बस्तर में ईसाइयों के आतंक से जनजाति समाज में आक्रोश

ईसाई मिशनरियों ने अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए कई जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में छोटे-छोटे अवैध चर्च एवं प्रार्थना स्थल स्थापित कर लिए जहां विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों के माध्यम से जनजातियों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है

The Narrative World    02-Jan-2023   
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ईसाई मिशनरियों की अवैध गतिविधियां देश के विभिन्न जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही है, जिसके परिणामस्वरूप संबंधित क्षेत्रों में ना सिर्फ सामाजिक तनाव की स्थितियां पैदा हो रही बल्कि उन क्षेत्रों में जनजातियों की हजारों वर्ष प्राचीन परंपराओं एवं रीतियों का भी ह्रास हो रहा है।
 
कुछ ऐसी ही स्थिति छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी देखी जा रही है, और यही कारण है कि बस्तर का जनजाति समाज अब ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध आक्रोशित दिखाई दे रहा है। नये वर्ष (2023) की पहली सुबह को ही बस्तर संभाग क्षेत्र के गोर्रा गांव में ईसाई मिशनरियों से जुड़े लोगों ने जनजातीय समाज को निशाना बनाया है, जिसमें बड़ी संख्या में जनजातीय नागरिक घायल हुए हैं।
 
ईसाई उपद्रवियों ने मतांतरण का विरोध करने वाले जनजाति नागरिकों और नेतृत्वकर्ताओं की हत्या करने के इरादे से उनपर हमला किया था, जिसके कारण इस हमले में कुछ स्थानीय जनजातीय ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
 
इसके अलावा हिंसा को नियंत्रित करने और ईसाइयों के आतंक को रोकने के लिए घटनास्थल पर पहुंची पुलिस बल के साथ भी ईसाइयों ने मार पीट की, जिसमें एडका थाना प्रभारी वायएस जोशी गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
 
ईसाइयों ने अपने आतंक को प्रदर्शित करते हुए पुलिस बलों की गाड़ियों और अन्य वाहनों को भी अपना निशाना बनाया और उसमें जमकर तोड़ फोड़ की।
 
चर्च समर्थित ईसाइयों के द्वारा किए गए इस आतंकी गतिविधि के बाद पूरे बस्तर क्षेत्र में रोष व्याप्त हो चुका है। जनजाति समाज अपनी रीति, रूढ़ि, परंपरा और संस्कृति बचाने के लिए सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहा है।
 
वहीं बस्तर संभाग के जिस नारायणपुर जिले में यह घटना हुई है, उसके जिला मुख्यालय में एक हजार से अधिक की संख्या में जनजाति नागरिक एकजुट होकर विरोध करने पहुंचे, जिसके बाद प्रशासन ने विवाद को शांत कराया। हालांकि जनजाति समाज ने इस घटना के अगले दिन अर्थात आज सोमवार (2 जनवरी, 2023) को नगर बंद का आह्वान किया है।
 
ईसाइयों के आतंक से पीड़ित जनजाति ग्रामीणों ने बताया कि 31 दिसंबर, शनिवार की रात भी चर्च समर्थित ईसाई समूह ने उन पर हमला किया था, जिसमें कुछ लोग घायल हुए थे। इसके बाद अगली सुबह 'ईसाइयों के नववर्ष' के अवसर पर उन्होंने जनजातियों को निशाना बनाया।
 
यह घटना रविवार को घटित हुई है, जिसे लेकर स्थानीय सूत्रों ने ऐसा अनुमान लगाया है कि ईसाइयों ने पहले किसी स्थान में एकत्रित होकर प्रार्थना सभा की और उसके बाद षड्यंत्रपूर्वक जनजाति समाज पर हमला किया।
 
यह घटना कुछ उसी प्रकार की है जैसे मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में शुक्रवार को नमाज के बाद पत्थर फेंके जाते हैं, जिसमें मस्जिदों की भूमिका भी संदेहास्पद होती है, ठीक वैसे ही इस घटना में भी चर्च की बड़ी भूमिका हो सकती है।
 
बस्तर के गोर्रा गांव में हुई इस घटना के बाद वनवासी ग्रामीण चर्च को लेकर भी आक्रोशित हैं। दरअसल जिस आतंकी घटना को ईसाइयों के समूह ने अंजाम दिया है, उसका नेतृत्व भी चर्च के पादरी कर रहे थे। ईसाई पादरी बजारू दुग्गा और जयराम दुग्गा के इशारे के बाद भीड़ ने जनजाति नागरिकों पर जानलेवा हमला किया था।
 
इसके अलावा ऐसी जानकारी भी सामने आई है कि इस घटना की पूरी रणनीति तैयार करने के लिए विशेष तौर पर बाहर से भी चर्च के कुछ रणनीतिकार आए थे, जो पर्दे के पीछे से इस हिंसा से संबंधित निर्देश दे रहे थे।
 
इस हिंसक घटना के बाद एडका क्षेत्र के जनजातीय नेतृत्वकर्ताओं ने कहा है कि वे इस घटना के विरोध में जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंप कर दोषियों पर कार्यवाई की मांग करेंगे।
 
दरअसल बस्तर के क्षेत्र में ईसाइयों के द्वारा की गई यह पहली घटना नहीं है, जिसके चलते जनजाति समाज में रोष है। इससे पूर्व क्षेत्र में जिस तरह से मतांतरण की अवैध गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, उसे लेकर जनजाति समाज ने पूर्व में कई बाद विरोध प्रकट किया है।
 
बस्तर के ग्रामीण क्षेत्रों में ईसाइयों के द्वारा जनजाति संस्कृति, पर्व, परंपरा और रीतियों का ना सिर्फ विरोध किया जाता है, बल्कि समाज के सामने ही उसका उपहास उड़ाया जाता है, जिसके कारण जनजाति समाज पहले से ही खिन्न हो चुका हैTribals protest against attack 
 
ईसाई मिशनरियों ने अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए कई जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में छोटे-छोटे अवैध चर्च एवं प्रार्थना स्थल स्थापित कर लिए जहां विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों के माध्यम से जनजातियों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है।
 
इसके अलावा जहां बड़ी संख्या में मतांतरण किया जा चुका है, उन क्षेत्रों में जनजातियों के पूजन स्थल से लेकर अंतिम संस्कार के स्थल में कब्जा जमाने का प्रयास किया जाता है, जिसके कई उदाहरण सामने आ चुके हैं।
 
बस्तर के दरभा क्षेत्र नागलसर पंचायत में एक ईसाई व्यक्ति ने अपनी मृत दादी के शव को जनजाति समाज के श्मशान में दफनाने की कोशिश की थी, जिसके बाद स्थानीय वनवासी ग्रामीणों ने इसका जमकर विरोध किया था। इस विरोध को देखते हुए प्रशासन को बीच-बचाव करना पड़ा और अंततः ईसाई परिवार ने अपनी निजी जमीन पर शव को दफनाया।
 
कुछ ऐसा ही मामला डिलमिली पंचायत से सामने आया था, जहां ईसाइयों ने चुपचाप एक ईसाई महिला का शव जनजाति समाज के अंतिम संस्कार स्थल पर दफना दिया था, इसके बाद जनजाति समाज ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था।
 
ईसाइयों की नापाक हरकतों के चलते जनजाति समाज ने विभिन्न मौकों पर अपना आक्रोश प्रकट किया है। हाल ही में दिसंबर माह में बस्तर संभाग के फरसगांव ब्लॉक में दर्जनों गांव के हजारों लोगों ने एकजुट होकर मतांतरण के विरूद्ध हुंकार भरा था। इस दौरान जनजातियों ने ईसाइयों के कारण समाज के भीतर बढ़ रही वैमनस्यता के खतरे की बात की थी और उनसे अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाने का संकल्प लिया था।
 आक्रोशित जनजाति समाज ने एकजुट होकर कहा था कि जो लोग किन्हीं विपरीत परिस्थितियों के चलते मतांतरित हो गए हैं, वो पुनः अपने मूल धर्म में लौट आए, और यदि वो समाज में वापस नहीं आते तो उन सभी को अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले लाभ से हटाने के लिए कलेक्टर को ज्ञापन दिया जाएगा।
 
जिस नारायणपुर जिले में ईसाइयों ने अपनी आतंकी हिंसक घटना को अंजाम दिया है, वहां भी बीते नवंबर माह में जनजातियों ने ईसाइयों के विरुद्ध एक महापंचायत का आयोजन किया था। इसमें बस्तर संभाग के कोंडागांव, नारायणपुर और कांकेर क्षेत्र के जनजाति ग्रामीण शामिल हुए थे।
 
इस महापंचायत में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि ईसाइयों की अवैध गतिविधियों के चलते ग्राम समाज में प्रेम-व्यवहार, सद्भावना और भाईचारा खतरे में पड़ चुका है और मूल संस्कृति नष्ट होती जा रही है।
 
दरअसल ईसाइयों की विभिन्न लॉबी राजधानी रायपुर से लेकर बस्तर तक जनजातियों के विरुद्ध लगी है, जिनका सहयोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाली संस्थाएं भी कर रही हैं।
 
इसके अलावा शहरी नक्सलियों के कुछ समूह से लेकर तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के द्वारा बार-बार जनजाति समाज को विलेन बनाते हुए हिंसा करने वाले ईसाई समाज को ही पीड़ित दिखाया जाता रहा, जिसके चलते वनवासियों ने और अधिक आक्रोश है।
 
इन सब के अलावा शासन-प्रशासन ने भी ईसाइयों के अनैतिक करतूतों के विरुद्ध कोई ठोस कार्यवाई नहीं की है, जिसके कारण उनका मनोबल इतना अधिक बढ़ चुका है कि अब वो पुलिस बल पर भी जानलेवा हमला कर रहे हैं।
 
हालांकि अब बस्तर के जनजाति समाज के सब्र का बांध टूट चुका है, और स्थानीय वनवासियों ने स्पष्ट रूप से व्यापक विरोध प्रदर्शन और आंदोलन की चेतावनी दे दी है, साथ ही स्पष्ट कर दिया है कि बस्तर सनातन संस्कृति के अभिन्न अंग जनजाति समाज की भूमि है जिसमें ईसाइयों के कुकर्मों का कोई स्थान नहीं है।