कम्युनिस्ट अतिवादियों से लेकर मिशनरियों तक जानिए क्या है भारत जोड़ो यात्रा के पीछे की कवायद !

कांग्रेस को यह समझना होगा कि दशकों तक गरीबी हटाओ के जुमले से लेकर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के फॉर्मूले को भूनाकर सत्ता कब्जाए रखने के दिन अब लद चुके हैं

The Narrative World    30-Jan-2023   
Total Views |

Representative Image

भारत को दो टुकड़ों में बांटने का आरोप झेलती रही कांग्रेस की वर्तमान विरासत ओढ़े कथित भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस के डी-फैक्टो सर्वेसर्वा राहुल गांधी ने सोमवार 30 जनवरी को जम्मू कश्मीर में 12 राज्यों से गुजरी अपनी इस 136 दिनों की इमेज मेकओवर यात्रा को अंततः विराम दे दिया है।
 
इस दौरान कन्याकुमारी से लेकर जम्मू कश्मीर तक की यात्रा कर चुके राहुल एवं कंपनी ने देश के धार्मिक सौहार्द ठीक करने के नाम पर इस कथित गैर राजनीतिक यात्रा में सुनियोजित प्रोपोगेंडा स्टंट को बढ़ावा देने के साथ साथ जमकर राजनीतिक रोटियां सेंकने का भी प्रयास किया है हालांकि इन सब के बीच इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी के साथ कदमताल करने वाले नुमाइंदों का अवलोकन करें तो इसमें संदेह की नहीं कि सत्ता की कुंजी पर दृष्टि टिकाए बैठे राहुल, 2024 की सत्ता की रेस में जात-पात, तुष्टिकरण एवं कम्युनिस्ट प्रेम की सम्मिश्रित पारंपरिक परिपाटी को लेकर सरपट दौड़ना चाहते हैं।
 
इस क्रम में वेटिकन के प्रति गहरी श्रद्धा रखने वाले राहुल को देश भर में वेटिकन के देख रेख में चल रहे चर्चों एवं ईसाई मत के प्रतिनिधियों का समर्थन तो बेहद स्वाभाविक है बावजूद इसके सत्ता पर पकड़ मजबूत करने की जुगत में लगे राहुल ने भारत माता को अपशब्द कहने वाले पादरी को यात्रा में जोड़ कर यह स्पष्ट संदेश दिया कि उन्हें भारत में अपने मत अपने पंथ को देश के ऊपर रखने वाले लोगों को साथ लेकर चलने से कोई गुरेज नहीं और जहां तक बात ईसाई धर्म को मानने वालों लोगों की है तो विवादित पादरी से येशु की शक्ति का भेद समझने का राहुल का प्रयास पूरे संप्रदाय के सामने स्वयं को उनकर बीच के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने का ही था।
 

Representative Image 
 
ईसाई मिशनरियों, धर्मावलंबियों को साधने से इतर इस पूरी यात्रा के दौरान राहुल, भाजपा एवं आरएसएस पर जमकर बरसे, इस क्रम में संघ गणवेश की जलती छायाचित्र साझी करने से लेकर बारंबार संघ एवं भाजपा पर धार्मिक विद्वेष को बढ़ावा देने का आरोप मढ़ कर राहुल ने अल्पसंख्यक वोटों के तुष्टिकरण के लिए जीतोड़ प्रयास किया है।
 
यह बताने की आवश्यकता नहीं कि वर्तमान सरकार को उसके विकास की परियोजनाओं एवं तेजी से बदल रहे वैश्विक परिदृश्य में सशक्त होकर उभरते नए भारत को विकास का वैकल्पिक मॉडल देने के बजाए राहुल की यात्रा का पूरा ध्यान संघ एवं भाजपा की नकारात्मक छवि गढ़ कर कथित अल्पसंख्यकों के मतों को खींचने का रहा है, इसलिए इस पूरी यात्रा के दौरान राहुल स्वयं को नफरत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान सजाने वाला बताते रहे।
 
कांग्रेस एवं राहुल के उद्देश्यों से इतर इस पूरी यात्रा में समय समय पर सहभागिता दिखाने वाले कथित बुद्धिजीवियों की उपस्थिति यह बताने के लिए भी पर्याप्त थी कि राहुल की इस यात्रा पर कांग्रेस के प्रथम परिवार की विरासत बचाने के अतिरिक्त दशकों से देश मे लोकतांत्रिक व्यवस्था को मिटाकर अधिनायकवादी व्यवस्था स्थापित करने की मंशा रखने वाले कम्युनिस्ट अतिवादीयों का भी बोझ है जिनके लिए राहुल उम्मीद की शायद अंतिम किरण हैं यही कारण है कि योगेंद्र यादव से लेकर, मेधा पाटकर एवं स्वरा भास्कर, प्रशांत भूषण से लेकर पूर्व कॉमरेड कन्हैया कुमार तक राहुल गांधी की इस यात्रा में मजबूती से कदमताल करते दिखाई पड़े।
 

Representative Image 
 
राजनीतिक दलों की बात करें तो एक आध अपवादों को छोड़कर परिवारवाद की राजनीति करने वाले दलों के लिए भी राहुल की यह यात्रा वंशवाद की राजनीति को निर्बाध रूप से जारी रखने के क्रम में उठाया गया एक सकारात्मक कदम सरीखा है यही कारण है कि दशकों वंशवाद की राजनीति करने वाले दलों ने भी गाहे बगाहे अपनी राजनीतिक सुगमता के साथ इस यात्रा को अपना समर्थन जताया है, इस क्रम में धारा 370 के हटने के बाद हाशिए पर पड़े महबूबा मुफ्ती एवं उमर अब्दुल्ला की यात्रा में सहभागिता भी इसी राजनीतिक विवशता की ओर इशारा करती है।
 
“कुल मिलाकर वर्ष 2024 के चुनावों में राहुल को विकल्प के रूप में स्थापित करने की दृष्टि से कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की इस मेकओवर यात्रा के पीछे वंशवाद की राजनीति करने वाले दलों, कट्टरपंथी इस्लामिक समुहों, ईसाई मिशनरियों एवं इन सारे समुहों को राहुल गांधी के साथ जोड़ने के सेतु के रूप में भूमिका निभाने वाले कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों की साझी शक्ति है जिसके पीछे की सुनियोजित परिपाटी को सॉफ्ट हिंदुत्व का जामा ओढ़ने से लेकर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री की टाइमिंग तक से बखूबी समझा जा सकता है।”
 
 
जहां तक बात इसके परिणाम की है तो देशविरोधी तत्वों के गठजोड़ से कभी चीन पर राष्ट्रवाद का स्वर अलापने तो कभी सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने वाली कांग्रेस को यह समझना होगा कि दशकों तक गरीबी हटाओ के जुमले से लेकर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के फॉर्मूले को भूनाकर सत्ता कब्जाए रखने के दिन अब लद चुके हैं और सोशल मीडिया के इस युग में माओवादियों/नक्सलियों, खालिस्तानियों के सहयोग से चलाए गए किसान आंदोलन के नेता रहे योगेंद्र यादव से लेकर, कश्मीर के अलगाववाद का राग अलापने वाले प्रशांत भूषण, नक्सलियों को गाँधीयन्स विथ गन्स बताने वाली मेधा पाटकर, जेनएयू परिसर में भारत की बर्बादी का स्वर अलापने वाले कॉमरेड कन्हैया कुमार एवं पाकिस्तानी आतंकवादियों की पैरोकारी करने वाले अब्दुल्ला एवं मुफ़्ती परिवार को उनके वास्तविक रूप में देखती समझती है।
 
उन्हें पता है कि कथित रूप से भारत को जोड़ने वाली इस यात्रा की पटकथा को लिखने वाले लोग दशकों से भारत को टुकड़ो में तोड़ने का दुःस्वप्न लिए घूम रहे हैं, शेष राहुल के लिए सहानभूति…..!!