सेवा की आड़ में षड्यंत्र और शोषण आखिर कब तक?

दक्षिण अफ्रीका का एक विचारक कहता है “यूरोपियन देशों के पास चार तरह की सेना हैं थल सेना, जल सेना, वायु सेना और चर्च। वह सबसे पहले चर्च को भेजते हैं जो उनके लिए शिक्षा एवं सेवा के नाम पर जीत का वातावरण तैयार करती है और धीरे-धीरे वह समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर लेते हैं। चर्च और षड्यंत्रकारियों का मकड़जाल इतनी धूर्तता से अपना काम स्थानीय बौद्धिक वर्ग में करता है की वहाँ की संस्कृति कब नष्ट हो गयी पता ही नहीं चलता।"

The Narrative World    27-Nov-2023   
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वसुधैव कुटुम्बकम् के आलोक में धार्मिक सहिष्णुता का गुण धर्म सनातन धर्म के मूल में है, परंतु ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इसकी अतिशयता अत्यधिक घातक सिद्ध हुई है। भारतवर्ष लंबे अर्से से सेवा की आड़ में मंतातरण, अत्याचार, अनाचार और विभिन्न प्रकार से शोषण का ईसाई मिशनरियों का केंद्र बिंदु बना हुआ है। मिशनरियों के दुष्कर्म और आतंक गोवा से प्रारंभ हुए। गोवा पर पुर्तगाली कब्जे के बाद पादरी जेवियर ने हिंदुओं का भयंकर उत्पीड़न किया। गोवा में ईसाई कानून 1561 में लागू हुए। हिंदू प्रतीक धारण करना भी अपराध था। तिलक लगाना और घर में तुलसी का पौधा रोपना भी मृत्युदंड का अपराध बना।फ्रांसिस जेवियर: द मैन एंड हिज मिशनके अनुसार एक दिन में छह हजार लोगों के सिर काटने पर जेवियर ने प्रसन्नता व्यक्त की। एआर पिरोलकर नेद गोवा इनक्वीजनमें लिखा, ‘आरोपी के हाथ-पांव काटना, मोमबत्ती से शरीर जलाना, रीढ़ तोड़ना, गोमांस खिलाने जैसे अन्यान्य अमानवीय अत्याचार किए गए।


बरतानिया सरकार ने सन् 1813 के चार्टर एक्ट से ईसाई मिशनरियों को प्रवेश के साथ भारत में हर प्रकार की छूट दे दी। तदुपरांत भारत में ईसाई मिशनरियों का मकड़जाल फलने-फूलने लगा। भारत में मंतातरण कराने वाली ईसाई मिशनरी योजनाबद्ध तरीके से सनातन धर्म और भारत की जड़ों को काटने का कार्य प्रारंभ किया।


प्रकारांतर से वंचितों और दलितों को पृथक परिभाषित कर हिन्दू धर्म में दरार पैदा की गई। ईसाई मिशनरियों द्वारा विभिन्न रास्तों से पृथक - पृथक तरीकों से हिंदुओं का तथाकथित धर्मांतरण कराया गया। कभी बलपूर्वक, छलपूर्वक तो कभी सेवा, स्वास्थ्य, शिक्षा नौकरी, चंगाई सभा और समानता की आड़ में मंतातरण कराया। लेकिन वर्तमान में वस्तुस्थिति यह है कि भारत में कैथोलिक चर्च के 6 कार्डिनल हैं, पर कोई दलित नहीं। 30 आर्कबिशप में कोई दलित नहीं, 175 बिशप में केवल 9 दलित हैं, 822 मेजर सुपिरियर में 12 दलित हैं, 25000 कैथोलिक पादरियों में 1130 दलित ईसाई हैं।


इतिहास में पहली बार भारत के कैथोलिक चर्च ने यह स्वीकार किया है कि जिस छुआछूत और जातिभेद के दंश से बचने को दलितों ने हिन्दू धर्म को त्यागा था, वे आज भी उसके शिकार हैं। दक्षिण अफ्रीका का एक विचारक कहता हैयूरोपियन देशों के पास चार तरह की सेना हैं थल सेना, जल सेना, वायु सेना और चर्च। वह सबसे पहले चर्च को भेजते हैं जो उनके लिए शिक्षा एवं सेवा के नाम पर जीत का वातावरण तैयार करती है और धीरे-धीरे वह समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर लेते हैं। चर्च और षड्यंत्रकारियों का मकड़जाल इतनी धूर्तता से अपना काम स्थानीय बौद्धिक वर्ग में करता है की वहाँ की संस्कृति कब नष्ट हो गयी पता ही नहीं चलता।"


यह कितना भयावह है कि ईसाईयत का खेल खेलने के लिए विदेशों से हज़ारों करोड़ रुपया थोक के भाव भारत भेजा जाता है, सिर्फ इतना ही नही, इनको धन की कमी न हो इसके लिए भारत में ही बैठे हिंदुत्व विरोधी और राष्ट्र के दुश्मन इनको अथाह धन उपलब्ध कराते हैं। धर्मान्तरण के लिए सबसे पहले निशाना बनाया जाता है, गरीब दलित और जनजातियों को जिनकी गरीबी और अशिक्षा को हथियार बना कर, धन का लालच देकर, बहला फुसलाकर कर हाथों में बाईबल और क्रॉस थमा दिया जाता है और उनको अपनी ही संस्कृति व धर्म का दुश्मन बना दिया जाता है।


आप कह सकते हैं कि शनैः शनैः उनको मानसिक विकलांग बना दिया जाता है। इन सबके लिए ये ईसाई मिशनरी तरह तरह की पुस्तकों, प्रचार माध्यमों, फिल्मों कार्यक्रमों व चर्च में होने वाली नियमित बैठकों के साथ - साथ स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों का सहारा लेते हैं और नितांत योजनाबद्ध तरीके से लोगों के मस्तिष्क में उनके ही गौरव पूर्ण इतिहास, देवी देवताओं तीर्थों और महापुरुषों के प्रति विष भरने के लिये प्रशिक्षण सत्र चलाये जाते हैं और वो इस कार्य में सफल भी रहे हैं।


ईसाई धर्मांतरण अंग्रेजी राज के समय से ही राष्ट्रीय चिंता का विषय है। मिशनरी संगठन उपचार, शिक्षा आदि सेवाओं के बदले गरीबों का धर्मांतरण कराते हैं। महात्मा गांधी ने 18 जुलाई, 1936 के हरिजन में लिखा था, ‘आप पुरस्कार के रूप में चाहते हैं कि आपके मरीज ईसाई बन जाएं।


डॉ. भीमराव आंबेडकर आंबेडकर भी इसी मत के थे। उन्होंने लिखा था कि, ‘गांधी के तर्क से वह सहमत हैं, लेकिन उन्हें मिशनरियों से स्पष्ट कह देना चाहिए था कि अपना काम रोक दो।ईसाई मिशनरियों पर तंज कसते हुए, एक समय अफ्रीकी आर्कबिशप डेसमंड टुटू ने कहा था, ‘जब मिशनरी अफ्रीका आए तो उनके पास बाइबिल थी और हमारे पास धरती।मिशनरी ने कहा, ‘हम सब प्रार्थना करें। हमने प्रार्थना की। आंखें खोलीं तो पाया कि हमारे हाथ में बाइबिल थी और भूमि उनके कब्जे में।


महाकौशल प्रांत भारत का हृदय स्थल है, यहाँ की जनजातीय संस्कृति हिंदुत्व की धड़कन है। इसलिए ईसाई मिशनरियों ने महाकौशल प्रांत में मुख्य रुप से जनजातियों को अपना निशाना बनाया है। ईसाईयत के अनुसार गाॅड (ईश्वर) का पहला बेटा स्वर्ग दूत लूसीफर ही शैतान बन गया था। वह वेरियर एल्विन के रुप में डिंडौरी पहुँचा। वेरियर एल्विन ने 13 वर्षीय बैगा बालिका कौशी बाई के साथ बाल विवाह कर उसका सर्वनाश कर दिया। रक्त बीज वेरियर एल्विन ने डिंडौरी में यौन शोषण और मंतातरण के विषैले बीज बोए। ये बीज फट रहे हैं और महाकौशल सहित संपूर्ण भारत में सैकड़ों कौशी देवी शिकार हो रही हैं। जिसका भयावह रुप मार्च 2023 में डिंडौरी के जुनवानी मिशनरी स्कूल में देखने को मिला था। यहाँ 8 नाबालिग जनजातीय बालिकाओं का यौन शोषण शिक्षक खेमचंद बिरको और पादरी सनी फादर ने किया जिसमें वार्डन सविता एक्का सहयोगी रही। पहले मामले को दबाने का प्रयास किया गया परंतु नई दुनिया समाचार पत्र मुखर हुआ और माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तत्परता के साथ सख्त कार्रवाई की। फलस्वरुप पाक्सो एक्ट सहित अन्य धाराओं में आपराधिक प्रकरण दर्ज हुए।


सन् 1937 से स्थापित इस स्कूल में सेवा और शिक्षा की आड़ में बदस्तूर यौन शोषण, मंतातरण जारी रहा। विदेशी फंडिंग के साथ राज्य से भी अनुदान मिलता रहा। अति तो तब हुई जब बिशप ने कहा था कि ". प्र. को कैथोलिक स्टेट बनाना है।" . प्र सरकार ने नकेल डाल दी थी और मिशनरियों का यह कहना बंद हो गया है कि "सरकार कोई भी हो सिस्टम तो हमारा है।" बिशप और पादरियों द्वारा यौन उत्पीड़न की कहानी सिस्टर लूसी कलाप्पुरा की आत्मकथाकार्ताविन्ते नामाथिल’ (ईश्वर के नाम पर) में भी पढ़ी जा सकती है। इसे पढ़कर स्पष्ट होता है कि यौन शोषण और उत्पीड़न चर्च के लिए कोई नया शब्द नहीं है।


जबलपुर में निवासरत् भारत के सर्वाधिक कुख्यात पूर्व बिशप पी. सी. सिंह के पद में रहते हुए देश भर में 99 आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं, फिर भी बिशप पीसी सिंह जमानत पर रिहा हैं। डाॅनों के डाॅन पी सी सिंह पर ज्यादातर मामले अमानत में ख्यानत के हैं। इनमें छेड़छाड़, अवैध वसूली, फर्जी दस्तावेज बनाने सहित अन्य प्रकरण भी शामिल हैं। यह भी आरोप लगाए गए थे कि बिशप पीसी सिंह ने अपने सहयोगी पीटर बलदेव से मिलीभगत कर मिर्जापुर (उप्र) में 10 करोड़ रपये कीमत की जमीन बेच दी थी।


लेख


डॉ. आनंद सिंह राणा

इतिहास विभाग, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय

इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत