कम्युनिज़्म - विश्व से लेकर भारत तक (भाग -1)

जहां भी कम्युनिस्ट शक्तियों ने सत्ता हासिल की वहां उन्होंने पूंजीपतियों एवं पूर्व शोषकों से अधिक शोषण किया। सिर्फ इतना ही नहीं, कम्युनिस्ट शक्तियों ने अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए बड़े पैमाने पर अपनी ही देश के नागरिकों का नरसंहार भी किया।

The Narrative World    04-Oct-2023   
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कम्युनिज़्म
, एक ऐसा विचार जो कार्ल मार्क्स के द्वारा लाया गया और कहा गया कि इसके माध्यम से विश्व के तथाकथित शोषितों और वंचितों को न्याय दिलाया जा सकता है।


कम्युनिज़्म के शुरुआती दौर में इसके विचारकों ने कहा कि इसका मूल उद्देश्य पूंजीपतियों एवं शोषकों से सत्ता छीनकर सर्वहारा शोषित मजदूर वर्ग की सरकार स्थापित करना है।


हालांकि जहां भी कम्युनिस्ट शक्तियों ने सत्ता हासिल की वहां उन्होंने पूंजीपतियों एवं पूर्व शोषकों से अधिक शोषण किया। सिर्फ इतना ही नहीं, कम्युनिस्ट शक्तियों ने अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए बड़े पैमाने पर अपनी ही देश के नागरिकों का नरसंहार भी किया।


जिस सर्वहारा वर्ग के पक्ष में बात कर कम्युनिस्ट शक्तियों ने दुनिया के विभिन्न देशों में सत्ता हासिल की उन देशों में अपनी नीतियों के माध्यम से उन्होंने उसी सर्वहारा वर्ग के लोगों का सबसे अधिक शोषण किया।


विश्व की पहली कम्युनिस्ट सत्ता स्थापित हुए एक शताब्दी से अधिक का समय बीत चुका है, बावजूद इसके कम्युनिस्ट विचार से प्रभावी देशों एवं संगठनों में स्थितियां अभी भी वैसी ही हैं।


चाहे वह अतीत का सोवियत संघ हो या वर्तमान का चीन, कम्युनिस्ट विचारकों के द्वारा तानाशाही एवं आम जनता का शोषण बदस्तूर जारी है। यह कम्युनिज़्म का ही विचार था कि जोसेफ स्टालिन और माओ ज़ेडोंग जैसे कम्युनिस्ट तानाशाह करोड़ों बेगुनाहों की मौत का कारण बने। तथाकथित क्रांति के नाम पर लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।


जिन लोगों ने कम्युनिज्म की विचारधारा का विरोध किया या उसमें कमियां गिनाई, उन्हें मौत की सजा दी गई। आंकड़ों के अनुसार केवल जोसेफ स्टालिन के शासनकाल में लगभग 5 करोड लोग कम्युनिस्ट नीतियों का शिकार बने। मारे गए इन लोगों में लगभग 50% ऐसे लोग थे जो की मूल रूप से किसान थे और इन्होंने वर्ष 1930 के दशक में कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा चलाए गए अभियान में दम तोड़ दिया।


आम जनता ने जब इन कम्युनिस्ट तानाशाहो के विरुद्ध आवाज उठाने की कोशिश की तब कम्युनिस्ट सत्ता ने उनकी आवाज को पूरी तरह से दबा दिया और साथ ही अपने ही नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार किया। लाखों पुरुषों एवं महिलाओं को गोली मार दी गई। कई लोग ऐसे थे जिन्हें भोजन नहीं दिया गया और वो भूख से मर गए। सिर्फ इतना ही नहीं कम्युनिस्ट शासकों ने हजारों लोगों को बंदी बनाकर उनसे जबरन श्रम करवाया और उन्हें अभाव में रखा।


द्वितीय विश्व युद्ध से पहले ही सोवियत संघ पूर्वी यूरोप पर कब्जा करना चाहता था और उसकी इस कम्युनिस्ट विस्तारवादी सोच के कारण पूर्वी यूरोप के क्षेत्र में भी बड़ी मात्रा में हिंसा देखी गई। विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के प्रभाव के कारण पूर्वी यूरोप के कई क्षेत्र कम्युनिस्ट शासन के अंतर्गत आ गए।


बर्लिन से लेकर पोलैंड और हंगरी से लेकर चेकोस्लोवाकिया तक कम्युनिस्ट शक्तियों ने स्थानीय जनसमुदाय का बड़ी संख्या में नरसंहार किया। हालांकि पूर्वी बर्लिन में कुछ संख्या में बंदी श्रमिकों ने कम्युनिस्ट शक्तियों के विरुद्ध आवाज उठाई लेकिन उसे भी पूरी तरह से कुचल दिया गया। पूर्वी यूरोप के जिन-जिन क्षेत्रों में कम्युनिस्ट तानाशाही के विरुद्ध आवाज उठाई गई उन स्थानों में कम्युनिस्ट सत्ता ने सेवा की तैनाती बढ़ा दी।


सोवियत संघ के कम्युनिस्ट तानाशाह जोसेफ स्टालिन की तरह ही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तानाशाह माओ ज़ेडोंग ने भी आम चीनी नागरिकों के नरसंहार से अपनी सत्ता को बरकरार रखा।


स्टालिन, लेनिन और मार्क्स के विचारों को और हिंसक तरीके से आगे बढ़ाने वाले चीनी कम्युनिस्ट तानाशाह माओ ने अपनी नीतियों से लगभग चार करोड़ से अधिक चीनी नागरिकों की जान ले ली।


चीनी कम्युनिस्ट तानाशाह माओ ने सत्ता हासिल करने के बाद ग्रेट लीव फॉरवर्ड शुरू किया जिसे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार की तरह पेश किया गया। लेकिन इस कम्युनिस्ट नीति का परिणाम कुछ ऐसा रहा कि इसके कारण चीन में मानव इतिहास का सबसे बड़ा अकाल पड़ा।


इस दौरान लाखों लोग मारे गए। इन नीतियों का दबी जुबान में विरोध होना शुरू हो चुका था जिसके बाद चीनी कम्युनिस्ट तानाशाह ने अपने विरोधियों को चुप करने के लिए एक षड्यंत्र रचा और विशेषज्ञ एवं बुद्धिजीवियों से अपनी राय जाहिर करने का आह्वान किया। जिसके बाद माओ ने उन सभी को मौत के घाट उतार दिया, जिन्होंने उसकी नीतियों की आलोचना की थी।


अभी तक करोड़ों लोगों की जान लेने के बाद भी चीनी कम्युनिस्ट तानाशाह की रक्तपिपासा शांत नहीं हुई थी। इसीलिए उसने सांस्कृतिक क्रांति का आवाहन किया जिसके माध्यम से देश के बुद्धिजीवियों शिक्षकों एवं उन सभी वरिष्ठों का नरसंहार किया गया जो मूल चीनी सभ्यता की परंपरा पर विश्वास रखते थे। इस सांस्कृतिक क्रांति में माओ ज़ेडोंग ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को अपना हथियार बनाते हुए अपने विपक्षी नेताओं को भी खत्म कर दिया।


यदि हम भारत की बात करें तो यहां कम्युनिज्म एक ऐसा विषय है जिस पर हाल ही के वर्षों को यदि छोड़ दें तो कोई व्यापक चर्चा नहीं की गई है। भारत में कम्युनिज्म को कुछ इस तरह पेश किया गया है कि यह एक सामान्य नागरिकों के मन में समतावादी एवं उत्तम विचार के रूप में दिखाई देता है। और सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि नेपाल कोलंबिया इथोपिया समेत कई अन्य ऐसे देश हैं जो कम्युनिज्म के शिकार बने हैं।


भारत में कम्युनिज्म का मूल चरित्र कुछ इस प्रकार है कि वह केवल भारतीयता जिसमें, धर्म, आस्था एवं परंपरा शामिल है, को ही नष्ट करने में तुला हुआ है। वहीं यदि कम्युनिस्ट आतंकवाद की बात करें तो देश के विभिन्न जिले इससे प्रभावित है जिसे सामान्यतः हम नक्सलवाद का नाम देते हैं।


दरअसल कम्युनिस्ट विचारकों का भारत में भी यही उद्देश्य है जो उन्होंने पहले सोवियत संघ में और किया है और वर्तमान में चीन में कर रहे हैं। उनका उद्देश्य भारत में लोकतांत्रिक गणराज्य को खत्म कर पूरी तरह से कम्युनिस्ट माओवादी सत्ता की स्थापना करना है, ताकि यहाँ भी बड़ी संख्या में नरसंहार कर भारत की मूल संस्कृति को भी खत्म किया जा सके।

क्रमशः