हिन्दू आस्था से आहत हुई कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट)

तो दरअसल जाति, संप्रदाय, भाषा अथवा क्षेत्र के आधार पर जनमानस को बांटने की परिपाटी कम्युनिस्टों के लिए कोई नई बात नहीं

The Narrative World    21-Jan-2023   
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भारत में माओवादियों (नक्सलियों/कम्युनिस्ट आतंकियों) के अग्रणी संगठन प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट)- सीपीआई (एम) ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से आगामी गणतंत्र दिवस के बहिष्कार का आह्वान किया है। मिली जानकारी के अनुसार सीपीआई (एम) की केंद्रीय कमेटी की ओर से जारी की गई विज्ञप्ति में देश भर के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों द्वारा माओवादियों के विरुद्ध चलाए जा रहे वृहद अभियानों का हवाला देकर संगठन ने जनता से गणतंत्र दिवस के अवसर पर काले झंडे फहराने का आह्वान किया है।
 
विज्ञप्ति में केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय के हवाले से दावा किया गया है कि केंद्र सरकार की ओर से जनजातीय क्षेत्रों का हिंदूकरण करने का प्रयास किया जा रहा है जिसकी राह में सबसे बड़ी बाधा माओवादी संगठन है इसलिए सरकार द्वारा बड़े स्तर पर अभियान चलाकर माओवाद को मिटाने का प्रयास जारी है। विज्ञप्ति में अभय के हवाले से यह दावा किया गया है कि यह सारे अभियान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की देख रेख में चलाए जा रहे हैं जिस दौरान संगठन के ठिकानों पर ड्रोन एवं हेलीकॉप्टरों के माध्यम से भी हमले किये जा रहे हैं।
 
वहीं अधिनायकवादी तानाशाह व्यवस्था की पैरोकारी करने वाले संगठन की ओर से विज्ञप्ति में हास्यास्पद रूप से भारतीय संविधान का उल्लेख करते हुए इसके ठीक रूप से लागू ना होने का आरोप मढ़ा है, विज्ञप्ति में दावा किया गया है कि भारत की क्रमशः सरकारों ने कॉरपोरेट घरानों को महत्व देते हुए संविधान को ठीक रूप से लागू नहीं होने दिया है और इसका प्रतिकार करना चाहिए इसलिए संगठन जनता से 26 जनवरी को काले झंडे फहराने का आह्वान करता है।
 
बता दें कि यह पहला अवसर नहीं है जब माओवादी संगठन ने राष्ट्रीय त्योहारों के पूर्व इस प्रकार की राष्ट्र विरोधी विज्ञप्तियां जारी की हो और इससे पूर्व भी कम्युनिस्ट चरमपंथी ऐसा करते आए हैं, अब इसी क्रम में इस वर्ष भी संगठन ने ऐसी ही विज्ञप्ति जारी की है, हालांकि केंद्रीय कमेटी द्वारा इस वर्ष जारी की गई विज्ञप्ति में संगठन की बेचैनी एवं इसके दीर्घकालिक लक्ष्यों के क्षय का भय स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
 
दरअसल संगठन की ओर से जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति में माओवादियों ने आश्चर्यजनक रूप से सरकार पर जनजातीय (आदिवासी) बाहुल्य क्षेत्रों के हिंदूकरण के प्रयास का आरोप मढ़ा है, यहां स्वाभाविक रूप से उठने वाला प्रश्न यह है कि कथित रूप से समानता की क्रांति के लिए निर्दोषों पर हथियार चलाने वाले संगठन के लिए अनादिकाल से सनातन संस्कृति का भाग रहे जनजातीय वर्ग के अपनी आस्था के प्रतीकों के प्रति बढ़ते समर्पण भाव से भला क्या समस्या हो सकती है ?
 
तीस पर से विज्ञप्ति में माओवादियों ने बार बार जनजातीय वर्ग के लोगों के लिए मूलनिवासी शब्द का उल्लेख किया है जबकि यह सर्वविदित है कि वैश्विक मंचो पर भारत सरकार बार बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि भारत मे रहने वाले सभी लोग यहां के मूलनिवासी हैं फिर कथित रूप से वंचित वर्ग के जल जंगल जमीन के संरक्षण की कसमें उठाने वाले माओ के सिपाहियों को जोर देकर यह प्रपंच क्यों फैलाना पड़ रहा है कि जनजातीय वर्ग के लोग ही भारत के मूल निवासी हैं ?
 
तो दरअसल जाति, संप्रदाय, भाषा अथवा क्षेत्र के आधार पर जनमानस को बांटने की परिपाटी कम्युनिस्टों के लिए कोई नई बात नहीं इतना अवश्य है कि जिस अवसर एवं भाषा शैली का उपयोग माओवादियों ने अपनी इस विज्ञप्ति में किया है उससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि यह शब्दावली माओवादियों एवं हालिया दिनों में बस्तर में जनजातीय समुदाय के आक्रोश का केंद्र रहे ईसाई मिशनरियों से बेहद नजदीकी संबंधो की ओर संकेत देती है।
 
इसे ऐसे समझे कि विज्ञप्ति में माओवादियों ने जोर देकर यह कहा है कि बस्तर में वर्तमान में जो स्थिति है उसमें अमूलचूल परिवर्तन वर्ष 2014 में केंद्र में हुए सत्ता के परिवर्तन के बाद से दिखना प्रारंभ हुआ है जिसके उपरांत जंगलो में हथियार थामने वालों से लेकर शहरों में कलम चलाने वाले नक्सलियों के लिए भी परिस्थितियां बेहद कठिन हुई हैं।
 
वहीं विज्ञप्ति में समानातंर रूप से बस्तर के हिंदूकरण का भी आरोप मढ़ा गया है जिसे सांकेतिक रूप से हाल में ईसाई मिशनरियों द्वारा जनजातीय समुदाय पर हुए हमलें के बाद जनजाति समुदाय के प्रतिकार स्वरूप आई प्रतिक्रिया से जोड़ने का प्रयास किया गया है, जो मूल रूप से यह संदेश देने का ही प्रयास मालूम पड़ता है कि चाहे माओवादी संगठन हो अथवा अवैध धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे ईसाई मिशनरी, इनके साझे निशाने पर हिन्दू हित की बात करने वाली शक्तियां ही हैं।
 
अब ऐसे में यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि अभी कुछ ही दिनों पहले राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने वाले संगठन ने इस बार विज्ञप्ति के माध्यम से मिशनरियों के साथ सुरताल बिठाने का प्रयास किया है, संदेश स्पष्ट है, चाहे वह बस्तर की संस्कृति मिटाने पर आमादा ईसाई मिशनरी हों अथवा अपने परिवार के अस्तित्व बचाने की कवायद में मार्क्स की वेशभूषा धारण कर भारत भर में घूम रहे राहुल गांधी हो सब के निशाने पर देश को नक्सलवाद के दंश से मुक्त कराने का प्रयास कर रही सरकार ही है।
 
जहां तक जनजातीय समुदाय का प्रश्न है तो उनके लिए तो बस परत दर परत कथित क्रांति के लाल रंग में रंगे इन आतताइयों की वास्तविक सच्चाई उजागर ही हो रही है, उन्हें समझ आने लगा है कि सुदूर जंगलो में लाल पर्दे के पीछे गुपचुप बनाई जा रही रणनीतियों में चर्च के सिपहसालारों की भी उतनी ही भूमिका है जितना कि उनके आस पास उनका खून चूसने को आमादा कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की।
 
वे समझने लगे हैं कि बस्तर में आतंक के परिपाटी की उखड़ती सांसों को चर्च की छांव में सहेजने का प्रयास किया जा रहा है, उन्हें पता है सरकार ड्रोन हमलें अथव हेलीकॉप्टरों का उपयोग नहीं कर रही पर यदि करे भी तो यह दशकों से लाल आतंक की परिधि में कैद वनवासियों को सुकून देने वाला ही होगा इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं।