भारतीय सेना का एक जवान देश सेवा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने को भी तत्पर होता है, यदि उसी भारतीय सेना के जवान को किसी फिल्म में एक आतंकवादी के रूप में दर्शाया जाए, तो हमें कैसा लगेगा या यह कहें कि भारतीय सेना का एक जवान जो कि सबसे पहले देश को आगे रखकर अपने प्राणों को भी बलिदान कर देता है।
ऐसी स्थिति में जब फिल्मों के भीतर सेना के जवानों को नकारात्मक छवि में एक आतंकवादी के रूप में पेश किया जाता है, तो ऐसी फिल्मों को हम किस प्रकार से देख सकते हैं अथवा उन पर चर्चा करना आवश्यक है भी या नहीं।
अभी हाल ही में यशराज बैनर मैं बनी 'पठान' फिल्म की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। इसी के चलते पठान मूवी की कहानी पर किसी भी प्रकार की कोई बात हो ही नहीं रही है।
केवल फिल्म के दृश्य, कंप्यूटर वीएफएक्स ग्राफिक, कलाकारों का अभिनय जैसे मुद्दों पर ही बात हो रही है। जबकि किसी भी फिल्म की कहानी उसकी सबसे जान होती है। जिसे केवल यह कहकर किनारे किया जा रहा है कि फिल्म की कहानी इतनी खास नहीं है।
जबकि इस तरह की कहानियां एक निश्चित वर्ग को आकर्षित भी करती हैं। और लोगों को भ्रमित करने में काम भी करती है। इस मूवी में पूर्व भारतीय सैनिक जो कि देश सेवा करते हुए अपने प्राणों को बलिदान कर देता है किंतु उसे एक खलनायक के रूप में एक आतंकवादी के रूप में नकारात्मक भूमिका में दर्शाया जाता है।
जोकि सिस्टम के द्वारा अपने ऊपर अत्याचार का बदला लेने के लिए आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करता है, जैसा कि फिल्म में दिखाया गया है। उसमें भी सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई जो कि भारत में हुए हर एक आतंकवादी हमले के पीछे रहती है।
जो हमेशा ही भारत को नष्ट करने का सपना देखती रही है। ऐसी आई एस आई एजेंसी को भारत के हित में काम करने वाला बतला कर क्या विमर्श स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।
यहां बात केवल फिल्म के कलाकारों की ही नहीं हो रही है। बल्कि फिल्म निर्माता कंपनी यशराज बैनर की भी की जा रही है। यशराज बैनर एक 'स्पाय यूनिवर्स' बना रहा है जिसमें 'एक था टाइगर', 'टाइगर जिंदा है', 'वार', 'पठान', जैसी मुख्य जासूसी फिल्में है जिनमें पूर्व भारतीय सैनिक तथा रॉ रोज ऐसी खुफिया भारतीय एजेंसी में देश सेवा करने वाले सैनिकों को खलनायक के रूप में हमेशा से दिखाया जाता रहा है।
यदि बात की जाए एक था टाइगर की तो हम उसके शुरुआती दृश्य में ही देखते हैं कि किस प्रकार से भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के एक एजेंट को गद्दार के रूप में दर्शाया जाता है और फिल्म का मुख्य नायक जिसका नाम टाइगर है, उसे खत्म करता है और अपने मिशन को पूरा करता है।
इसके साथ ही इसी फिल्म में आगे दिखाया जाता है कि किस प्रकार से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी 'आई एस आई' 'रॉ' की मदद करती है और फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है।
जब एक फिल्म निर्माता कंपनी अपनी फिल्मों के माध्यम से यह बतलाने का प्रयास करें कि भारत के दुश्मन देशों की खुफिया एजेंसी के बिना भारत स्वयं को सुरक्षित ही नहीं रख सकता है। तब इस प्रकार के झूठे प्रोपेगेंडा को सबके सामने लाने की आवश्यकता है।
इसके बाद 'एक था टाइगर' का ही अगला भाग में बनाया जाता है 'टाइगर जिंदा है'। जिसमें बताया जाता है कि सीरिया में जो भारतीय लड़कियां नर्स का काम करने के लिए जाती है और उन्हें वहां के आतंकवादी संगठन द्वारा बंदी बना लिया जाता है और भारतीय खुफिया एजेंसी 'रॉ' एक मिशन तैयार करती है। जिस मिशन को पूरा करने में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भारतीय खुफिया एजेंसी की सहायता करती है और वहां से सभी लड़कियों को वापस भारत लाया जाता है।
इसी के बाद एक फिल्म और है 'वार'। जिसमें बताया है कि किस प्रकार से एक सिपाही जो अपने मजहब का पक्का है और अपने देश की सेवा करना चाहता है किंतु उसी का साथी सौरभ अपने देश से गद्दारी करता है और अपने देश के खुफिया जानकारी देश के दुश्मनों के साथ साझा करता है। अंत में सौरभ गद्दार साबित होता है और फिल्म का नायक उसे समाप्त कर देश को बचाता है।
ऐसी ही कुछ कहानी अभी आयी फिल्म 'पठान' की भी है। जिसमें बताया गया है कि पूर्व भारतीय सैनिक जो आतंकवादी बन चुका है। जिससे देश को बचाने के लिए भारत की खुफिया एजेंसी 'रॉ' की मदद आई एस आई करती है। जो कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी है। जिसके ऊपर भारत में सभी प्रकार के आतंकवादी हमला की जिम्मेदारी है। उसको भारतीय खुफिया एजेंसी की सहायता करते हुए फिल्म दिखाया जाता है और फिल्म में एक पूर्व भारतीय सैनिक जो कि आतंकवादी बन चुका है उससे देश को बचाया जाता है।
भारतीय सेना के सैनिकों का ऐसा नकारात्मक चित्रण पिछले 8 वर्षों से लगातार हो रहा है। भारतीय सेना का पूरे विश्व में बहुत बड़ा सम्मान है। भारत की जनता को भारतीय सेना पर पूरा विश्वास है कि उनके रहते भारत पर किसी भी प्रकार की आंच नहीं आ सकती है।
किंतु फिल्मों में भारतीय सैनिकों का इस तरह का चित्रण सेना के मनोबल को तो गिराता ही है, साथ ही देश की जनता के भीतर उनके लिए नकारात्मक छवि बिगड़ने का काम करता है। इस प्रकार की फिल्म और इस प्रकार की कहानियां का विरोध होना स्वाभाविक भी है और एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य भी है।
यह भी एक भारत विरोधी विमर्श ही है, जिसमें भारतीय सुरक्षा संस्थानों में काम करने वाले प्रखर राष्ट्र भक्तों को नकारात्मक छवि के रूप में प्रदर्शित करना और उनके ऊपर आतंकवादी जैसे गणित शब्दों का उपयोग करना। जिससे सामान्य नागरिक के मन में उनके प्रति एक नकारात्मक छवि बने और सेनाओं तथा सुरक्षा संस्थानों में काम करने वाले राष्ट्रभक्तों का मनोबल गिराने का काम किया जा सके।
इस तरह के सभी प्रयासों को विफल करने की जिम्मेदारी भी देश के सामान्य नागरिकों की ही है। फिल्म अथवा धारावाहिक और वेब सीरीज यह हमारे मनोरंजन के लिए हो सकते है लेकिन इनका उपयोग किसी की सकारात्मकता को समाप्त करते हुए देखने वालों के मन में नकारात्मक छवि गढ़ने का जो काम पिछले कुछ वर्षों से लगातार हो रहा है उसके विरोध में आवाज उठाना आवश्यक है।
लेख
सनी राजपूत