दीपोत्सव का पर्व व उससे जुड़ी परंपराएं

रोशनी और खुशियों का पर्व है दीपावली। इस त्योहार की शुरुआत धनतेरस अर्थात कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि होती है और अमावस्या तक यह त्योहार मनाया जाता है। त्रयोदशी, चतुर्थी और अमावस्या, इन तीन दिनों तक लगातार दीप प्रज्जवलन करना चाहिए। दीपक शब्द की उत्पत्ति और दीपों की आवली (पंक्ति) से सजे इस पर्व को मनाने के पीछे की क्या पौराणिक महत्ता है, आइए जानते हैं।

The Narrative World    12-Nov-2023   
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जिस दीपदान का उल्लेख करते ही पूजा-पाठ, धार्मिक आस्था या फिर किसी मांगलिक कार्य का आभास होता है, उसका हिंदू धर्म में आखिर क्या महत्व है?


हिंदू धर्म में पूजा-पाठ एवं मांगलिक कार्यों के दौरान दीपक को जलाने का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. हिंदू मान्यता के अनुसार दीये के प्रकाश से न सिर्फ अंधेरा बल्कि नकारात्मकता भी दूर होती है. दीये को शुभता और सौभाग्य का कारण माना गया है. यही कारण है कि न सिर्फ दीपावली बल्कि अन्य प्रमुख पर्वों पर तमाम कामनाओं को लिए हुए लोग दीपदान करते हैं।



रोशनी और खुशियों का पर्व है दीपावली। इस त्योहार की शुरुआत धनतेरस अर्थात कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि होती है और अमावस्या तक यह त्योहार मनाया जाता है। त्रयोदशी, चतुर्थी और अमावस्या, इन तीन दिनों तक लगातार दीप प्रज्जवलन करना चाहिए। दीपक शब्द की उत्पत्ति और दीपों की आवली (पंक्ति) से सजे इस पर्व को मनाने के पीछे की क्या पौराणिक महत्ता है, आइए जानते हैं।


दीपोत्सव भगवान विष्णु का गृहस्थ रूप का पर्व है। इस पर्व पर यदि गणेश जीका पूजन न किया जाए तो लक्ष्मीजी भी नहीं टिकेंगी। अतः दोनों का पूजन आवश्यक है। धनतेरस के दिन प्रदोष काल यानी शाम के समय दीपदान करने से मृत्यु का भय दूर होता है। हिंदू धर्म में प्रकाश यानी रोशनी की उपासना हमेशा सूर्य और अग्नि के रूप में होती रही है।


सूर्य के बारे में कहा जाता है कि सभी प्राणियों को प्रकाश और जीवन देने के लिए सूर्य की उत्पत्ति ईश्वर के दक्षिण नेत्र से हुई है। प्रत्येक संप्रदाय में रोशनी और ज्योति का अपना महत्व है। लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि ही थी। सभी अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया। इसी दिन से दीपावली पर दीप जलाने की परंपरा चली आ रही है।


दीपक और इसकी ज्योति जीवन के समान ही ज्वलंत हैं। पृथ्वी, आकाश,अग्नि, जल, वायु इन सभी पांचों तत्वों से दीपक बनता और प्रकाशित होता है। दीपक जलाने से वातावरण में शुद्ध होता है। सरसों के तेल से दीपक जलाने से वातावरण में मौजूद विषैले कीटाणुओं का नाश होता है।


घर-परिवार की गरीबी दूर करने के लिए धनतेरस की शाम से दीपावली की रात तक अखंड दीपक जलाना लाभकारी माना जाता है। कहा जाता है कि धनतेरस से भैया दूज तक घर में अखंड दीपक जलाने से पांचों तत्व संतुलित हो जाते हैं और इसका असर पूरे साल व्यक्ति के जीवन पर रहता है।


क्यों खास है दीया:दीये की पांच बाताें से समझें दीपावली के प्रकाश का महत्व:-


दीये की पांच बाताें से समझें दीपावली के प्रकाश का महत्व। इस बार दीपावली पर प्रकाश काे बड़ी ताकत लगेगी अंधकार काे हटाने में, मिटाने में। सच ताे यह है कि इस बार जैसा अंधकार मानवता ने कभी नहीं देखा। इसीलिए प्रकाश काे भी अनूठा करना हाेगा। दीवाली केवल उपासना और उपहार के लिए न मनाई जाए, इस बार उपचार पर भी विशेष ध्यान देना हाेगा। शारीरिक राेग का निदान ताे लाेग निकाल लेंगे, लेकिन यह अंधकार इस बार मानसिक राेग बनकर आ रहा है। दीवाली का अर्थ हाेता है दीया और उसकी शृंखला। संस्कृत भाषा के दाे शब्द इसमें समाए हैं- दीप और आवली।


आवली यानी शृंखला। दीपकाें की शृंखला का अर्थ ही है राेशनी का लघु यज्ञ। ताे चलिए इस बार दीपक का सही अर्थ समझें। एक दीये में पांच बातें हाेती हैं और इन पांचाें बाताें काे इस बार दीवाली पर जीवन में उतारा जाए। अब जब पूजा और प्रकाश करें ताे इन पांच बाताें का मकसद भी जरूर याद रखें। ये पांच बातें हैं- पात्र यानी दीया किसका बना है? मिट्टी, पीतल या अन्य धातु का, बाती, तेल/घी, अग्नि और ज्याेति। इन पांचाें बाताें काे थाेड़ा विस्तार से समझते हैं-


1. पात्र : (हिरणकश्यप-नरसिंह भगवान)


सबसे पहले पत्थर के दीये बनाए गए। धीरे-धीरे मिट्टी के बनने लगे। उसके बाद पीतल, लाेहा, चांदी एेसे कई रूप में दीए बने। दीया बिल्कुल उसी तरह का पात्र है जेसे मनुष्य का शरीर। हमारा शरीर भी एक पात्र है। जैसे हम संभालकर दीये के पात्र तैयार करते हैं, वैसे ही अपनी देह काे संभालना हाेगा।


प्रसंग : माना जाता है कि दीवाली के दिन बली के राज में लक्ष्मी-नारायणजी आते हैं। हिरणकश्यप के वध के पश्चात पूरे बह्मांड में जाे प्रसन्नता छाई थी, दीवाली मनाने का एक कारण ये भी माना जाता है।


प्रेरणा : पात्र के रूप में दीया हमें ये समझाता है कि मेरी मजबूती ही प्रकाश का आधार बनती है। इस बार दीवाली पर संकल्प लें कि हम अपनी देह और स्वास्थ्य काे बहुत संभालकर रखेंगे।


उत्सव : सुरानका दुन्दुभयाेअर्थ जन्धिरे। गन्धर्व ननृतुर्जुग: स्त्रिय:।।

अर्थात: देवताओं के ढाेल-नगाड़े बजने लगे। गंधर्व गाने लगे, अप्सराएं नाचने लगीं।


2. बाती : (नरकासुर)


बाती काे तैयार करना पड़ता है। उबेटना गूंथना, क्याेंकि वही आधार है पात्र यानी दीये और अग्नि के बीच। बाती का रूप काेई भी हाे, पर उसे इस याेग्य बनाना पड़ता है कि वह तेल या घी काे ग्रहण कर अग्नि काे अपने भीतर समाहित करे।


प्रसंग : दीवाली का एक प्रसंग नरकासुर वध से भी जुड़ा है। भगवान कृष्ण ने राजा नरकासुर का वध किया तो मानवता का उपकार करने के लिए जाे प्रसन्नता छाई थी वह दीवाली का रूप था।


प्रेरणा : बाती परिश्रम और पराक्रम से तैयार हाेती है। जलती ताे बाती है, पर नाम समूचे दीये का हाेता है। कभी-कभी हमारे काम का यश दूसराें काे मिलता है। लेकिन हमें निराश नहीं हाेना है।


उत्सव : हाहेति सान्धिवत्युषय: सुरेश्वरा। माल्यैर्मुकुन्दं विकिरंत ई डिरे।

अर्थात: नरकासुर के संबंधी हाय-हाय कर उठे। ऋषिगण साधु-साधु कहने लगे।


3. तेल/घी : (गाेवर्धन)


यह वह साधन है जिसे कहीं और से एकत्रित कर दीये में डालना पड़ता है। सामान्य रूप से पहले के समय ताे तेल का ही उपयाेग किया जाता था, अब घी का भी प्रयाेग हाेने लगा है। यही वह साधन है जिससे अग्नि उत्पन्न हाेती है। तेल किसका है, घी यदि गाय का हाे ताे अाैर प्रभावशाली है। ये बातें तेल/घी रूपी साधन के लिए महत्वपूर्ण हैं।


प्रसंग : भगवान कृष्ण ने गाेवर्धन पर्वत उठाया था। वे इंद्र काे समझाना चाहते थे कि वर्षा के बदले तुम पूजा की अपेक्षा रखते हाे, यह भ्रष्टाचार है। गाेवर्धन की पूजा इसलिए की गई थी क्याेंकि वह प्रकृति का प्रतिनिधि था।


प्रेरणा : गाेवर्धन पूजा से कृष्ण हमें समझाते हैं कि साधन व सुविधाओं का दुरुपयाेग मत कराे। अपने अधिकाराें का अतिक्रमण कराेगे ताे भगवान इंद्र की तरह हमकाे भी देंगे। प्रकृति का मान ही परमात्मा की पूजा है।


4. अग्नि : (रामजी)


दीये की पहचान और उसके प्राण ही अग्नि है। यदि उसमें अग्नि नहीं है ताे बुझा हुए दीया किस काम का। अग्नि हवा से सुरक्षित रहे, अन्य साधनाें से बुझे नहीं, इसकी पूरी सुरक्षा करनी पड़ती है।


प्रसंग : दीवाली से जुड़ा सबसे अधिक मान्य और लाेकप्रिय प्रसंग है रावण वध के बाद श्रीराम का अयाेध्या में प्रवेश करना। चाैदह वर्ष का जाे दुख अयाेध्या ने भाेगा था, उसकाे जिस प्रकार आनंद में बदला गया, वही दीवाली है। वही उसका उत्सव है।


प्रेरणा : श्रीराम प्रकाश का प्रतीक हैं। दीये की राेशनी से संदेश मिलता है कि हमारे भीतर रावणरूपी अंधेरे का विनाश हाेगा। अग्नि का एक और रूप है लगन व निष्पक्षता। दीवाली पर ये संकल्प लें कि महामारी चाहे जाे कर ले, लक्ष्य के प्रति हमारी लगन टूटेगी नहीं।


उत्सव : अमित रूप प्रगटे तेहि काला।

अर्थात: श्रीराम असंज्य रूप में ऐसे प्रकट हुए जैसे एक दीये से कई दीपक जल उठे।


5. ज्याेति : (लक्ष्मी)


दीये की 4 बातें ताे दिखती हैं, लेकिन 5वीं चीज है ज्याेति, जाे अग्नि में विराजित है। अग्नि ताे बुझ जाती है, पर ज्याेति बुझती नहीं, कुछ देर के लिए दिखना बंद हाे जाती है। अग्नि काे फायर कहेंगे, ज्याेति काे लैंप कहेंगे। इसीलिए हमारे शास्त्राें में ज्याेति काे अात्मा से जाेड़ा जाता है।


प्रसंग : राक्षसाें का वध करने के बाद महाकाली को शांत करने के लिए प्रार्थना की गई तो वे महालक्ष्मी के रूप में प्रकट हुईं। यही दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजन का उद्देश्य बन गया।


प्रेरणा : दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन का अर्थ केवल धन से नहीं जाेड़ा जाए। इसका अर्थ है आत्मजागृति क्याेंकि ज्याेति ही जागृति है, ज्याेति ही प्रकाश है, जो आत्मा को आलोकित करती है।


उत्सव : सव्रदिहासं दधती सुशाेभनम्।

अर्थात: लक्ष्मीजी की शाेभा अवर्णनीय थी। कुछ लज्जा के साथ मंद-मंद मुस्कुरा रही थीं।


कितने दिए जलाए जाएं?


दीवाली के पर्व पर लोग पूरे घरों में दिए जलाते हैं. दीये जलाना हिंदू धर्म में बेहद शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इससे घर की नकारात्मकता दूर होती है. इस दिन 13 दिए जलाकर घर के हर कोने में रखे जाते हैं. तो आइए जानते हैं 13 दियों को जलाने के पीछे की क्या वजह है.


दीवाली पर 13 दिए जलाने का महत्व और मान्यता

आइए जानते है हर दिए के धार्मिक महत्व के बारे में-


ऐसी मान्यता है कि पहले दिये को जलाने से परिवार की अकाल मृत्यु से सुरक्षा होती है धनतेरस वाले दिन कूड़ेदान के पास इन 13 पुराने दियों को दक्षिण दिशा की ओर जलाना चाहिए.


दीवाली की रात को दूसरा दिया घर के मंदिर पर जलाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है.


तीसरा दिया माता लक्ष्मी के सामने रखा जाता है. इसको लेकर ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से माता लक्ष्मी से धन, समृद्धि और सफलता का आर्शीवाद दिया जाता है.

चौथा दिया मां तुलसी के पास रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से घर में शांति बनी रहती है.


पांचवे दिये को घर के दरवाजे पर रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से घर की नकारात्मकता को दूर करता है और खुशियां आती हैं.


छठा दिया पीपल के पेड़ के नीचे रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह धन संबंधी और स्वास्थय संबंधी समस्याओं को दूर करने में लाभदायी होता है.


सातवां दिया किसी मंदिर में जलाकर रखा जाता है.


आठवां दिया घर के कूड़ेदान के पास जलाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि ये नकारात्मकता और बुरी आत्माओं से घर को बचाने में मदद करता है.


नवां दीया घर के शौचालय के पास जलाया जाता है. यह घर नें सकारात्मकता लाने में मदद करता है.


दसवें दिए को घर की छत पर जलाया जाता है. यह घर की नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है.


ग्यारहवां दिया घर की खिड़की के पास जलाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह बुरी ऊर्जा को दूर करने में मदद करता है.


बारहवां दिया घर की सबसे ऊपरी मंजिल पर जलाया जाता है. यह घर वालों के स्वास्थय के लिए लाभदायी माना जाता है.


तेरहवां दिया घर के चौराहे पर रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह घर में अच्छी ऊर्जा का संचार करने में मदद करता है।


इस प्रकार आज भी दीपावली का त्योहार सांस्कृतिक और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है। इस त्योहार के कारण लोगों में आज भी सामाजिक एकता बनी हुई है। हिंदी साहित्यकार गोपालदास नीरज ने भी कहा है, "जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।" इसलिए दीपावली पर प्रेम और सौहार्द को बढ़ावा देने के प्रयत्न करने चाहिए।


लेख


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आलेख शर्मा

एडवोकेट मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ग्वालियर

एमबीए का छात्र