गुरु घासीदास जयंतीः संत जातिगत सीमाओं से परे हैं, इसलिए विश्व कल्याण के पथ प्रदर्शक हैं

छत्तीसगढ़ की भूमि महान विभुतियों के सत्कर्मों से सिंचित हुई। इनमें संत गुरु घासीदास के सामाजिक उत्थान और सत्चरित्र को प्रतिवर्ष 18 दिसंबर के दिन शासकीय संस्थानों और सामाजिक सम्मेलनों में याद किया जाता है।

The Narrative World    18-Dec-2023   
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क्या संत गुरु घासीदास का नाम विश्वस्तर पर स्थापित किया जा सकता है ? चरित्र निर्माण सभी जाति-धर्म के लिए आवश्यक है, इसलिए अन्य धर्मों में भी संत गुरु घासीदास के अनुयायी हैं। राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के सिद्धांतों का आधार इनके सात सिद्धांत हैं, जो विश्व कल्याण हेतु दिशानिर्देशक हैं।


छत्तीसगढ़ की भूमि महान विभुतियों के सत्कर्मों से सिंचित हुई। इनमें संत गुरु घासीदास के सामाजिक उत्थान और सत्चरित्र को प्रतिवर्ष 18 दिसंबर के दिन शासकीय संस्थानों और सामाजिक सम्मेलनों में याद किया जाता है।


छत्तीसगढ़ के प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थी संत गुरु घासीदास के सात सिद्धांतों को कंठस्थ किए हुए हैं। सतनाम समाज के अनुयायियों द्वारा जैतखंभ स्थापित कर गुरु वंदना की जाती है। 18 दिसंबर संत गुरु घासीदास की जयंती है, इस दिन छत्तीसगढ़ के हर हिस्से में उत्सव मनाया जाता है।


सांस्कृतिक सम्मेलन, मेला और पंथी नृत्य की प्रस्तुति देखने लोगों में उत्सुकता रहती है। छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले स्थित लालपुर के मेले में प्रतिवर्ष मुख्यमंत्री सम्मिलित होते हैं और सामाजिक उत्थान की दिशा में पहल करते हुए विकासीय परियोजनाओं की घोषणा करते हैं।


संत गुरु घासीदास के सिद्धांतों में समस्त विश्व के कल्याण का मार्ग ध्येय होता है, किंतु इन्हें केवल छत्तीसगढ़ में ही सीमित कर देने के कारण समाज के अन्य वर्गों में ज्ञानवर्धन और प्रगति होना शेष है।


क्या संस्कृति विभाग, पर्यटन विभाग और जनसंपर्क विभाग के संयुक्त पहल से संत गुरु घासीदास के सिद्धांतों को विश्वभर में प्रचारित किया जा सकता है ? क्या संत गुरु घासीदास ने केवल छत्तीसगढ़वासियों के लिए सत्कर्मों की पहचान की थी ? क्योंकि संपूर्ण प्राणीजगत के लिए श्रेष्ठ जीवन की कामना करने वाले संत की शिक्षाओं से सामाजिक और व्यक्तिगत बुराईयों का अंत किया जा सकता है।


संत गुरु घासीदास के आदर्शों और सिद्धांतों को विश्व स्तर पर पहुंचाने के लिए आवश्यक पहल करना आवश्यक है।


संत गुरु नानक, संत कबीर, संत रविदास का नाम विश्व भर में फैला है, इनके अनुयायी अन्य धर्मों में भी हैं। संस्कृति विभाग के व्यापक दृष्टिकोण से गिरौदपुरी धाम का महिमामंडन भी किया जा सकता है लेकिन क्या इसके बाद इस तीर्थस्थली में पर्यटकों को विशेष सुविधाएं उपलब्ध होंगी, जिससे कि आदर्श भाव मन में स्थापित हो सके, और गुरु घासीदास के सिद्धांतों को आत्मसात कर जीवन के लक्ष्यों को पूरा करने की प्रेरणा मिल सके।


संत गुरु घासीदास के सात सिद्धांतों में- सत्य पर विश्वास, निराकार भक्ति, जातिगत समरसता, शाकाहार, जीव हत्या पर रोक, व्यसन से दूर और पराई स्त्री को मां समझना सम्मिलित हैं। राजनीतिक दलों के सिद्धांतों का आधार भी यह उपरोक्त सिद्धांत ही हैं, जैसे- एक समान विधि संहिता, सामाजिक समरसता, शराबबंदी और महिला सुरक्षा इनकी घोषणाओं और वादों में परिलक्षित होता है।


प्रत्येक राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन अपनी वृहद पहचान हेतु संत के सिद्धांतों का सहारा लेती हैं, लेकिन क्या संत का नाम विश्वस्तर पर स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं ?


संत गुरु घासीदास को जातिगत समुदाय के बीच बांधकर नहीं रखा जा सकता है, इनके अनुयायी अन्य जाति और धर्मों में भी हैं। संत के जीवन संघर्ष की घटनाओं से हमें शिक्षा मिलती है कि हमारे जीवनमूल्य क्या हैं ?


चरित्र निर्माण के लिए हर व्यक्ति को इनके सिद्धांतों को अपनाना चाहिए। युवाओं को सुख-सुविधाएं दे सकते हैं लेकिन अभिभावकों की सबसे बड़ी चुनौती है- बच्चों-युवाओं का चरित्र निर्माण। इस हेतु भी संत गुरु घासीदास के सिद्धांत और अमृतवाणियों वर्तमान में प्रासंगिक हैं।


लेख


डॉ. योगेश वैष्णव

मीडिया प्राध्यापक, छत्तीसगढ़