ईसाइयों को बचाने पीड़ित जनजातियों को ही निशाना बना रही कम्युनिस्ट लॉबी

वृंदा करात ने ईसाइयों के विस्थापित होने की बात कही, लेकिन यह नहीं बताया कि ईसाइयों के आतंक के कारण कितने ही जनजाति परिवार जंगलों में दर-दर भटक रहे हैं।

The Narrative World    25-Jan-2023   
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छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में जिस प्रकार से धर्मान्तरित ईसाइयों ने स्थानीय मूल जनजातीय संस्कृति को मानने वाले जनजातियों पर हिंसक हमले किए, उन्हें जान से मारने का प्रयास किया और ग्रामीणों के भीतर भय का माहौल निर्मित किया, उसके बाद बस्तर में साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति देखी गई।


जनजातीय ग्रामीणों की शिकायत और निवेदन के बाद भी जब शासन-प्रशासन ने आरोपियों पर कार्रवाई नहीं की, तब आक्रोशित जनजाति समाज ने धरना-प्रदर्शन किया, जिस दौरान छिटपुट हिंसा की घटना देखने को मिली।


हालांकि जनजातीय समाज का कहना है कि हिंसा की घटना को विरोध प्रदर्शन में शामिल होकर कुछ अराजक एवं असामाजिक तत्वों ने अंजाम दिया, लेकिन बावजूद इसके पुलिस निर्दोष जनजातीय युवाओं को गिरफ्तार कर रही है।


अब इन सब मामलों में जहां शासन-प्रशासन पीड़ित जनजाति समाज को ही आरोपी बनाने में जुटा है, तो वहीं दूसरी ओर कम्युनिस्ट लॉबी ने भी ईसाइयों को ही पीड़ित दिखाते हुए जनजाति समाज से जुड़े संगठनों को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया है।


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने उत्तर बस्तर क्षेत्र का दौरा करने के बाद जनजाति समाज के हितों की रक्षा में लगे संगठन पर आरोप लगाया है, साथ ही ईसाइयों को पीड़ित दर्शाते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है।


कम्युनिस्ट समूह द्वारा चलाए जाने वाले प्रोपेगैंडा को आगे बढ़ाते हुए वृंदा करात ने बस्तर में साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति के किए आरोपी ईसाइयों, ईसाई मिशनरियों और हिंसक हमला करने वाले पादरी के नेतृत्व में धर्मांतरितों के समूह को छोड़कर भाजपा और संघ पर आरोप लगाया है।


धर्मान्तरित ईसाइयों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा की मांग करते हुए वृंदा करात ने कांग्रेस सरकार की भी आलोचना की है, साथ ही मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा है।


उत्तर बस्तर क्षेत्र के मात्र 100 के करीब लोगों से चर्चा कर वृंदा करात ने यह निष्कर्ष निकाला है कि हिंदु जनजाति समूह ही धर्मांतरितों को प्रताड़ित कर रहा है।


गौर करने वाली बात यह है कि वृंदा करात ने जिन 100 लोगों से बात की है, उनमें अधिकांश पादरी, धर्मान्तरित ईसाई और चर्च समर्थित लोग हैं जो बस्तर की मूल जनजाति संस्कृति को पहले ही छोड़ चुके हैं।


वृंदा करात ने चर्चों में तोड़फोड़ की बात की, दफनाए शवों को बाहर निकालने की बात की, कथित हिंसा की बात की, ईसाइयों के विस्थापित होने की बात की, सामाजिक बहिष्कार की बात की, लेकिन उन्होंने मूल जनजातीय संस्कृति मानने वाले लोगों की पीड़ा पर कोई बात नहीं की।


उन्होंने यह नहीं बताया कि देव गुड़ी का ईसाइयों द्वारा विरोध किया जाता है। उन्होंने यह नहीं बताया कि जनजातीय देवी-देवताओं पर ईसाइयों के द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणी की जाती है। उन्होंने यह नहीं कहा कि जनजातीय संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाजों का धर्मान्ततित समूह उपहास उड़ाता है।


उन्होंने यह नहीं बताया कि यदि किसी ईसाई की मृत्यु हो गई, तो जानबूझकर कर जनजातियों के शवदाह क्षेत्र में उसका अंतिम संस्कार करने का षड्यंत्र रचा जाता है। जनजातियों का साफ कहना है कि जब कोई ईसाई बन गया है, तो उसका अंतिम संस्कार ईसाई कब्रिस्तान में किया जाए, ना कि जनजातियों की भूमि पर किया जाए।


वृंदा करात ने यह नहीं कहा कि 31 दिसंबर और 1 जनवरी को ईसाइयों की आतंकी भीड़ ने जनजातियों के साथ हिंसक वारदात को अंजाम दिया। जानलेवा हमले किए। जनजातीय ग्रामीणों को मारने की कोशिश की। महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ा।


वृंदा करात ने ईसाइयों के विस्थापित होने की बात कही, लेकिन यह नहीं बताया कि ईसाइयों के आतंक के कारण कितने ही जनजाति परिवार जंगलों में दर-दर भटक रहे हैं।


वृंदा करात ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में ईसाइयों की पीड़ा के बारे में तो जरूर लिखा है, लेकिन उन्होंने 1 जनवरी को हुई हिंसक घटना कोई उल्लेख नहीं किया है।


उन्होंने चर्चों में हमलों का जिक्र किया लेकिन उनके पत्र में जनजातीय समाज की बैठक में ईसाइयों के हमले का कोई जिक्र दिखाई नहीं देता।


एक तरफ जहां ग्रामीणों ने कैमरे के सामने जबरन धर्मान्तरण से लेकर प्रलोभन और दबाव का उल्लेख किया है, वहीं वृंदा करात कहती हैं कि इस क्षेत्र में जबरन धर्मान्तरण का कोई मामला ही नहीं आया है।


ईसाइयों को बचाने और उन्हें पीड़ित दिखाने के लिए जिस प्रकार से पूरा वामपंथी समूह जनजातियों को निशाना बना रहा है, उससे यह तो स्पष्ट है कि कम्युनिस्ट विचार जनजातियों के लिए नहीं बल्कि ईसाइयों के लिए काम करता है।


दरअसल यह पहली बार नहीं है कि ईसाइयों का पक्ष लेकर कोई कम्युनिस्ट समूह जनजातियों को निशाना बना रहा है।


इससे पहले हाल ही में एक कम्युनिस्ट और ईसाई समूह ने मिलकर फ़ैक्ट फाइंडिंग टीम नारायणपुर भेजी थी, जिसने अपनी रिपोर्ट में जनजातियों को ही दोषी बताया था।


वहीं इसके पहले भी मेधा पाटकर, बेला भाटिया और ज्यां द्रेज जैसे लोगों ने ईसाइयों को पीड़ित दिखाते हुए जनजातियों को ही आरोपी और दोषी के रूप में पेश किया था।