विदेश जाने वाले चीनी विद्यार्थियों को लेनी पड़ती है कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी की शपथ, चीनी दूतावास को देनी होती है रिपोर्ट

चीन में एक दलीय तानाशाही है, केवल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है। वहां कोई आम चुनाव नहीं होते और ना ही आम जनता को अपना नेता चुनने का अधिकार होता है।

The Narrative World    25-Jan-2023   
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चीन में एक दलीय तानाशाही है, केवल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है। वहां कोई आम चुनाव नहीं होते और ना ही आम जनता को अपना नेता चुनने का अधिकार होता है।


इन सब के अलावा चीनी कम्युनिस्ट शासन प्रणाली की व्यवस्था ऐसी है कि वहां राष्ट्र से अधिक पार्टी और नेता को तवज्जो दी जाती है। यही कारण है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और शी जिनपिंग के विरोध में बोलने या कोई गतिविधि करने के बाद जैक मा जैसे बड़े से बड़े दिग्गज भी 'गायब' कर दिए जाते हैं।


कुछ ऐसा ही वहां की सेना का है, आमतौर पर किसी भी देश की सेना उस राष्ट्र की सेना होती है, लेकिन चीन में मौजूद पीएलए अर्थात पीपुल्स लिबरेशन आर्मी असल में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की एक सैन्य इकाई है, ना कि चीन की सेना। सेना को भी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी की शपथ दिलाई जाती है।


अब जब सेना और अधिकारी समेत शासन-प्रशासन भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पार्टी कैडर की तरह कार्य करते हैं, तो विदेश जाने वाले चीनी विद्यार्थी इससे अलग कैसे हो सकते हैं।


हाल ही में सामने आए दस्तावेजों से यह पता चला है कि चीनी विद्यार्थियों को विदेशी विश्वविद्यालय में जाने से पूर्व विशेष अनुबंध में हस्ताक्षर करने होते हैं, साथ ही उन्हें एक गारंटर भी लाना होता है, जो चीन में ही रहता हो।


दिलचस्प यह है कि इस अनुबंध में चीन के प्रति नहीं, बल्कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी निभाने की शपथ दिलवाई जाती है।

स्वीडन स्थित एक समाचार पत्र में छपी रिपोर्ट के अनुसार वहां पहुंचने वाले शोध क्षेत्र के 30 चीनी विद्यार्थियों ने चीनी कम्युनिस्ट सरकार के प्रति वफादारी की शपथ लेते हुए अनुबंध में हस्ताक्षर किया था।


रिपोर्ट के अनुसार चीनी कम्युनिस्ट सरकार इस तरह की गतिविधियों को बीते एक दशक से भी अधिक समय से अंजाम दे रही है और विदेश जाने वाले चीनी विद्यार्थियों को इस तरह के अनुबंध हस्ताक्षर करने को मजबूर कर रही है।


“मिली जानकारी के अनुसार चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने इस तरह के अनुबंध को मानकर विदेश जाने वाले विद्यार्थियों को गारंटर लाने की शर्त भी रखी हुई है, जिसके बाद यदि विदेश में चीनी विद्यार्थी चीनी कम्युनिस्ट सरकार या पार्टी के विरोध में कोई गतिविधि करता है या उसकी आलोचना करता है तो उस गारंटर व्यक्ति को सजा दी जा सके।”


देश और राष्ट्र हित के नाम पर चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने विदेशों में मौजूद अपने विद्यार्थियों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी समेत शी जिनपिंग पर भी किसी तरह की नकारात्मक टिप्पणी करने पर पाबंदी लगाई हुई है।


विद्यार्थियों से अनुबंध में यह भी कहा जाता है कि वह जिस देश में हैं, वहां के कानूनों के साथ-साथ चीन के नियमों का पालन भी उन्हें करते रहना है।


रिपोर्ट के अनुसार विद्यार्थियों को दो गारंटर देने होते हैं और अनुबंध के अनुसार यदि विद्यार्थी चीनी दूतावास को सभी जानकारी देने में असफल होता है या अनुबंध के किसी शर्त को नहीं मानता है तो उसके गारंटर पर कार्रवाई की जाती है।


एक रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है कि वर्ष 2021 में चीन ने 27,000 विद्यार्थियों को सार्वजनिक धन से विदेशों में छात्रवृत्ति के माध्यम से पढ़ने भेजा है, ऐसे में उनकी पूरी छात्रवृत्ति कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति उनकी वफादारी पर निर्भर होती है। ध्यान रहे, यह विशेष तौर पर कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी की बात है, सिर्फ चीन के प्रति नहीं।


दअरसल चीन अपने विद्यार्थियों का उपयोग दूसरे देशों में जासूसी के लिए भी करता रहा है। बीते वर्ष जुलाई में एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि चीन विदेशों में जासूसी करवाने के लिए अपने विद्यार्थियों को भर्ती कर रहा है।


इसके अलावा ब्रिटेन से एक खबर में यह भी पता चला था कि यूके की जासूसी संस्था एमआई-5 के दावे के बाद चीन के 50 से अधिक विद्यार्थियों ने यूके में अपने शोधकार्य को अधूरा छोड़ चीन जाने का निर्णय लिया था।


एमआई-5 ने कहा था कि चीनी विद्यार्थी यूके की बौद्धिक संपदा को चुराने का कार्य कर रहे हैं, इसके बाद सरकार और तमाम शिक्षण संस्थाओं के प्रशासन ने नियमों एवं प्रावधानों को कड़े कर दिए थे, जिसके बाद 50 से अधिक चीनी शोधकर्ताओं ने यूके छोड़ दिया था।


विदेशों में चीनी विद्यार्थी समूह के द्वारा जासूसी के कई मामले सामने आ चुके हैं। कुछ मामलों में इसके तार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से भी जुड़े हुए नजर आते हैं।


शिकागो में एक विद्यार्थी पर इस बात का आरोप भी सिद्ध हो चुका है कि वह चीनी कम्युनिस्ट सरकार के लिए जासूसी करता था। इसके अलावा अमेरिका के तमाम विश्वविद्यालयों के कैम्पस में चीनी विद्यार्थियों के द्वारा जासूसी किए जाने के दावे किए जाते रहे हैं।


अमेरिका ने बार-बार यह आरोप लगाए हैं कि चीन उनकी तकनीक और बौद्धिक संपदा को विश्वविद्यालय कैम्पस के माध्यम से चोरी कर रहा है।


इन सब के बीच जब यह बात खुलकर सामने आ चुकी है कि चीन के द्वारा विदेश में जाने वाले विद्यार्थियों को 'पार्टी के प्रति निष्ठा' रखने के लिए उनसे अनुबंध में हस्ताक्षर कराया जा रहा है।


इसके अलावा नियमों को तोड़ने या अनुबंध के अनुसार संबंधित देश में मौजूद चीनी दूतावास को रिपोर्ट ना करने की स्थिति में उनके गारंटर पर कार्रवाई की जा रही है, तो स्पष्ट तौर पर यह इस बात का प्रमाण है कि चीन विदेश में जा रहे चीनी विद्यार्थियों के माध्यम से षड्यंत्र रच रहा है।


इसके अलावा चीनी कम्युनिस्ट सरकार को लेकर यह बात भी साफ हो चुकी है कि, जो विद्यार्थी जासूसी नहीं भी करना चाहते होंगे उन्हें दबाव डालकर या ब्लैकमेल कर चीनी कम्युनिस्ट सत्ता के द्वारा विदेशों में 'गैरकानूनी' कृत्यों में ढकेला जा रहा है।


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और शी जिनपिंग की अधिनायकवादी सत्ता में चीन में रह रहे नागरिक तो पहले से ही स्वतंत्र नहीं थे, अब इस रिपोर्ट के बाद यह कहा जा सकता है कि कम्युनिस्ट शासन के कारण चीन से बाहर जाने वाले विद्यार्थियों की स्वतंत्रता भी लगभग नगण्य है।