नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार आने के बाद बढ़ी चीनी गतिविधियां

जैसे ही नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी वैसे ही दौरे के लिए चीन से एक विशेषज्ञ टीम नेपाल पहुंची थी। दरअसल प्रचंड द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद चीन नेपाल को लेकर अतिसक्रिय हो चुका है।

The Narrative World    28-Jan-2023   
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बीते वर्ष नेपाल में आम चुनाव हुए थे, जिसके बाद पुष्प कमल दहल के कम्युनिस्ट समूह ने नेपाली कांग्रेस पार्टी से अपने गठबंधन को किनारे करते हुए अन्य कम्युनिस्ट समूहों के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया, जिसमें उनका साथ भारत विरोधी और चीन के प्रति झुकाव रखने वाले केपी शर्मा ओली ने दिया।


इस फैसले के बाद पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने प्रधानमंत्री के रूप में एक बार फिर नेपाल की सत्ता संभाली। नेपाल में कम्युनिस्ट समूह की सत्ता वापसी के बाद से यह देखा जा रहा है कि देश में चीन की गतिविधियों में अचानक से इजाफा हुआ है।


चीन आरंभ से इस प्रयास में था कि नेपाल में सभी कम्युनिस्ट दल एक होकर चुनाव लड़ें और एकमत होकर सरकार चलाएं।


यही कारण है कि जैसे ही नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी वैसे ही दौरे के लिए चीन से एक विशेषज्ञ टीम नेपाल पहुंची थी।


दरअसल प्रचंड द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद चीन नेपाल को लेकर अतिसक्रिय हो चुका है।


बीते 27 दिसंबर को काठमांडू-केरूंग रेलवे का विस्तृत अध्ययन करने के नाम से चीनी विशेषज्ञों की टीम ने नेपाल का दौरा किया था।


यह रेलवे परियोजना चीन की महत्वकांक्षी बीआराई प्रोजेक्ट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें नेपाल भी शामिल है।


प्रचंड ने प्रधानमंत्री बनते ही जिस प्रकार चीन से जुड़ी परियोजनाओं में दिलचस्पी दिखाई है, उसे लेकर काठमांडू के विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री चिंतित हैं।


उनका कहना है कि चीन द्वारा नेपाल में बड़ी परियोजनाओं के निवेश के बाद यहां भी श्रीलंका जैसे हालात हो सकते हैं। नेपाल को भी चीन श्रीलंका की तरह अपने कर्ज-जाल में फंसा सकता है।


ऐसी परिस्थितियों में नेपाल की संप्रभुता ना सिर्फ कमजोर हो सकती है, बल्कि उसका नियंत्रण ऐसे हाथों में हो सकता है जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अस्थिरता ला सकता है।


दअरसल भारत और चीन के संबंध वर्तमान समय में जिस दौर से गुजर रहे हैं उसमें नेपाल की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है।


नेपाल दोनों देशों के बीच एक अंतस्थ राज्य (बफर स्टेट) का कार्य करता है, ऐसे में वहां चीन से प्रभावित किसी भी सरकार का आना भारत के लिए चुनौती बन सकता है।


दरअसल नेपाल में हुए आम चुनाव से पहले ही विभिन्न रिपोर्ट में इस बात की जानकारी सामने आ गई थी कि चीन अपनी गतिविधियों को तेजी से बढ़ा रहा है।


हालांकि नेपाल में चीन के द्वारा की जा रही तमाम गतिविधियों को लेकर नेपाली जनता के बीच नकारात्मक प्रभाव पड़ा था और नेपाली जनता ने इसका जवाब देते हुए चुनाव में नेपाली कांग्रेस पार्टी को सबसे अधिक सीटें मिली थी।


लेकिन इन सबके बीच प्रचंड ने नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के लिए अपने गठबंधन दलों को ही किनारे कर केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी से गठबंधन कर सत्ता हथिया ली।


चीनी कम्युनिस्ट सरकार हमेशा से यह चाहती रही है कि नेपाल की सभी कम्युनिस्ट पार्टियां एकजुट होकर चुनाव लड़े और नेपाल की सत्ता में शासन करे।


“चीनी कम्युनिस्ट सरकार की नीतियों से प्रभावित होकर नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों ने वर्ष 2017 में आपस में मिलकर चुनाव भी लड़ा था, लेकिन आपसी मतभेदों के चलते यह गठबंधन भी लंबे समय तक नहीं चल सका।”


इस बार फिर चुनाव से पहले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश संपर्क विभाग के एक प्रतिनिधिमंडल ने नेपाल का दौरा किया था और कम्युनिस्ट नेताओं से मुलाकात की थी।


इस दौरे के बाद विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया था कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी नेपाल के कम्युनिस्ट दलों को एक होकर चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित कर रही है।


हालांकि यह संभव नहीं हो पाया और नेपाल के दो बड़े कम्युनिस्ट दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा।


लेकिन अंततः चीन में कम्युनिस्ट दल की सरकार बनी और इसके बाद चीन ने अपनी गतिविधियों को नेपाल में तेज कर दिया है।


एक तरफ जहां चीन नेपाल की जमीन को हथिया रहा है वहीं दूसरी ओर नेपाल में बैठी कम्युनिस्ट सरकार इस मामले में चुप्पी साधे बैठी है।


एक मीडिया रिपोर्ट में इस बात की जानकारी सामने आई है कि नेपाल की उत्तरी सीमा पर चीन से जुड़े क्षेत्रों में चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने 10 स्थानों पर लगभग 36 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा कर लिया है।


चीन द्वारा नेपाल की भूमि पर कब्जा किए जाने की रिपोर्ट आधिकारिक रूप से कृषि मंत्रालय के द्वारा जारी किए गए सर्वे के दस्तावेज में भी सामने आई है।


हालांकि प्रचंड और केपी शर्मा ओली दोनों चीन के प्रति झुकाव वाले नेता माने जाते हैं और वर्तमान में नेपाल की सत्ता को इन्हीं दोनों नेताओं के द्वारा चलाया जा रहा है, ऐसे में यह असंभव है कि नेपाल की वर्तमान सरकार चीन के विरुद्ध कोई बड़ा कदम उठा सकती है।


हालांकि चीन ने जिस तरह से नेपाल की अंदरूनी राजनीति में पहले भी दखल दिया है उससे यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में उसकी दखलअंदाजी कम नहीं होगी बल्कि और अधिक बढ़ेगी।