माओवादियों द्वारा निर्दोष लोगों की हत्या, विनाश, बलात्कार, आगजनी, लूट और हत्याओं का इतिहास 50 वर्षों से अधिक का रहा है। यह भारत का दुर्भाग्य था, जिसमें हमारे नेताओं के राजनीतिक कौशल, आलसी बुद्धिजीवियों, भ्रष्ट चौथे खंभे, एक निष्क्रिय तंत्र या उन सभी का संयोजन था, जो इस माओवाद रूपी राक्षस को बढ़ावा दे रहे थे। माओवाद जो भारत की सबसे बडी आतंरिक सुरक्षा के संकट के रूप में उभरा है। सबसे खतरनाक, घातक और बर्बर।
माओवाद जिसे बुद्धिजीवी माओवादियों द्वारा नक्सलवाद भी कहा जाता है, हमेशा वामपंथियों और उदारवादियों द्वारा संरक्षित किया जाता रहा है। ये आश्चर्यजनक है कि एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक देश में हिंसक और बर्बर आंदोलन इतने वर्ष कैसे जीवित रह सकता है ? जबकि आज भारत विश्व में आशाजनक और शांतिपूर्ण राष्ट्रों में से एक हैं।
कम्युनिस्ट, वे लोग हैं जो शासन, प्रशासन में विश्वास नहीं करते हैं। यह एक और बात है कि आज वे स्वयं भ्रष्ट संस्थान हैं और उनके लिए स्वयं के विरुद्ध आवाज उठाना व्यावहारिक रूप से असंभव है।
इसलिए, वे इस प्रतिद्वंदी, हिंसक विचारधारा में शामिल ही नहीं, बल्कि उनके आन्दोलन के साथ खुलकर दिखते हैं जो पूरी तरह से छिपे हुए आतंकवादियों, माआवादियों सभी अलगाववादी और राष्ट्र-विरोधी ताकतों द्वारा संचालित है।
इनमें से बहुत से कम्युनिस्ट और उदारवादी, माओवादियों के साथ उनके फ्रंटल संगठन के रूप में काम करते हैं। वे माने ना माने वे मानवता के सबसे घृणित कृत्यों में लगे होने पर भी स्वयं को उदारवादी कहते हैं।
इनके कुकृत्य को ऐसे समझे कि जी साईबाबा (दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर) को जब गिरफ्तार किया गया था, तो कुछ जगहों पर उनके रणनीतिक दस्तावेज भी पाए गए थे। ये दस्तावेज भारत में माओवादी तंत्र के केन्द्रीय कार्य राजनीतिक शक्ति को चंगुल में लेने के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप और दृढता से बताते हैं।
इस कार्य को पूरा करने के लिए माओवादियों के अनुसार भारतीय लोगों को सेना के रूप में संगठित किया जाना होगा और फिर युद्ध के माध्यम से भारत के सशस्त्र बलों को मिटा देना होगा। अंततः लोगों के कथित भलाई वाले तानाशाही राज्य को स्थापित करना होगा।
हालांकि बड़ा खतरा यह भी है कि यह विचार शासन व्यवस्था में चला जाता है। देश की सेना, पुलिस और नौकरशाही को नष्ट करके तानाशाही प्रशासनिक तंत्र की स्थापना का कार्य, भारत मे चल रही इस कथित लाल क्रांति का मुख्य उदयेशय है।
यह कैसे प्राप्त किया जा रहा है ? वे इसे ग्रामीण इलाकों में पहले क्रांतिकारी आधार क्षेत्रों की स्थापना करके ग्रामीणों को पूरी तरह से भ्रमित करते हैं, और अंदरूनी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश करते हैं।
इसे ऐसे समझे कि नक्सल केवल जंगली या सामान्य नागरिक नहीं है। नक्सल स्मार्ट भी हैं। वे शिक्षित हैं, राजनीति, युद्ध रणनीति और देश की भूगोल को समझते हैं। जहां परिवहन और संचार सुविधाएं जंगलों में बहुत खराब हैं और दूरस्थ ग्रामीण इलाके सैन्य केन्द्रों से बहुत दूर हैं। जिनसे उन्हें जंगलों में पहुँचना मुश्किल हो जाता है।
इसलिए, उन्होंने दुश्मन भारत के विरुद्ध युद्ध करने के लिए घने जंगलों को अपने मुख्य गढ़ बना दिया है। वे इसे मुक्त क्षेत्र कहते हैं। यहाँ से वे लोगों के विभिन्न समूहों को उपयोग करके शहरों में दुश्मन (भारत सरकार) पर हमला करने की योजना बना रहे होते हैं। मजदूरों से लेकर पत्रकारों, वकीलों, प्रोफेसरों और कलाकारों तक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन छात्रों की अस्थिर प्रकृति है, वे उनके लिए हथियारों और गोला बारूद के रूप में काम करते हैं।
अब असल में, मैं उन सभी गुमराह लोगों के साथ पूरी तरह से सहानुभूति व्यक्त करता हूँ जो शहरी नक्सली क्लब से जुड़ने के लिए तैयार हैं। क्योंकि वे सच नहीं जानते हैं, कि ये लोग कैसे कार्य करते हैं। उन्हें लगता है कि शहरी नक्सलवाद असंतोष के लिए एक तरह का आंदोलन है। नहीं ऐसा नहीं है। यह धीरे-धीरे पुलिस, सेना, नौकरशाही, प्रशासन, कानूनी व्यवस्था और शिक्षा में घुसपैठ करता है।
माओवादी रणनीति बताती है कि ये कबीर कला मंच जैसे शहरी इलाकों में एक फ्रंट संगठन (एफओ) बनाते हैं, जो एक सांस्कृतिक संगठन प्रतीक हो सकता है। लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य भर्ती, ट्रेनिंग और हमला करना है। आवश्यक है हम इन्हें समझे और इनके जाल में ना फँसे।