कम्युनिस्ट संगठन जहाँ भी होता है, वह लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने की जुगत में लगा रहता है। वामपंथ स्थान एवं परिस्थितियों के अनुसार अपनी उदारता और उग्रता को जनता के सामने लाता है। जब तक वामपंथ या जिसे हम कम्युनिज़्म कहते हैं, वह सत्ता से दूर रहता है तब तक वह स्वतंत्रता, उदारता, सहिष्णुता, लोकतंत्र और समानता की बात करता है। लेकिन यही वामपंथ जब सत्ता में होता है तो जगह-जगह पर प्रतिबंध, असहिष्णुता, एकरूपता, तानाशाही सामान्य हो जाती है।
इसका उदाहरण हमने चीन, उत्तर कोरिया, क्यूबा समेत दुनिया के विभिन्न देशों में देखा है। भारत में भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कुचलने के लिए वामपंथ के विभिन्न संगठन सक्रिय हैं। इनमें से सबसे प्रमुख संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी (CPI-Maoist) है। अमेरिका के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार यह दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन में से एक है।
माओवादी दल भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लगातार हमला करते हैं। भारत में कहीं भी ऐसी कोई गतिविधियां होती है जिसमें लोकतंत्र शामिल है, उन जगहों पर माओवादी संगठन लगातार हमला करता है। इस दौरान माओवादी जगह-जगह पर हिंसा की घटनाओं को अंजाम देते हैं।
ग्रामीणों को, प्रभावित क्षेत्र की जनजातियों को भय दिखाकर मतदान करने से दूर करते हैं, और तो और खुलकर चुनावों का बहिष्कार करने की बात भी करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं माओवादियों के द्वारा जनप्रतिनिधियों पर भी हमले किए जाते हैं। बीते लोकसभा चुनाव के दौरान ही लोकतांत्रिक तरीके से जनता के बीच से चुनकर आए एक भाजपा विधायक की माओवादियों ने हत्या कर दी थी। माओवादियों ने दिन भी ऐसा चुना कि अगली तारीख को उस क्षेत्र में मतदान किया जाना था।
इसके अलावा झारखंड में पूर्व विधायक पर हमला करना हो या बस्तर के विभिन्न पंचायत जनप्रतिनिधियों को जान से मारना, माओवादियों ने हर बार लोकतंत्र से जुड़े प्रतीक चिन्हों को अपना निशाना बनाया है। यह सब घटनाएं बताती हैं कि माओवादियों ने जनता को डराने, धमकाने के लिए उनके बीच के ही जनप्रतिनिधि को मार डाला। हाल ही में छत्तीसगढ़ में माओवादियों एक और भाजपा नेता की हत्या की है जो पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह की रैली से लौट कर आए थे।
आये दिन देश भर से माओवादियों/नक्सलियों के पास से भारी मात्रा में विस्पोटक और अन्य गतिविधियों की योजना पकड़ाई जा रही हैं। माओवादियों के द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले वस्तुओं को भी पकड़ा गया है। उनकी सप्लाई चेन पर भी वार किया जा रहा है। बावजूद इसके माओवादी अपनी उपस्थिति दिखाने में सफल हो रहे हैं।
हाल ही में माओवादियों ने बस्तर संभाग में वाहनों में आगजनी की, पुलिस के साथ सुकमा में मुठभेड़ हुई, इसके अलावा कई ऐसे छोटी-बड़ी घटनाएं होती रही जिसके माध्यम से माओवादियों ने अपना प्रभाव क्षेत्र में बनाए रखा है।
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने बताया था कि माओवादी हिंसा में कमी आई है। यह तथ्यात्मक रूप से बिल्कुल सही है कि माओवादी हिंसा की गतिविधियां पहले के मुकाबले कम हुई है, लेकिन अभी भी यह आंकड़ा अधिक है। केंद्रीय बल और पुलिस भरसक प्रयास कर रहे हैं जिससे माओवाद प्रभावित जिलों की संख्या में भी अभूतपूर्व कमी देखने को मिली है, लेकिन अब यह पूरी तरह से खत्म होना चाहिए।
दरसअल वामपंथ एक ऐसा जहर है जो धीरे धीरे अपना असर दिखाता है। मजदूर और शोषित वर्ग की लड़ाई के नाम से उपजा यह माओवादी संगठन आज आतंक और पैसे उगाही का पर्याय बन चुका है। आखिर उसी शोषित और मजदूर वर्ग के लोगों के घरों से कोई सुरक्षाकर्मी वहाँ होता है तो यही माओवादी उसे भी मार देते हैं।
कम्युनिस्ट संगठनों का सीधा सा समीकरण है कि जहाँ भी लोकतंत्र को जीवित और मजबूत किया जा रहा है, वहाँ अपने आतंक से उसकी समाप्ति सुनिश्चित करना। पिछले 4 दशक से कम्युनिस्ट आतंकवाद ने देश को कई दफे भीतर ही भीतर घात दिया है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ मोदी सरकार या भाजपा की सरकार आने के बाद ही वामपंथ आतंकवाद की चर्चा की जा रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान उन्होंने खुद माओवाद को देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था। यूपीए शासन में गृहमंत्री रहे सुशील कुमार शिंदे ने भी कम्युनिस्ट आतंकवाद को देश के लिए बड़ा खतरा बताया था। यूपीए सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर भी वामपंथी आतंकवाद के खतरों के उल्लेख किया था।
वर्तमान में छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश और झारखंड से माओवाद गतिविधियों से सम्बंधित खबर आती रही हैं। माओवादियों को लगातार गिरफ्तार किया जा रहा है। कहीं ग्रेनेड और कहीं विस्पोटक जब्त किए जा रहें हैं पुलिस से मुठभेड़ भी कई जगह हो चुकी है।
जिन माओवादियों को गिरफ्तार किया गया है इनमें कई बड़े और ख़ूँख़ार आतंकी शामिल हैं। बड़ी घटनाओं को अंजाम देने वाले माओवादियों के साथ पुलिस मुठभेड़ भी लगातार समय अंतराल में जारी है।
लेकिन मूल प्रश्न यह है कि आखिर ऐसी कौन सी लड़ाई है जो अबोध, निहत्थे, सीधे-सादे, गरीब जनजातियों और पिछड़े ग्रामीणों को मारकर ये माओवादी/नक्सली जीतना चाहते हैं ?
यदि इसका पूरा आंकलन करें तो स्पष्ट दिखता है कि यह सिर्फ डर और भय फैलाकर अस्थिरता बनाने का एक प्रयास है, जिसकी आड़ में पैसे उगाही और आतंक का धंधा चलाया जा रहा है, जिसे अब पूरी तरह से खत्म करने का समय आ गया है।