जानिए क्या है रामचरितमानस विवाद के पीछे की परिपाटी

अखिलेश द्वारा इसको दिए गए समर्थन के पीछे की कड़ियों को तो राजनीति का कोई नौसिखिया भी आसानी से जोड़ सकता है

The Narrative World    31-Jan-2023   
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सनातन धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र रहे रामचरितमानस को लेकर बीते कुछ दिनों से उत्तरप्रदेश में जोर शोर से एक नया प्रपंच गढ़ने का प्रयास किया जा रहा है, इस क्रम में समाजवादी पार्टी के नवनियुक्त राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने 'मानस' की एक चौपाई पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा कि यह चौपाई दलितों एवं पिछड़ों के विरुद्ध है, जिसके बाद अखिल भारतीय ओबीसी महासभा द्वारा रविवार को आयोजित किए गए कार्यक्रम में महासभा के कुछेक सदस्यों ने मौर्य के पक्ष में रामचरितमानस के कुछ पृष्ठ भी जलाए।
 
अब इस संदर्भ में उत्तरप्रदेश पुलिस द्वारा मानस की प्रतियां जलाने वाले 5 लोगों को गिरफ्तार किए जाने एवं इस पूरे प्रकरण में विवाद बढ़ने के बीच समाजवादी सुप्रीमो अखिलेश यादव खुल कर स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में आ गए हैं, इस संदर्भ में यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए उनसे इस पूरे प्रकरण पर मानस की उस कथित विवादित चौपाई को दुहराने की बात की है जिसको लेकर मौर्य ने इसे प्रतिबंधित करने की मांग की थी।
 
इस पूरे विवाद में स्वामी मौर्य का मानस की चौपाई का उल्लेख कर के इसे प्रतिबंधित करने की मांग एवं उसके ठीक बाद अखिलेश यादव द्वारा उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव घोषित किया जाना भी कतई संयोग नहीं अपितु यह विशुद्ध रूप से आगामी लोकसभा चुनावों से पहले राज्य में जातीय आधार पर धुर्वीकरण का सुनियोजित प्रयास है, जिसके माध्यम से अखिलेश उत्तरप्रदेश में भाजपा के विरुद्ध गोलबंदी में जुट गए हैं, अब इन सब के बीच बड़ा प्रश्न यह है कि राजनीति में अपनी खोई जमीन तलाशने की कवायद में जुटे अखिलेश अथवा किसी अन्य राजनीतिक दल द्वारा संविधान की मूल भावना के विपरीत की जा रही जातीय विद्वेष को बढ़ावा देने वाली यह राजनीति आखिर कितनी उचित मानी जा सकती है?
 
एक प्रश्न इसके पैटर्न एवं इसके इर्दगिर्द पनपते दिखाई दे रहे उस देशविरोधी विचार से भी संबंधित है जिसका वृहद उद्देश्य देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था खत्म कर यहां तानाशाही स्थापित करने की है, दरअसल मानस की चौपाइयों को लेकर बीते दिनों उठे विवादों का गहराई से अवलोकन करें तो आप पाएंगे कि यह केवल जाती आधारित क्षेत्रीय राजनीति करने वाले दलों के कुछेक बड़बोले नेताओं की व्यक्तिगत लाइमलाइट बटोरने की कुंठा तक ही सिमित नहीं है अपितु इसके पीछे राष्ट्रविरोधी शक्तियों की साझी शक्ति का सम्मिश्रण जान पड़ता है जिसका वृहद उद्देश्य जाति आधारित राजनीति के माध्यम से सामाजिक समरसता के ताने बाने को ध्वस्त करना है।
 
इसे ऐसे समझें कि बिहार के शिक्षामंत्री के वक्तव्य से शुरू हुए इस विवाद को अब उत्तरप्रदेश के सबसे मुख्य विपक्षी दल द्वारा सुनियोजित योजना के तहत आगे बढ़ाया जा रहा है, इस क्रम में चंद्रशेखर द्वारा विवादित बयान दिए जाने एवं बाद में इस पर कायम रहने के बावजूद तेजस्वी द्वारा उन्हें शिक्षामंत्री बनाए रखना, स्वामी मौर्य को राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने से ठीक पहले दिए गए उनके बयान एवं उसके उपरांत अखिलेश द्वारा इसको दिए गए समर्थन के पीछे की कड़ियों को तो राजनीति का कोई नौसिखिया भी आसानी से जोड़ सकता है, इसमें भी संदेह नहीं कि बिना किसी औपचारिक गठबंधन के दोनों पार्टियों के नेताओं के बिल्कुल सटीक बैठते सुरताल के पीछे किसी अदृश्य गैर-राजनीतिक शक्ति की ही भूमिका जान पड़ती है जिसके वृहद लक्ष्य के केंद्र बिंदु में हिन्दू विरोध ही है।
 
बीते दिनों बिहार में हुए राजनीतिक उठापटक एवं सत्ता परिवर्तन के उपरांत भाजपा नेताओं ने नीतीश कुमार की जदयू एवं तेजस्वी की अगुवाई वाली राजद के महागठबंधन के पीछे कट्टरपंथी इस्लामिक समुहों की प्रत्यक्ष भूमिका की ओर इशारा किया था भाजपा नेताओं के अनुसार इन समूहों में नई सरकार के गठन में निर्णायक भूमिका निभाई थी, यह भी कोई छुपी बात नहीं कि दशकों से देश में जातीय भेदभाव एवं हिंसा को बढ़ावा दे रहे अतिवादी कम्युनिस्टों एवं कट्टरपंथी अन्य क्षेत्रीय दलों के बेहद निकट संबंध रहे हैं जिसकी एक झलक बीते दिनों पीएफआई के प्रतिबंधित होने के बाद प्रेस क्लब में जुटे कम्युनिस्टों एवं कट्टरपंथी इस्लामिक विचार रखने वाले कथित छात्र नेताओं के साथ राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा की जुगलबंदी से देखने को मिली थी।”
 
 
 
कम्युनिस्ट अतिवादियों एवं कट्टरपंथी इस्लामिक समुहों की भारत में जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देने की साझी रणनीति का उल्लेख तो पीएफआई से लेकर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) से मिले कई दस्तावेजों में पहले भी सामने आता रहा है, अब ऐसे में इस पूरे प्रपंच के पीछे यदि इन सारी शक्तियों की साझी रणनीति निहित हो तो यह कोई अचरज की बात नहीं।
 
जहां तक बात रामचरितमानस की चौपाइयों की है तो करोड़ो हिंदुओ की आस्था का केंद्र रहे रामचरितमानस पर ऐसे आक्षेप पहले भी लगाए जाते रहे हैं जिसको लेकर धर्माचार्यों एवं प्रबुद्धजनों ने पूरी स्पष्टता से इस बात को रखा है कि मानस की कुछ चौपाइयों को जानबूझकर उनके भाव के विपरीत तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है जबकि मानस की चौपाइयों को भाव से इतर केवल शाब्दिक रूप से परिभाषित करना मूर्खतापूर्ण ही होगा, बावजूद इसके कुछेक लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने हिन्दू धर्मग्रंथों को निशाना बनाते रहे हैं।
 
जबकि किसी भी अन्य धर्म पर ऐसी कोई भी टिप्पणी करने से पूर्व इनके होंठ सील जाते हैं, आंखें मूंद जाती हैं, अब ऐसे में यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि मानस की चौपाइयों को लेकर बिहार से लेकर उत्तरप्रदेश में जो प्रपंच गढ़ा जा रहा है वो विशुद्ध रूप से विद्वेषित राजनीतिक महत्वाकांक्षा से ही प्रेरित षड़यंत्र है, जहां तक बात मानस की चौपाइयों को उसके मूल स्वरूप में समझने की है तो उसका सार भी मानस में बखूबी उल्लेखित है कि
 
जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखीतीन तैसी