बलिदान दिवस: सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर जी ने शीश कटा लिया, लेकिन इस्लाम नहीं अपनाया

गुरु तेग बहादुर और औरंगजेब के बीच की तकरार निजी ना होकर धार्मिक थी, जिसकी शुरुआत तब हुई जब औरंगजेब लगातार कश्मीरी हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण के लिए नरसंहार कर रहा था और कश्मीरी हिंदुओं का समूह अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी से मिलने पहुँचा था।

The Narrative World    24-Nov-2023   
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के दशक में कश्मीरी हिंदुओं पर अनेक अत्याचार हुए। धर्मान्धों के आतंक से ऋषि कश्यप की धरती अपवित्र हुई थी, लेकिन यह पहली बार नही था जब धरती के स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर में ऐसा हो रहा था।


मुग़ल शासक औरंगजेब के शासनकाल के दौरान कश्मीरी हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया जा रहा था।


जो कश्मीरी हिंदु मना करता उसे मार दिया जाता, महिलाओं का बलात्कार कर दिया जाता, घरों को आग लगा दिया जाता था। तब एक व्यक्ति थे, जिन्होंने इसका कड़ा विरोध किया था, वो थे "त्याग मल।"


यह त्याग मल और कोई नहीं बल्कि सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी थे। तब गुरु तेग बहादुर जी ने अपना शीश कटा लिया था लेकिन कभी झुकने नहीं दिया।


गुरु तेग बहादुर का जन्म 1621 में अमृतसर में हुआ था। मात्र 14 वर्ष की आयु में करतारपुर की जंग के दौरान मुग़लों के खिलाफ अदम्य साहस दिखाने की वजह से उन्हें 'तेग बहादुर' का नाम मिला था। 1664 में वो सिखों के नौवें गुरु के रूप में चुने गए।

गुरु तेग बहादुर और औरंगजेब के बीच की तकरार निजी ना होकर धार्मिक थी, जिसकी शुरुआत तब हुई जब औरंगजेब लगातार कश्मीरी हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण के लिए नरसंहार कर रहा था और कश्मीरी हिंदुओं का समूह अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी से मिलने पहुँचा था।


गुरु तेग बहादुर जी ने उन्हें अपनी गिहबानी में ले लिया। गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी हिंदुओं के लिए पूरा सुरक्षा चक्र बनाया था। इसी बात से औरंगजेब तिलमिला उठा। गुरु तेग बहादुर अपने 3 शिष्यों के साथ जुलाई 1675 में आनंदपुर से दिल्ली जा रहे थे, तभी उनके शिष्यों सहित उन्हें मुग़ल सेना ने गिरफ्तार कर लिया था।


गिरफ्तार करने के बाद उन्हें 4 महीनों तक अलग-अलग कारावास में बंदी बनाकर रखा जिसके बाद 2 नवंबर 1675 में उन्हें दिल्ली में औरंगजेब के समक्ष लाया गया। औरंगजेब ने उन्हें भरी सभा में लोभ-लालच देकर मुसलमान बनने को कहा जिसे गुरु तेग बहादुर ने अपने साहस का परिचय देते हुए साफ ठुकरा दिया।


औरंगजेब ने इसके बाद उन्हें "इस्लाम और मौत" में से एक को चुनने को कहा जिसके बाद भी गुरु तेग़ बहादुर अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए।


इन सब के बाद गुरु तेग बहादुर को डराने के लिए उनके 3 कश्मीरी हिंदु शिष्यों के सर धड़ से अलग कर दिए गए, गिरफ्तार किए गए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गए, दूसरे भाई दयाल दास को खौलते तेल की कढ़ाई में जिंदा फेंकवा दिया वहीं तीसरे भाई सति दास को ज़िंदा जला दिया गया। इन सब के बाद भी गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया।


जब यह सब देखने के बाद भी गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने 24 नवंबर को उनका सर कलम करने का आदेश दिया। दिल्ली में ही मुग़ल शासक औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर के सर को कलम किया गया।


"हिन्द दी चादर" के नाम से प्रख्यात गुरु तेग बहादुर जी का शीश जिस जगह गिरा था आज वहाँ उनके नाम पर "शीशगंज गुरुद्वारा" के नाम से गुरुद्वारा स्थित है।


सनातन धर्म की रक्षा के लिए, अपने कश्मीरी हिंदु भाइयों के लिए बलिदान देने वाले वो शख़्स जो करतारपुर के संघर्ष के बाद त्याग मल से तेग बहादुर बने, ऐसे ही अनगिनत बलिदानों से आज भारत टिका हुआ है।


भारत की मिट्टी को आक्रांताओं को से बचाने के लिए ना जाने कितनों ने अपने रक्त से इसको सींचा है। इसका सम्मान कीजिए, इस पर गर्व कीजिए कि आपके पूर्वजों ने किसी आक्रान्ता के सामने गर्दन नहीं झुकाया, किसी आक्रांता के सामने आपके लोगों ने मरना स्वीकार किया लेकिन खुद को बेचना नहीं।


आज सिख सम्प्रदाय के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी का बलिदान दिवस है. यह देश और इस देश के सभी लोग उनके सदैव ऋणी रहेंगे।