मंगलवार को अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में मुंबई उच्च न्यायालय ने भीम कोरेगांव- एल्गार परिषद माओवादी प्रकरण में आरोपी शहरी माओवादी (अर्बन नक्सल) सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत याचिका खारिज कर दी है, गाडलिंग ने यह याचिका वर्ष 2016 में सूरजगढ़ माइन्स में हुई आगजनी के संदर्भ में लगाई थी।
न्यायालय में हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विनय जोशी एवं वाल्मीकि एस ए मेंजस की पीठ ने कहा कि इसमें संदेह नहीं कि अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया आरोप सिद्ध होता दिखाई पड़ता है इसलिए न्यायालय यह याचिका खारिज करती है।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि "इस प्रकरण में अब तक प्रस्तुत किये गए साक्ष्यों के आधार पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) के यह आरोप प्रथम दृष्टया सत्य प्रतीत होते हैं कि अभियुक्त प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) का सक्रिय सदस्य रहा है जिसकी देशविरोधी गतिविधियों में पूर्ण संलिप्तता थी।"
न्यायालय ने आगे कहा कि "गाडलिंग के घर से बरामद किए गए हार्डडिस्क से बरामद पत्रों के आधार पर यह प्रमाणित होता है कि गाडलिंग केवल प्रतिबंधित सीपीआई माओइस्ट के लिए एक अधिवक्ता ही नहीं नहीं अपितु उनके लिए धनराशि एकत्रित करने एवं गढ़चिरौली जिले अंतर्गत सशस्त्र माओवादियों तक उसे पहुँचाने वाले व्यक्ति के रूप में संलिप्त थे।"
"इसलिए अभियुक्त द्वारा अपनी याचिका में दी गई दलील की वह वरिष्ठ वकील एवं अपने परिवार का अकेला जीविकोपार्जन अर्जित करने वाला व्यक्ति है उसके द्वारा किए गए गंभीर अपराध के सामने तर्कहीन दिखाई पड़ते हैं, इसलिए न्यायालय इस प्रकरण में सेशन कोर्ट द्वारा खारिज की गई याचिका को सही मानती है।"
ज्ञात हो कि वर्ष 2016 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सूरजगढ़ लौह अयस्क खदान में खड़ी 39 गाड़ियों में प्रतिबंधित माओवादी संगठन सीपीआई (माओइस्ट) के कैडरों ने आगजनी कर दी थी जिसके बाद इस घटना की जांच में सुरेंद्र गाडलिंग को इसमें संलिप्त पाया गया था, इस प्रकरण को लेकर गाडलिंग को अप्रैल 2019 में गिरफ्तार किया गया था जब वह भीमा कोरेगांव हिंसा - एल्गार परिषद माओवादी प्रकरण में पहले से जेल में बंद था, गाडलिंग को पुणे पुलिस द्वारा वर्ष 2018 में गिरफ्तार किया गया था।
बता दें कि गाडलिंग ने इससे पूर्व सेशन कोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी जिसे बीते वर्ष मार्च में खारिज कर दिया गया था जिसके बाद गाडलिंग ने मुंबई उच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की थी।
क्या है एल्गार परिषद माओवादी प्रकरण
बता दें कि पुणे के शनिवारवाड़ा में वर्ष 2017 में 31 दिसंबर को प्रतिबंधित माओवादी संगठन सीपीआई माओइस्ट के शहरी नक्सली कैडरों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें माओवादियों के फ्रंटल समूह कबीर कला मंच के माध्यम से भड़काऊ प्रस्तुति दी गई थी, इस कार्यक्रम में शीर्ष शहरी नक्सलियों द्वारा भड़काऊ भाषण भी दिए गए थे जिसके बाद अगले दिन पुणे में हिंसा भड़क उठी थी।
इस प्रकरण की जांच में एनआईए ने वरवरा राव, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, सुरेंद्र गाडलिंग, प्रोफेसर हैनी बाबू, रोना विल्सन, स्टेन स्वामी, प्रोफेसर जी एन साईंबाबा समेत कुल 15 लोगों को अभियुक्त बनाया था, इनमें से वरवरा राव को स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर रिहा कर दिया गया है जबकि एक अन्य अभियुक्त गौतम नवलखा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्तमान में हाउस अरेस्ट की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
ज्ञात हो कि अर्बन नक्सली नवलखा पर प्रतिबंधित सीपीआई माओइस्ट के लिए काम करते हुए कश्मीरी अलगाववादियों के साथ संबंध रखने एवं पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ नजदीकी संबंध रखने के बेहद गंभीर आरोप हैं।