चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की दमनकारी नीतियाँ

चीन में किसी भी व्यक्ति को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की खिलाफत करने का अधिकार नही है यह तो पूरी दुनिया जानती है. लेकिन शिनजियांग प्रान्त के उइगर मुसलमानों, तिब्बत के तिब्बती बौद्धों और इनर मंगोल के मंगोलों तथा हांगकांग व ताइवान के लोगों का चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने जीना मुश्किल कर रखा है.

The Narrative World    21-Nov-2023   
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साल
1917 में हुई सोवियत संघ की तथाकथित बोल्शेविक क्रांति और उसके जनक मार्क्सवादी विचारधारा से ग्रसित ब्लादिमीर लेनिन से प्रभावित हो कर माओ जेडॉन्ग और कुछ अन्य लोगों ने 1 जुलाई 1921 को 'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी' की स्थापना की.


माओ और उसके साथियों द्वारा इस पार्टी की स्थापना का कथित रूप से उद्देश्य शोषित और वंचित वर्ग को समानता का अधिकार दिलाना बताया गया. लेकिन वास्तविकता यह थी कि ये कम्युनिस्ट सत्ता तक पहुंचना चाहते थे और इसके लिए कुछ भी करने को तैयार थे.


'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी' चीन की सत्ता में तो काबिज़ हुई लेकिन अपने ही देश को गृहयुद्ध में झोंकते और शोषित-वंचित वर्ग के लाखों लोगों की लाशों पर चढ़ाई करते हुए. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने सत्ता में आने के लिए चीन के निम्न वर्ग को हमेशा ही आगे रखा और क्रांति का बिगुल फूंकते हुए समाज के प्रत्येक वर्ग का मनमाने ढंग से खून बहाया.


अब उसी रक्तपात से चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी अपनी स्थापना का इतिहास लिख रही है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का हिंसक इतिहास बीते एक सदी में कितना हिंसक और दुर्दांत रहा है इस बात का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि, चीन में क्रांति के नाम पर हुई हत्याएं प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में मारे गए सैनिकों की संख्या से कहीं अधिक है.


इसके बाद भी चीन की कम्युनिस्ट सरकार आज भी हिंसा और अत्याचार में उतारू हैयह पूरी एक सदी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किए गए नरसंहारों, हत्याओं एवं यातनाओं से भरी हुई है. इसके अलावा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने इतिहास में पड़ोसी देशों में कब्ज़ा करते हुए चीन का क्षेत्रफल तो बढ़ाया मगर जिन देशों में कब्ज़ा किया वहाँ के लोगों का जीवन यातनाओं से भर दिया है.


आज चीन में आर्थिक समृद्धि सातवें आसमान पर है, किंतु चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कारण वहां के लोगों का जीवन गर्त में चला गया है.


चीन में किसी भी व्यक्ति को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की खिलाफत करने का अधिकार नही है यह तो पूरी दुनिया जानती है. लेकिन शिनजियांग प्रान्त के उइगर मुसलमानों, तिब्बत के तिब्बती बौद्धों और इनर मंगोल के मंगोलों तथा हांगकांग व ताइवान के लोगों का चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने जीवन मुश्किल कर रखा है.


चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा उइगर मुसलमानों व कुछ तिब्बतियों को शिनजियांग प्रांत में बने डिटेंशन सेंटर में बंधक बनाकर रखा गया है और अन्य तिब्बतियों को विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता रहा है.


वहीं मंगोलों के हाल भी उइगरों और तिब्बतियों से मिलते-जुलते ही हैं, मंगोलों से तो उनकी भाषायी स्वतंत्रता तक छीन ली गई है और चीन की आधिकारिक भाषा मंडारिन थोप दी गई है.


हांगकांग में बीते दो दशकों से चीन का कब्ज़ा है और वह यहाँ अपने सभी नियम कानून मानने को मजबूर करता है और यदि कोई लोकतंत्र की बात करता है तो उसे जेल में डाल दिया जाता है.


ताइवान पर न तो चीन का कब्ज़ा है और न ही ताइवानी चीन में रहते लेकिन चीन ताइवान को देश नही मानता और लगभग हर समय युद्ध जैसी स्थिति बनाए रखता है जिससे ताइवानियों को चीन के कब्जे में जाने का डर भी लगा रहता है.


चीन हमेशा अपने आस पास के क्षेत्रों को कब्जा कर वहाँ की संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, विश्वास, आस्था को खत्म कर वामपंथी शासन की स्थापना करना चाहता है. यही कारण है कि आज चीन के लगभग सभी पड़ोसी देशों से संबंध पूरी तरह ख़राब हैं।