बस्तर बंद के लिए क्यों मजबूर हुआ जनजाति समाज ?

जनजाति समाज ने यूंही किसी छोटी घटना या किसी एक घटना के प्रतिकार में बस्तर बंद का आह्वान नहीं किया है

The Narrative World    05-Jan-2023   
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Tribals protest against attack

  

बस्तर संभाग में ईसाइयों के आतंक के कारण जनजातीय समाज के द्वारा घोषित किए गए बंद एवं चक्काजाम को अभूतपूर्व समर्थन मिला है। आज गुरुवार, 5 जनवरी को संभाग के लगभग सभी जिलों में दुकानें बंद रही हैं, साथ ही विभिन्न जनजातीय संगठनों ने इस बंद का समर्थन किया है।

इसके अलावा इस बंद को चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने भी समर्थन किया, जिसका असर यह रहा कि संभाग की लगभग सभी दुकानें 11 बजे से 5 बजे तक बंद रहीं। नारायणपुर की स्थिति को देखते हुए वहां सड़कों पर निकल कर बंद के आह्वान की आवश्यकता नहीं पड़ी, बल्कि स्वतः ही जनजाति समाज के समर्थन में आम जनता ने पूरे शहर को बंद रखा।

हालांकि पुलिस ने विभिन्न स्थानों में पैदल मार्च निकाला और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बल की संख्या में भी बढ़ोतरी की, लेकिन इन सब के बीच प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि शांतिप्रिय समझा जाने वाला जनजाति समाज ने पूरे संभाग को बंद करने का आह्वान क्यों किया ? दरअसल इसके पीछे एक नहीं, बल्कि एक से अधिक कारण हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है।

जनजाति समाज ने यूंही किसी छोटी घटना या किसी एक घटना के प्रतिकार में बस्तर बंद का आह्वान नहीं किया है, बल्कि इसे पीछे षड्यंत्रकारियों की वो अनैतिक एवं विधर्मी नीतियां हैं, जिसका नकारात्मक प्रभाव जनजाति समाज पर पड़ रहा है।

मुख्य रूप से देखा जाए तो इसके तीन कारण समझ आते हैं, जिसमें पहला है मतांतरण की गतिविधियां, दूसरा कारण है जनजातीय संस्कृति का ह्रास होना और तीसरा एवं तात्कालिक कारण है ईसाइयों के द्वारा की गई हिंसा।

इसमें सबसे पहले समझते हैं ईसाइयों के द्वारा की जा रही धर्मान्तरण की गतिविधियों के बारे में। दरसअल ईसाई मिशनरी बस्तर क्षेत्र में लंबे समय से धीरे-धीरे अपना विस्तार कर रहे थे, जहां इन्होंने हजारों-लाखों की संख्या में जनजातियों का धर्म परिवर्तन कराया।

लेकिन हाल के वर्षों में इनकी गति, इनका षड्यंत्र और इनका विस्तार इतनी तेजी से बढ़ा है कि जनजाति समाज को बस्तर में अपने अस्तित्व पर खतरा महसूस होने लगा। ईसाई मिशनरियों का आतंक इतनी तेजी फैला कि ये बस्तर के विभिन्न गांवों को, जो जनजाति बाहुल्य थे, अब ईसाई बाहुल्य बनाने में जुट गए।

इन्होंने मतांतरण की साजिश से अपने छोटे-छोटे पॉकेट्स बना लिए जहां, इन्होंने तमाम असामाजिक गतिविधियों को अंजाम देना शुरू किया। इसके अलावा असंगठित पैराचर्च के माध्यम से जनजातीय समाज के भोले-भाले लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, धन, रोजगार, विवाह एवं अनाज आदि का प्रलोभन देकर ईसाई बनाने का प्रयास किया गया, जिसके कारण क्षेत्र में ईसाइयों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि होने लगी।

हालांकि अपनी पहचान छुपाने के चलते इनकी आधिकारिक संख्या कभी सामने नहीं आ सकी लेकिन समाज के भीतर इनकी संख्या गुणात्मक तेजी से बढ़ती गई।

धर्म परिवर्तन की इस साजिश को अंजाम देने के किए ईसाइयों ने जनजातीय किशोरियों, युवतियों को प्रेम जाल में फंसाना शुरू किया। इसके अलावा चंगाई सभा का आयोजन किया जाने लगा, जिसमें विभिन्न बीमारियों के 'ईसाई' बनने के बाद ठीक हो जाने की बात कही जाने लगी, जिससे भी प्रभावित होकर सैकड़ों लोगों ने ईसाई मत अपना लिया।

वहीं, दूसरी ओर लोगों को प्रलोभन भी दिया जाने लगा जिससे आम जनजाति परिवार ईसाइयत की ओर आकर्षित होने लगा। इन तमाम गतिविधियों को अंजाम देने के लिए ईसाई मिशनरी ने गांव में बीच के ही नागरिकों को निशाना बनाया, ताकि उसके माध्यम से गांव के अन्य लोगों को भी शिकार बनाया जा सके।

मिशनरियों की इन हरकतों से जनजाति नागरिक दिन-ब-दिन ना सिर्फ नाराज हो रहे थे, बल्कि उनका एक गुस्सा गुबार का रूप ले रहा था।

मतांतरण की गतिविधियों का परिणाम यह निकल कर आया कि जिस गांव में कभी सामूहिक रूप से ग्राम देवता की पूजा की जाती थी, कभी सामाजिक उत्सव मनाए जाते थे, जनजाति संस्कृति, परंपरा एवं रीति-रिवाजों से परिपूर्ण समाज एकत्रित होकर हर्षोल्लास से अपने विभिन्न आयोजन करता था, उस ग्राम समाज में विधर्मियों की मौजूदगी ने जनजातीय संस्कृति का ह्रास शुरू कर दिया।

विभिन्न मौकों पर देखा गया कि ईसाइयों ने जनजाति संस्कृति का विरोध किया, पर्वों का विरोध किया, परम्पराओं का मजाक उड़ाया और देवी-देवताओं तक पर आपत्तिजनक टिप्पणियां की।

ईसाइयों के इन कुकृत्यों के चलते जनजाति समाज भीतर ही भीतर आहत होता चला गया, हालांकि इस मामले को लेकर समाज के द्वारा शासन-प्रशासन को शिकायत की गई, लेकिन प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से ना लेते हुए पूरी तरह से अनदेखा कर दिया।

ऐसी परिस्थितियों में जब जनजाति समाज ने ग्राम सभाओं एवं सामाजिक स्तर पर प्रतिकार करना आरंभ किया तब ईसाइयों ने बाहरी तत्वों के साथ मिलकर जनजाति समाज को ही बस्तर में अशांति का दोषी बनाने का षड्यंत्र रचा।

बस्तर में सामाजिक तनाव के लिए जनजातियों को जिम्मेदार बताने वाले लोगों ने ईसाइयों के पक्ष में कई रिपोर्ट्स बनाई, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूहों के माध्यम से प्रोपेगैंडा रचा, और ईसाइयों के पक्ष में बयान दिया, जिसने जनजाति समाज के भीतर के आक्रोश को और अधिक बढ़ाने का कार्य किया।

इन सब के चलते जनजाति समाज के भीतर अपने संस्कृति के पतन होने का दुःख और ईसाइयों के कुकृत्यों पर आक्रोश था ही, लेकिन ईसाइयों ने इसके बाद ऐसा कृत्य किया जिसने जनजातियों के भीतर पल रहे आक्रोश के गुबार को फोड़ दिया।

बीते 31 दिसंबर और 1 जनवरी को ईसाई उपद्रवियों ने आतंक मचाते हुए जनजाति नागरिकों पर जानलेवा हमले किए, जिसमें बड़ी संख्या में जनजाति नागरिक घायल हुए। इस हिंसक घटना की व्यापकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस घटना के बाद घायल जनजातियों को जान बचाकर घटनास्थल से भागना पड़ा जिसके बाद उन्होंने अस्पताल जाकर अपना उपचार कराया।

इस घटना के बाद जनजाति समाज ने पुलिस के समक्ष आरोपियों की सूची सौंपी और शिकायत दर्ज कराई, बावजूद इसके पुलिस ने उन आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं की।

इन सभी घटनाक्रमों के चलते जनजाति समाज ने शांतिपूर्ण तरीके से आज अर्थात गुरुवार 5 जनवरी, 2023 को बस्तर संभाग के सभी जिलों में बंद का आह्वान किया, जिसके बाद देखते ही देखते पूरे क्षेत्र में इसका असर दिखाई देने लगा और यह स्पष्ट हुआ कि आम जनता ने जनजातीय हितों की रक्षा के समर्थन एवं ईसाइयों के इस आतंक से मुक्ति के विरोध आहूत किए गए इस बंद का अभूतपूर्व समर्थन किया है।