वर्ष 2024 में नक्सलवाद के दंश से मुक्त हो जाएगा देश : गृहमंत्री शाह

गृहमंत्री ने कहा कि हम दुर्गम माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं को विकास की मुख्यधारा से जोड़ रहे हैं

The Narrative World    09-Jan-2023   
Total Views |

Home minister in Korba

 
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने माओवादियों (नक्सलियों/कम्युनिस्ट आतंकियों) को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा है कि वर्ष 2024 तक देश को कम्युनिस्ट आतंक से मुक्त करा लिया जाएगा। गृहमंत्री ने कहा कि अगले लोकसभा चुनावों से पूर्व देश को नक्सलवाद मुक्त बनाने के गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं।
 
गृहमंत्री ने यह बातें शनिवार को छत्तीसगढ़ के कोरबा में हुई एक रैली के दौरान कहीं जहां उन्होंने एकत्रित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि " कांग्रेस के शासनकाल में वर्ष 2009 में माओवादी हिंसा की 2258 घटनाएं दर्ज की गई थी जबकि वर्ष 2021 में यह केवल 509 रही हैं, हम देश को नक्सलवाद मुक्त करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।"
 
इस दौरान गृहमंत्री ने कहा कि हम दुर्गम माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं को विकास की मुख्यधारा से जोड़ रहे हैं, इन क्षेत्रों में हमनें बुनियादी ढांचे के विकास एवं बिजली, पानी जैसी सुविधाओं पर जोर दिया है जिसने इन क्षेत्रों में रह रहे युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित किये हैं, हम दिग्भ्रमित किये गए युवाओं के हाथों में बंदूकों के स्थान पर रोजगार दे रहे हैं। गृहमंत्री ने कहा कि इसके बाद भी जो लोग बंदूक छोड़ने को तैयार नहीं उन्हें सुरक्षाबल उन्ही की भाषा में जबरदस्त जवाब दे रहे हैं।
 
क्या है वास्तविक स्थिति
 
दरअसल पिछले कुछ वर्षों से माओवाद के मोर्चे पर केंद्र की विकास एवं सुरक्षा की साझा नीति को माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में वांछित सफलता मिली है परिणामस्वरूप हालिया वर्षों में कभी माओवादियों के गढ़ के रूप में पहचाने जाने वाले झारखंड के बूढ़ा पहाड़ एवं ओड़िशा के स्वाभिमान अंचल जैसे क्षेत्रों को नक्सलवाद के खतरे से बहुत हद तक मुक्त करा लिया गया है।
 
इस क्रम में सुरक्षाबलों की सफलता को इन क्षेत्रों से प्रतिबंधित माओवादी संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट)- सीपीआई (एम) के हजारों कैडरों के आत्मसमर्पण से भी जोड़ कर देखा जा सकता है। वहीं कभी माओवाद के दंश से ग्रस्त माने जाने वाले बिहार को भी नक्सलवाद से बहुत हद तक मुक्त करा लिया गया है, जबकि कमोबेश यही स्थिति महाराष्ट्र की भी मानी जा सकती है जहां माओवाद अब केवल गढ़चिरौली जैसे एक आध जिलों में ही सिमट कर रह गया है।
 
विकास एवं प्रहार की साझी रणनीति
 
नक्सलवाद के मोर्चे पर सुरक्षाबलों को बीते कुछ वर्षों में मिली वांछित सफलता के पीछे केंद्र सरकार द्वारा माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में चलाई जा रही समग्र विकास एवं माओवादियों पर प्रहार की साझी रणनीति ने अहम भूमिका निभाई है।
 
दरअसल इस रणनीति के तहत जहां एक और माओवादियों के गढ़ माने जाने वाले छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली, झारखंड के बूढ़ा पहाड़, ओड़िशा के स्वाभिमान अंचल जैसे क्षेत्रों में सड़क निर्माण, बिजली, पानी, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं के विकास को जोर शोर से आगे बढ़ाया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि योजनाबद्ध तरीके से इन क्षेत्रों में सुरक्षाबलों को उपस्थिति को बढ़ाया जा सके।
 
इस क्रम में बीते वर्षों में सुरक्षाबलों द्वारा माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में कई नवीन कैंपो को खोला गया है जिससे इन दुर्गम क्षेत्रों में जनता के बीच सुरक्षा की दृष्टि से सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है, इसके अतिरिक्त इन क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की उपस्थिति ने माओवादियों के मजबूत आसूचना तंत्र (खुफिया तंत्र) के ढांचे को भी जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है जबकि इस दौरान ही सुरक्षाबलों ने अपने आसूचना तंत्र को मजबूत करने में सफलता पाई है।
 
क्या कहते हैं आंकड़े
 
गृहमंत्री द्वारा वर्ष 2024 तक माओवाद के संमुल उन्मूलन के दावों को बीते वर्षो में सामने आए माओवाद संबंधित आंकड़ो से भी बल मिलता है जहां पिछले एक दशक में आए परिवर्तन को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जा सकता है। इस क्रम में इस बदलाव को ऐसे समझे कि वर्ष 2009 की तुलना में वर्ष 2021 तक माओवाद संबंधित हिंसक घटनाओं में कुल 77% की गिरावट दर्ज की गई है।
 
नक्सलवाद से हुई मौतों के विषय मे तो इस आंकड़े में 85% तक की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि इसके भगौलिक विस्तार को भी वर्ष 2007 में 180 जिलों से अब केवल 70 जिलों तक समेट लिया गया है, इसमें से भी 8 राज्यों के केवल 25 जिले ही अतिमाओवाद प्रभावित श्रेणी में रखे गए हैं। इनमें से 15 जिले झारखंड एवं छत्तीसगढ़ में चिन्हित किये गए हैं जहां केंद्र की योजना का प्रभाव अब स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। इसे इन दोनों राज्यों से बीते वर्षो में हुई गिरफ्तारियों एवं माओवादियों के सामूहिक आत्मसमर्पण से समझा जा सकता है।
 
कुल मिलाकर यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि यदि केंद्र सरकार आगामी दो वर्षों में इन दोनों राज्यों में संचालित अपनी नीतियों को इसी प्रकार योजनाबद्ध रूप से आगे बढ़ाती रही तो वर्ष 2024 तक माओवाद के मोर्चे पर बेहद सुखद स्थिति की कल्पना की जा सकती है, हालांकि इसके लिए सबसे अहम यह है कि सरकार अर्बन नक्सलियों को लेकर बीते वर्षों में चलाई गई मुहिम को जारी रखे ताकि कमजोर पड़े माओवादी संगठन को इनके शहरी कैडरों द्वारा संजीवनी बूटी देने के प्रयासों को प्रभावी रूप से रोक कर इस कोढ़ से छुटकारा पाया जा सके।