तो क्या हवाई हमलों के भय के साये में जी रहे माओ के सिपाही ?

यह स्थिति तो बिल्कुल ऐसी है जिसमें माओवादी अपनी कथित उन्मादी क्रांति के नाम पर निर्दोषों को तो बर्बरता से मारना चाहते हैं पर सरकार से हवाई हमलें ना करने की अपेक्षा करते हैं

The Narrative World    15-Jan-2023   
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छत्तीसगढ़ में बीते बुधवार को माओवादियों (कम्युनिस्ट आतंकियों /नक्सलियों) के विरुद्ध चलाए गए वृहद अभियान को लेकर माओवादी बौखलाए हुए दिखाई दे रहे है, इस क्रम में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया सीपीआई (माओइस्ट) की केंद्रीय समिति से लेकर, दक्षिण सब-जोनल कमेटी तक ने एक के बाद एक प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से सुरक्षाबलों पर निशाना साधा है।
 
सीपीआई (माओइस्ट) की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति में सुरक्षाबलों पर बीजापुर, सुकमा एवं तेलंगाना के ट्राई जंक्शन पर माओवादी ठिकानों पर बमबारी का आरोप मढ़ते हुए माओवादियों ने इसकी निंदा की है। वहीं विज्ञप्ति में माओवादियों ने कुख्यात माओवादी कमांडर मड़ावी हिडमा के मौत की खबरों पर स्थिति स्पष्ट करते हुए इसे कोरी कल्पना बताया है।
 
विज्ञप्ति में माओवादियों ने दावा किया कि सुरक्षाबलों द्वारा पिछले 9 महीनों के दौरान हुई यह दूसरी बमबारी है, जिसे भारतीय तकनीकी संस्थान एवं अमेरिकी खुफिया एजेंसी के सहयोग से अंजाम दिया गया है, माओवादियों ने विज्ञप्ति में अफ़ग़ानिस्तान जैसे देश का उल्लेख करते हुए दावा किया कि इन हमलों से उनके संगठन को मिटाया नहीं जा सकेगा।
 
बता दें कि इससे पूर्व सीपीआई माओइस्ट की दक्षिण सब जोनल कमेटी ने भी विज्ञप्ति जारी कर सुरक्षाबलों पर हवाई हमले करने का आरोप मढ़ा था, विज्ञप्ति में माओवादियों ने पीएलजीए (नक्सलियों की सैन्य इकाई) बटालियन संख्या 1 के कमांडर हिडमा को सुरक्षित बताते हुए दावा किया था कि घंटो हुई बमबारी में उनकी एक महिला कैडर मारी गई हैं।
 
ज्ञात हो कि माओवादियों द्वारा यह विज्ञप्तियां तब जारी की जा रही है जब अभी हाल ही में बस्तर रेंज के आई जी सुंदरराज पी ने प्रेसवार्ता में हवाई हमले को लेकर स्थिति स्पष्ट करते हुए इसे माओवादियों द्वारा किया जा रहा कोरा दुष्प्रचार बताया था।
क्या है बौखलाहट का कारण
दरअसल बीते कुछ वर्षो, विशेषकर वर्ष 2021-22 में माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों को मिली अप्रत्याशित सफलता ने माओवादी संगठन के संगठनात्मक ढांचे को हिलाकर रख दिया है परिणामस्वरूप धुर माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में जहां कभी माओवादियों की तूती बोलती थी वहां उन्हें पीछे हटने को बाध्य होना पड़ा है।
 
इसी क्रम में जहां कहीं भी माओवादियों ने अपने कदम पीछे खिंचे हैं सुरक्षाबलों ने उन क्षेत्रों में योजनाबद्ध रूप से फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेसेज (एफओबी) स्थापित किये हैं जिनसे भविष्य में इन क्षेत्रों में माओवादियों के फिर से सक्रिय होने की संभावनाओं को भी झटका लगा है, कभी माओवादियों के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में एफओबी के माध्यम से सुरक्षाबलों का आसूचना तंत्र भी मजबूत हुआ है जबकि इसके विपरीत माओवादियों की पकड़ ढ़ीली पड़ती दिखाई दे रही है।
 
इन फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेसेज से माओवादियों की बेचैनी को उनके द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति के माध्यम से भी बखूबी भांपा जा सकता है जहां उन्होंने केंद्र सरकार पर इन क्षेत्रों में बीते वर्ष ही 20 नए एफओबी खोलने का आरोप लगाया है।
हवाई हमलों के नाम पर सहानभूति बटोरने का प्रयास
माओवादियों द्वारा बीते दिनों उनके विरुद्ध चलाए गए वृहद अभियान को उन पर हुआ हवाई हमला बताने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है, इस प्रपंच के पीछे माओवादियों द्वारा ग्रामीणों की आड़ लेकर संगठन के लिए सहानभूति बटोरने का प्रयास किया जा रहा है।
 
दरअसल नक्सलियों द्वारा बार बार यह दावा किया जाता रहा है कि उनके लिए लड़ने वाले लड़ाके किसान एवं मजदूर वर्ग के लोग हैं जिन पर सरकार हवाई हमले कर बर्बरता कर रही है, यह स्थिति हास्यास्पद भी है क्योंकि जब कोई भी संगठन देश के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष छेड़ता है तो हवाई या किसी भी अन्य प्रकार का हमला संबंधित देश की संप्रभुता अक्षुण्ण रखने के लिए सरकार का न्यायोचित कदम हो जाता है, ऐसे दुनिया भर में भी दर्जनों उदाहरण रहे हैं।
 
बावजूद इसके माओवादी संगठन अपने अतार्किक एवं कुटिल प्रपंचों से अपने लिए कोरी सहानभूति बटोरने का भरपूर प्रयास कर रहा है यह स्थिति तब है जब पुलिस द्वारा बार बार यह स्पष्ट किया जा चुका है कि फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेसेज पर जवानो को लाने ले जाने के अतिरिक्त अन्य किसी भी रूप में हेलीकॉप्टर का भी प्रयोग कभी नहीं किया गया है।
 
इस अभियान में भी यही किया गया था जब बेस से लौट रहे जवानों पर माओवादियों ने जमकर गोलीबारी की थी जिसमें पॉयलट समेत कुल 6 जवान घायल भी हुए थे, सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि विक्टिम कार्ड खेलने का यह प्रयास उस संगठन द्वारा किया जा रहा है जिसने पिछले तीन-चार महीनों में ही केवल छत्तीसगढ़ में 30 से अधिक निर्दोष ग्रामीणों की बर्बरता से हत्याएं की है।
 
अब यह स्थिति तो बिल्कुल ऐसी है जिसमें माओवादी अपनी कथित उन्मादी क्रांति के नाम पर निर्दोषों को तो बर्बरता से मारना चाहते हैं पर सरकार से हवाई हमलें ना करने की अपेक्षा करते हैं और ऐसी किसी भी कार्यवाई के पूर्वाग्रह में विज्ञप्तियों के माध्यम से विक्टिम कार्ड खेलने की रणनीति पर चल रहे हैं।
 
विशेषज्ञों की मानें तो माओवादियों की यह बेचैनी उनके विरुद्ध सरकार द्वारा चलाये जाने वाले किसी निर्णायक अभियान के भय के कारण है, जहां अपने कमजोर पड़ चुके संगठन को वह ऐसी किसी भी आमने सामने की लड़ाई में वे असमर्थ पा रहे हैं यही कारण है कि विक्टिम कार्ड खेलने से लेकर लोगों के मन में सुरक्षाबलों के प्रति बढ़ते विश्वास को वे निर्दोषों की हत्याओं से रोकना चाहते हैं, यह विशुद्ध रूप से उनके भय उनके डर का प्रतीक है और यदि ऐसा सच में है तो यह डर अच्छा है।