसक घटना को बताया गया है, जिसे चर्च के इशारे पर ईसाई मिशनरियों ने अंजाम दिया है।
 
दरअसल बीते 31 दिसंबर एवं 1 जनवरी को नारायणपुर जिले के एड़का थाना अंतर्गत गोर्रा गांव में ईसाई मिशनरियों से जुड़े लोगों ने मूल जनजाति संस्कृति मानने वाले लोगों पर हिंसक हमले किए। 1 जनवरी का हमला तो ईसाइयों के द्वारा कुछ इस प्रकार किया गया था कि इसमें जनजाति ग्रामीणों की जान भी जा सकती थी।
 
पीड़ित जनजातियों ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया है कि ईसाई समूह ने इस हमले को कुछ जनजाति ग्रामीणों की हत्या करने के इरादे से किया था। इसके अलावा ऐसी जानकारी भी आई कि जनजातियों पर किए गए इस हमले के पीछे चर्च से जुड़े कुछ पादरी भी थे, जिनमें से एक ने उपद्रवियों की भीड़ का नेतृत्व भी किया था।
 
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि ईसाई मिशनरी द्वारा की जा रही अवैध मतान्तरण की गतिविधियों का विरोध करने वाले जनजातियों को निशाना बनाया गया था, जिसमें ईसाई समूह ऐसे ग्रामीणों की जान लेना चाहते थे।
 
ईसाइयों के इस हमले में कई ग्रामीण घायल हुए, जिनमें से कुछ को गंभीर चोटें भी आईं। ईसाइयों के आतंक के चलते ग्रामीणों को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा, जिसके बाद उनका उपचार जिला अस्पताल में कराया गया।
 
स्थानीय ग्रामीणों की शिकायत है कि पूरे बस्तर संभाग में ईसाइयों के द्वारा अवैध मतांतरण की गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, जिससे ना सिर्फ समाज में वैमनस्यता बढ़ रही है, बल्कि जनजाति समाज के बीच मौजूद मैत्रीपूर्ण संबंधों में भी दरार आ रही है।
 
इसके अलावा जनजातीय क्षेत्रों में धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन चुके लोगों के द्वारा जनजातीय संस्कृति, पूजन पद्धति, परंपरा एवं रीति-रिवाजों का विरोध किया जाता है एवं उपहास भी उड़ाया जाता है।जनजातीय ग्रामीणों का कहना है कि जिस प्रकार की हिंसक घटना को नव धर्मान्तरित ईसाइयों ने 31 दिसंबर और 1 जनवरी को अंजाम दिया है, उसके बाद सिर्फ नारायणपुर ही नहीं बल्कि बस्तर क्षेत्र के लगभग सभी जिलों में तनाव की स्थिति बन चुकी है, साथ ही जनजाति समाज के भीतर अत्यधिक आक्रोश है।
 
मूल जनजाति संस्कृति मानने वाले ग्रामीणों का यह भी कहना है कि ईसाइयों की इन गतिविधियों के चलते संभाग के विभिन्न क्षेत्रों में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ रहा है, जिससे क्षेत्र में अशांति होने की संभावना है।
 
इन सभी शिकायतों को बताने के साथ-साथ बस्तर बंद से पहले जनजाति समाज ने अपनी कुछ मांगों को भी सामने रखा है। जनजातियों का कहना है कि संभाग में बढ़ती मतांतरण की गतिविधियों पर तत्काल रोक लगानी चाहिए।
 
इसके अलावा ईसाई मिशनरियों की चंगाई सभा एवं अन्य स्थानों में यीशु के चमत्कार दिखाने एवं प्रलोभन देने वालों के विरुद्ध भी कड़ी कार्यवाई की मांग की गई है।
 
1 जनवरी को जिस तरह ईसाइयों के समूह ने जनजातियों पर हिंसक हमले किए, उसके बाद भी आरोपियों धरपकड़ करने में पुलिस जिस तरह से नाकाम रही है, उसे देखते हुए भी दोषियों पर कड़ी कार्यवाई की मांग जनजाति समाज द्वारा की जा रही है।
 
पुलिस प्रशासन पर जनजातियों के विरुद्ध षड्यंत्र का आरोप
 
जनजाति समाज ने नारायणपुर जिला पुलिस पर जनजातियों को फंसाने और दोषी ईसाइयों को बचाने का भी आरोप लगा है। त्वरित कार्यवाई ना करना हो या एफआईआर करने में हेर फेर करना हो, जनजाति समाज ने जिला पुलिस की पूजा जांच प्रणाली पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
 
इस मामले को लेकर जनजातीय ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने अपने शिकायत पत्र में जिन आरोपियों के नाम का उल्लेख किया था, उनका नाम एफआईआर में कहीं नहीं हैं। वहीं पुलिस ने एफआईआर में बिना किसी जांच के उन नामों को एफआईआर से हटा दिया है।
 
ग्रामीणों का कहना है कि यदि पुलिस को लगता है कि शिकायत पत्र में आरोपियों के जो नाम दिए गए हैं, वो निर्दोष हैं तो उन्हें पहले जांच करनी चाहिए थी और उसके बाद यदि उनका अपराध नहीं दिखता तब उनका नाम हटाया जाना था।
 
वहीं दूसरी ओर ईसाइयों के द्वारा पास्टर के नेतृत्व में किए गए हमले को भी पुलिस ने 'आपसी विवाद' के रूप में पेश किया है, जिसके कारण भी ग्रामीणों में आक्रोश है। पुलिस प्रशासन के इसी रवैये के कारण 2 जनवरी को एक और हिंसा की घटना नारायणपुर जिला मुख्यालय में देखी गई, जिसके बाद एक ईसाई पादरी की शिकायत पर 100 से अधिक जनजतियों पर मुकदमे दर्ज कर दिए गए।
 
जनजाति समाज का कहना है कि पुलिस इस मामले निष्पक्ष होकर जांच नहीं कर रही है, जिसके कारण उनका शासन-प्रशासन से विश्वास भी उठता जा रहा है।