यूरोप में इस्लामोफोबिया नहीं, बल्कि इस्लामिक जिहाद के विरुद्ध आक्रोश बढ़ रहा है

एक अमेरिकी थिंक टैंक की रिसर्च में यह बात सामने आई है कि मुस्लिमों की आबादी जिस गति से यूरोप में बढ़ रही है उससे अगले 3 दशकों में यूरोप में मुस्लिम दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले नागरिक बन जाएंगे।

The Narrative World    28-Jan-2023   
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यूरोप के तमाम देशों में इस्लामिक जिहाद को लेकर अब आवाजें उठनी शुरू हो गई है।

कुछ समय पूर्व फ्रांस में इस्लामिक जिहादियों द्वारा किए गए आतंकी वारदातों के बाद अब धीरे-धीरे यूरोप के अन्य देश भी इस्लामिक कट्टरपंथ को लेकर सतर्क होते दिखाई दे रहे हैं।


मुस्लिमों की बढ़ती जिहादी गतिविधियों एवं तुर्की जैसे इस्लामिक देशों के द्वारा यूरोपीय देशों के साथ बिगड़ते संबंधों ने इस माहौल को और गर्म करने का प्रयास किया है।


इसी क्रम में स्वीडन, नीदरलैंड्स और डेनमार्क में कुरान जलाने और उसे फाड़ने की कुछ खबरें सामने आई हैं, जिसके बाद एक बार फिर इस्लामिक मुल्कों ने यूरोपीय देशों पर अपनी नाराजगी जताई है।


तुर्की जो स्वयं को इस्लाम का सिपहसालार कहता है, जिसका राष्ट्रपति एर्दोआन स्वयं खलीफा बनना चाहता है, उसने स्वीडन को नीचा दिखाने का प्रयास किया और उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को नजरअंदाज किया।


इस घटना के बाद स्वीडन के एक नेता ने बीते 21 जनवरी को स्वीडन में मौजूद तुर्की दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन की अनुमति मांगी जिसके बाद इस विरोध प्रदर्शन के दौरान इस्लामिक मुल्क और कथित खलीफा तुर्की को नीचा दिखाने के लिए कुरान की प्रति जलाई गई।


इस घटना ने एक बार फिर इस बात की चर्चाओं को वैश्विक मीडिया में ला दिया है कि यूरोप में बढ़ती मुस्लिम आबादी से बड़ी संख्या नाखुश है।


दरअसल स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में मुस्लिमों की आबादी बढ़ने को लेकर पहले भी विरोध देखें गए हैं, लेकिन स्वीडन की वामपंथी सरकार ने तुष्टिकरण की नीति के चलते इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया।


ऐसे अब जब कुरान की प्रति स्वीडन में जलाई गई है, तब इसका प्रभाव दूसरे यूरोपीय देशों में भी दिखाई दे रहा है।


स्वीडन में हुई घटना के बाद डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में भी एक मस्जिद और तुर्की दूतावास के बाहर कुरान जलाने का मामला सामने आया है। शुक्रवार को डेनमार्क में मस्जिद के सामने कुरान की प्रति जलाई गई है।


कुरान जलाने वाले नेता रासमुस पालुदान का कहना है कि जबतक तुर्की स्वीडन की राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीरता में लेते हुए उसके नाटो में शामिल होने का विरोध करना बंद नहीं करेगा, तब तक प्रत्येक शुक्रवार को वो कुरान की प्रतियां जलाता रहेगा।


कुरान जलाने की यह घटना केवल स्वीडन और डेनमार्क तक ही सीमित नहीं रही है, इसका असर नीदरलैंड में भी दिखाई दिया है।


नीदरलैंड की संसद के सामने एडविन वैगन्सफेल्ड ने पहले तो कुरान के पन्नो को फाड़ा और उसके बाद पैरों से रौंदते हुए उसमें आग लगा दी।


यूरोप के इन देशों की तीखी प्रतिक्रिया के बाद तुर्की पूरी तरह से बौखला चुका है। तुर्की ने इन देशों के राजदूतों को तलब किया है, साथ ही इन घटनाओं की निंदा की है।


तुर्की समेत तमाम इस्लामिक देश तिलमिलाए हुए दिखाई दे रहे हैं। पाकिस्तान की सड़कों पर तो लोगों ने रैली निकाल कर नारेबाजी भी की है।


पाकिस्तान, तुर्की समेत कुवैत, सऊदी अरब, कतर और ईरान ने भी इसका विरोध किया है।


इन सब के बीच नाटो में सदस्यता के लिए स्वीडन के साथ कतार में खड़े फिनलैंड का कहना है कि इन इस्लाम विरोधी गतिविधियों के पीछे रूस का हाथ है।


हालांकि सबसे बड़ी बात यह है कि यूरोप के इन देशों में जिस तरह से मुस्लिमों ने अपनी आबादी बढ़ाई है, उसने स्थानीय निवासियों को एक खतरे का आभास कराया है।


आबादी बढ़ाने के साथ-साथ इन देशों में मुस्लिमों ने शरिया की मांग, अलग कानूनों की मांग समेत इस्लामिक गतिविधियों को भी तेज किया है, जिसके कारण अब लोग इन्हें शक की नजर से देखने लगे हैं।


कई यूरोपीय शहरों में मुस्लिमों की बढ़ती आबादी के कारण अपराध बढ़ चुके हैं, कुछ क्षेत्र इस्लामिक बहुल होने के चलते 'नो गो ज़ोन' बन चुके हैं।


स्वीडन को लेकर एक रिपोर्ट भी सामने आ चुकी है कि इस्लामिक शरणार्थियों को नागरिकता देने के कारण अब वहां के मूल निवासी हैं मुश्किलों से गिरने वाले हैं।


फिनलैंड की शोधार्थी क्योस्ति तरवीनैन ने अपने रिसर्च में यहां दावा किया था कि अगले 45 सालों में ही स्वीडन के मूल निवासी अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे।


रिपोर्ट में इस बात की भी जानकारी आई थी कि वर्ष 2100 तक स्वीडन में सबसे अधिक आबादी मुस्लिमों की होगी।


“दरअसल भारत में जिस तरह से छोटे-छोटे पॉकेट में मुस्लिमों की तादाद तेजी से बढ़ रही है कुछ इसी प्रकार यूरोप के तमाम देशों में मुस्लिम अपनी जनसंख्या को बढ़ा रहे हैं। इसके लिए मुस्लिम अधिक बच्चे पैदा करने से लेकर धर्म परिवर्तन का भी सहारा ले रहे हैं।”


इसी जनसंख्या असंतुलन की स्थिति को देखते हुए वर्ष 2020 में भी स्वीडन में दंगे भड़के थे।


मुस्लिमों की जिहादी गतिविधियों के विरोध में स्वीडन में कुरान की प्रति जलाई गई थी, जिसके बाद स्थानीय मुस्लिमों ने विरोध प्रदर्शन के नाम पर दंगे और आगजनी को अंजाम दिया था।


सिर्फ स्वीडन ही नहीं यूरोप के अन्य देश फ्रांस, ब्रिटेन, इटली और जर्मनी भी मुस्लिमों की बढ़ती आबादी से चिंतित हैं। फ्


रांस में चार्ली हेब्दो की घटना हो या पेरिस में जिहादियों की हिंसा, ब्रिटेन में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा हिंदुओं को निशाना बनाना हो या जर्मनी में मुस्लिमों की बढ़ती जनसंख्या, इन सभी के पीछे जिहादी विचार ही कार्य कर रहा है।


दरअसल जिस तरह से मध्य पूर्व के हालातों का बहाना बनाकर मुस्लिमों की बड़ी आबादी को यूरोप की ओर स्थानांतरित किया गया है उसे अब यूरोप की स्थानीय जनता भली-भांति समझ रही है।


एक अमेरिकी थिंक टैंक की रिसर्च में यह बात सामने आई है कि मुस्लिमों की आबादी जिस गति से यूरोप में बढ़ रही है उससे अगले 3 दशकों में यूरोप में मुस्लिम दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले नागरिक बन जाएंगे।


मुस्लिम जिस देशों में अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं वहां अब अलग कानून से लेकर अलग निवास स्थान और बड़े मस्जिदों के लिए जमीनों की मांग कर रहे हैं। स्


पेन, बेल्जियम समेत नार्डिक देश भी इस्लामिक जिहाद के मकड़जाल में फंसते जा रहे हैं, ऐसे में इस्लामिक विचार के प्रति नफरत तेजी से पूरे यूरोप में फैल रहा है।


इस नफरत को इस्लामिक देश और तुष्टिकरण करने वाली कम्युनिस्ट लॉबी इस्लामोफोबिया का नाम दे रही है, लेकिन सच्चाई यही है कि इस्लामिक जिहादियों ने पूरी दुनिया के सामने बार-बार अपने कट्टरपंथ और जिहादी विचार को सामने रखा है कि यूरोप की आम जनता भी कुरान जलाने वालों का समर्थन करती नजर आ रही है।