क्‍या कर्नाटक की पुनरावृत्ति रोकने के लिए नहीं आनी चाहिए मप्र में भाजपा सरकार ?

जैसे ही यह कर्नाटक में धर्मांतरण का कानून रद्द हुआ, वैसे ही फिर एक बार राज्‍य में लव जिहाद के मामले बढ़ गए। बुरा किसी से प्रेम करना नहीं, लेकिन बुरा है कुछ तो यह कि प्रेम का नाटक नाम छुपाकर किया जाता है।

The Narrative World    25-Oct-2023   
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कर्नाटक में धर्मांतरण का कानून रद्द कर दिया गया, क्‍योंकि कांग्रेस की सरकार का वादा था कि सरकार में आए तो भाजपा द्वारा लाए इस कानून को बदल दिया जाएगा, और सत्‍ता में आते ही उसने वही किया, जो उसने कहा था।


जैसे ही यह कर्नाटक में धर्मांतरण का कानून रद्द हुआ, वैसे ही फिर एक बार राज्‍य में लव जिहाद के मामले बढ़ गए। बुरा किसी से प्रेम करना नहीं, लेकिन बुरा है कुछ तो यह कि प्रेम का नाटक नाम छुपाकर किया जाता है।


वास्‍तव में आपत्ति इस स्‍वांग से है, जो आप होते हैं, वह बनकर आप प्रेम नहीं करते, बल्‍कि आप वह बनकर सामने किसी लड़की के सामने प्रेम का ड्रामा करते हैं जो आप हो ही नहीं


भाजपा जब कर्नाटक में इस कानून को लेकर आई थी तो भय वश ही सही ऐसे मामलों में कमी आने लगी थी, लेकिन अब किसी का कोई राज्‍य में भय नहीं दिखता, बड़ा प्रश्‍न है।


इस वक्‍त पांच राज्‍यों में विधानसभा का चुनावी समय चल रहा है, मध्‍यप्रदेश में भी किसी न किसी की सत्‍ता आना ही है, क्‍योंकि यह तो लोकतंत्र का उत्‍सव है और रिवाज भी, पर ऐसे में प्रश्‍न है क्‍या मप्र की जनता ऐसे नेताओं के हाथ में सत्‍ता की चाबी सौपना पसंद करेगी जोकि बेहरुपियों और स्‍वांग बनाकर छद्म रूप में सामने आने और वार करने में विश्‍वास करते हैं ?


दरअसल, लव जिहाद की दृष्टि से देखें तो मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2021 मार्च 2021 में तत्काल प्रभाव से राज्‍य में लागू कर दिया गया था। भाजपा की शिवराज सरकार से बहुसंख्‍यक समाज जोकि इस प्रकार के कानून बनाने की मांग लम्‍बे समय से कर रहा था उनकी कल्‍पना यही थी कि प्रदेश में इस अधिनियम के लागू होते ही ''लव जिहाद'' स्‍वत: समाप्‍त हो जाएगा।


जो वास्‍तविक प्रेमी होगा, वह अपने असली स्‍वरूप में और जो कोई भी जूठा होगा वह छद्म वेश में किसी के साथ छल नहीं करेगा। किंतु यह जानकर आश्‍चर्य होता है कि 'लव जिहाद' कानून के प्रभावी होने के पहले दिन से लेकर आगे के 23 दिनों में 23 प्रकरण थानों में दर्ज हुए थे। उसके बाद से अब तक यह आंकड़ा कई सौ आरोपितों तक पहुंच चुका है।


धोखेबाज अपनी पहचान छिपाकर लगातार लवजिहाद कर रहे हैं। वास्‍तव में यह कानून के प्रभावी होने की स्थिति है, जबकि इसके पूर्व कानून के अभाव में कई लोग जैसा कि पहले करते आ रहे थे आज उस संख्‍या में वह नहीं कर पाए, जोकि वह वास्‍तविकता में करना चाह रहे थे, ऐसी संख्‍या भी सैंकड़ों लव जिहाद की मानसिकता रखनेवालों की भी है।


इस संदर्भ में यदि बड़े शहरों की यहां बात की जाए तो इंदौर पहले स्‍थान पर और भोपाल दूसरे स्थान पर है, जहां हिन्‍दू लड़कियों को पहचान छि‍पाकर प्‍यार के नाटक में फंसाया गया अथवा जा रहा है।


कहा जा सकता है कि 'लव जिहाद' पर सख्‍त कानून बनने के बाद भी यहां कहानियां अनेक हैं, ज्यादातर शिकायतें उन महिलाओं की हैं, जिन्‍हें प्यार के जाल में फंसाने के बाद धोखा मिला है। इनमें ऐसे भी अनेक प्रकरण हैं जिसमें कि बल से लड़की पर धर्म बदलने का दबाव डाला गया।


कहीं, अकीब नामक युवक खुद को अमन सोलंकी बताकर उसी मोहल्ले में किराए से रहने वाली 21 वर्षीय युवती को धोखा दे रहा है। तो कहीं, सोहेल मंसूरी नाम बदलकर 22 वर्षीय युवती को प्रेम जाल में फंसाता नजर आ रहा है।


आज आर्यन ठाकुर जैसे ना जाने देश भर में कितने शोएब आलम होंगे जो नकली नाम से फेसबुक एवं अन्‍य सोशल मीडिया प्‍लेटफार्म पर मौजूद हैं। इसी प्रकार से कोई फैजान कबीर बन नजदीकियां बढ़ाने के बाद मुस्लिम धर्म अपनाने का दबाव बना रहा है। ऐसा नहीं करने पर पीड़ि‍ता का अश्लील वीडियो वायरल करने की धमकी देता है, यहां रुपए एठनेवालों की भी कोई कमी नहीं है।


इसमें ऐसे केस भी अनगिनत हैं जिनमें आरोपित मुजीब जैसे लोग पहले से शादीशुदा हैं लेकिन अपना नाम मनीष बताकर युवतियों से दोस्ती बना रहे हैं। जीवन भर जीने-मरने की कसमें खाकर, शादी का झांसा देकर युवती से गलत कर रहे हैं। फिर धर्म परिवर्तन भी करा रहे हैं।


देखा जाए तो मध्‍य प्रदेश में शिवराज सरकार ने जब इस कानून को लागू किया तो साफ शब्‍दों में इसके अंतर्गत अधिकतम 10 साल तक के कारावास और एक लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया। साथ ही धर्म परिवर्तन करके किया गया विवाह भी शून्य घोषित कर दिया गया था।


कानूनी भाषा में कहें तो यदि किसी शख्स पर नाबालिग, अनुसूचित जाति/जनजाति की बेटियों को बहला फुसला कर शादी करने का दोष सिद्ध होता है तो उसे दो साल से 10 साल तक की सजा दी जाती है।


अगर कोई व्‍यक्‍ति धन और संपत्ति के लालच में मजहर-रिजिलन छिपाकर शादी करता हो तो उसकी शादी शून्य मानी जाती है, किंतु जिस तरह के प्रकरण इस कानून के बनने के अब तक सामने आ रहे हैं, उससे साफ जाहिर होता है कि अपराधियों को इस कानून का इतना भय जरूर हुआ है कि जो संख्‍या पहले कई गुना ऐसे मामलों की सामने आती थी, उसमें एक दम से कमी आई है। कानून के भय का व्‍यापक असर प्रेम का ड्रामा करनेवालों में सीधे तौर पर दिखाई दे रहा है।

वर्तमान में आ रहे प्रकरण इस ओर ही इशारा कर रहे हैं कि सरकार के प्रयासों और कानून की सख्‍ती के कारण से ही योजनाबद्ध तरीके से हिन्‍दू लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाने का जो षड्यंत्र चला आ रहा था, उसमें कमी आ सकी है।


हमें भूलना नहीं चाहिए कि भारत की मूल छवि जहां सर्वपंथ सद्भाव में निहित है, वहीं हिन्‍दू संस्‍कृति इस सर्वपंथ सद्भाव का मूल (जड़) है। भारत में यह भावना तभी तक बलवती है जब तक कि यहां हिन्‍दू सनातन संस्‍कृति को माननेवाले बहुसंख्‍यक हैं।


प्रेम की आड़ लेकर जो बहुसंख्‍यकों को अल्‍पसंख्‍यक बना देने का षड्यंत्र देश भर में इन दिनों चल पड़ा है, वास्‍तव में मध्‍यप्रदेश की भाजपा की शिवराज सरकार इस पर सही तरीके से चोट करने में सफल होती देखी जा सकी है।


मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2021 इस दिशा में एक मील का पत्‍थर साबित हुआ है। अब विचार करनेवाली बात यह है कि आखिर हम क्‍या चाहते हैं ? विचार करें, यदि सत्‍ता परिवर्तन करना ही है, तो क्‍यों ? जबकि शिवराज सरकार सभी के हित में बिना भेद भाव के काम कर रही है। जो पीड़ित हैं उन्‍हें आवश्‍यकता पड़ने पर मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2021 की तरह ही अलग-अलग कानून से संरक्षण प्रदान कर रही है।


वस्‍तुत: पिछले दिनों योजनाओं और उनके क्रियान्‍वयन से लेकर भाजपा की मप्र सरकार ने जो बेहतर कार्य किया है और अनेक दिशाओं में नए नवाचार आरंभ किए हैं, योजनाएं शुरू की हैं, उनके लिए यही कहना होगा कि सत्‍ता परिवर्तन करने की फिलहाल कोई जरूरत नहीं है।


विकास के लिए मध्‍यप्रदेश में भाजपा को अभी सत्‍ता का एक मौका और देना बनता है। सिर्फ विकास और विकसित प्रदेश बनाने के लिए ही क्‍यों ; मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-2021 के सफल क्रियान्‍वयन और इसे आगे भी लागू बनाए रखने के लिए भी राज्‍य में भाजपा को अपनी सरकार बनाए रखने का अवसर उसे जरूर मिलना चाहिए, हाल, फिलहाल तो यही ध्‍यान में आता है।

लेख


डॉ. मयंक चतुर्वेदी