दंतेश्वरी फाइटर्स - बस्तर में माओवादियों से लोहा लेती वीरांगनाएं

दंतेश्वरी फाइटर्स के विभिन्न अभियानों की बात करें तो बीते 4 वर्षों में इनका सामना 70 से अधिक बार माओवादियों से हुआ है। इन मुठभेड़ों में दंतेश्वरी फाइटर्स की महिलाओं ने 10 से अधिक माओवादियों को मार गिराया है।

The Narrative World    19-Oct-2023   
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छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग में स्थित बस्तर क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी माँ दंतेवश्वरी के नाम पर बस्तर पुलिस ने वर्ष
2019 में दंतेश्वरी फाइटर्स का गठन किया था, जिसमें महिला कमांडो पदस्थ हैं। ये महिला कमांडोज़ घने जंगलों, नदियों एवं पहाड़ों के बीच ना सिर्फ स्थानीय ग्रामीणों की सुरक्षा कर रहे हैं, बल्कि माओवादी आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब भी दे रहे हैं।


नारी शक्ति का यह रूप नवरात्रि के दौरान भी दिखाई दे रहा है, जब दंतेश्वरी फाइटर्स की महिलाएं नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए विभिन्न अभियान चला रही हैं। बस्तर के धुर माओवाद प्रभावित क्षेत्र में तैनात इन लड़ाकू महिलाओं में से अधिकांश विवाहित हैं, और बावजूद इसके वो अपनी इन जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहीं हैं।


यदि दंतेश्वरी फाइटर्स के विभिन्न अभियानों की बात करें तो बीते 4 वर्षों में इनका सामना 70 से अधिक बार माओवादियों से हुआ है। इन मुठभेड़ों में दंतेश्वरी फाइटर्स की महिलाओं ने 10 से अधिक माओवादियों को मार गिराया है।


गौरतलब है कि इस वर्ष छत्तीसगढ़ में चुनाव होने वाले हैं, और बस्तर के माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में भी सुरक्षा की कमान इन दंतेश्वरी फाइटर्स के हाथ में भी होंगी। बस्तर में चुनाव के दौरान महिला कमांडो को पोलिंग बूथों पर सुरक्षा की कमान सौंपी जाएगी।


दंतेश्वरी फाइटर्स की महिलाओं ने बीते 4 वर्षों में विभिन्न अभियानों में भी हिस्सा लिया है। बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी का कहना है कि दंतेश्वरी फाइटर्स की महिला कमांडोज़ माओवादियों से लोहा तो लेती ही हैं, साथ ही ग्रामीणों की देखभाल और उनकी सहायता का कार्य भी करती हैं।


पुलिस आईजी के अनुसार इस समूह में कुल 60 लोगों में से 10 ऐसी महिलाएं भी शामिल हैं जो पूर्व में माओवादी संगठन का हिस्सा रह चुकी हैं और आत्मसमर्पण करने के बाद मुख्यधारा में लौटी हैं।


दंतेश्वरी फाइटर्स के महिला कमांडोज़ की विशेष ट्रेनिंग हुई है ताकि विपरीत परिस्थितियों में माओवादियों का मुकाबला किया जा सके, इसके अलावा इन महिला कमांडोज़ के द्वारा स्थानीय ग्रामीणों का विश्वास जीतने के लिए भी विभिन्न प्रकार के प्रयत्न किए जा रहे हैं।


ग्रामीण महिलाओं को साफ-सफाई के बारे में जानकारी देने से लेकर बीमार पड़ने में उनके प्राथमिक उपचार के लिए दवाई उपलब्ध कराने तक की सहायता दंतेश्वरी फाइटर्स की महिलाओं के द्वारा की जा रही है।


दंतेश्वरी फाइटर्स द्वारा चलाए गए कुछ अभियानों की बात करे तो इसमें माओवादी स्मारक को ध्वस्त करने से लेकर माओवादियों के साथ मुठभेड़ और माओवादी आतंक के चलते प्रभावित कार्यों को पुनः आरंभ कराना भी शामिल है।


दंतेश्वरी फाइटर्स की वीरांगनाओं ने दंतेवाड़ा के भीतरी ग्रामीण क्षेत्र में बने माओवादी स्मारक को ध्वस्त करने का अभियान चलाया था। यह माओवादी स्मारक लाख रुपये की इनामी महिला माओवादी भीमे उर्फ आयते के नाम पर बना था, जिसकी स्मारक तोड़ने से 2 माह पूर्व ही सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मौत हुई थी।


माओवादियों ने स्थानीय ग्रामीणों पर दबाव डालकर यह स्मारक बनवाया था, जिसे तीन वर्ष पूर्व महिला दिवस के दिन दंतेश्वरी फाइटर्स की महिला योद्धाओं ने ध्वस्त कर दिया था। स्मारक को ध्वस्त करने के बाद सुरक्षा बल की महिलाओं का कहना था कि वो अपने कार्य पर हैं और कर्म ही उनकी पूजा है।


इसके अलावा जब सुकमा एवं दंतेवाड़ा जिले की सीमा पर स्थित नहाड़ी गांव में सुरक्षाबलों का कैंप स्थापित किया जा रहा था तब भी माओवादियों ने इसमें काफी अड़चन डालने का प्रयास किया था।


दरअसल यह क्षेत्र 10-10 लाख रुपये के इनामी माओवादी आतंकी कमांडर देवा और विनोद का गांव था, जो माओवादियों के छिपने के लिए उपयुक्त स्थान हुआ करता था। सुरक्षाबलों ने जब इस स्थान में कैंप बनाने का निर्णय किया तब माओवादियों ने स्थानीय ग्रामीणों को भड़काकर एवं धमकाकर आंदोलन भी शुरू करवा दिया।


माओवादियों के द्वारा भड़काए जाने के बाद ग्रामीण पोस्टर-बैनर लेकर कैंप का विरोध करने लगे। लेकिन इसके बाद दंतेश्वरी फाइटर्स की वीरांगनाओं ने मोर्चा संभाला और सफल भी हुए। महिला कमांडोज़ ने स्थानीय ग्रामीणों और खासकर महिलाओं को विश्वास में लिया और उन्हें कैंप खुलने के बाद के लाभों की जानकारी दी।


इस अभियान के बारे में दंतेश्वरी फाइटर्स से जुड़ी एक महिला अधिकारी ने बताया था कि उन्हें किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ा था, लेकिन महिला कमांडोज़ ने हार नहीं मानी और अपने विश्वास पर अडिग रहे, यही कारण है कि फरवरी 2022 में यह कैंप खुल पाया।


इस दौरान माओवादियों ने भी महिला कमांडोज़ पर हमले किए, आपसी मुठभेड़ हुए जिसमें महिलाओं ने 2 माओवादियों को मार गिराया था। सिर्फ आक्रामक अभियानों या मुठभेड़ों के मामले में ही नहीं, बल्कि स्थानीय कलाओं के माध्यम से भी दंतेश्वरी फाइटर्स की महिलाओं ने ग्रामीणों के बीच जागरूकता फैलाने का कार्य किया है।


दंतेश्वरी फाइटर्स की महिलाओं ने बस्तर की संस्कृति परंपरा के अनुसार गोंडी और हल्बी नृत्य करते हुए माओवाद से प्रभावित लोगों को मुख्यधारा से जुड़ने का संदेश दिया था।


इसके अलावा दंतेश्वरी फाइटर्स की महिलाएं लगातार ग्रामीण क्षेत्र में अभियान चलाते हुए ग्रामीणों से संपर्क करती हैं, उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करती हैं और साथ ही उनकी शिक्षा एवं स्वास्थ्य से जुड़ी बेसिक व्यवस्थाओं में सहायता करती हैं, यही कारण है कि ग्रामीणों के भीतर भी अब दंतेश्वरी फाइटर्स को लेकर विश्वास की भावनाएं बढ़ रही है।


ग्रामीण क्षेत्रों और खासकर महिलाओं में दंतेश्वरी फाइटर्स की उपस्थिति, उनकी बढ़ती विश्वसनीयता और उनके द्वारा माओवादियों के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियानों से माओवादी भी डरे हुए हैं। माओवादियों ने पर्चे फेंककर स्थानीय ग्रामीण युवतियों एवं महिलाओं को दंतेश्वरी फाइटर्स में शामिल ना होने की चेतावनी जारी की थी।


इन चेतावनियों से स्पष्ट समझा जा सकता है कि माओवादी दंतेश्वरी फाइटर्स की कार्य शैली और रणनीतियों से बुरी तरह घबराएं हुए हैं और ग्रामीणों के बीच उनकी प्रसिद्धि से माओवादियों की तिलमिलाहट भी नजर आ रही है।