फरवरी 1997 का गुलजा नरसंहार: जब कम्युनिस्टों ने सैकड़ों मुस्लिमों को मौत के घाट उतार दिया

चीनी कम्युनिस्टों ने वर्ष 1997 के फरवरी माह में सैकड़ों मुस्लिमों का नरसंहार किया था, जिसे गुलजा नरसंहार कहा जाता है। हालांकि मीडिया हो या सोशल मीडिया, इस घटना को लेकर कभी कोई चर्चा नहीं होती और ना ही इस विषय पर कभी बात की जाती है।

The Narrative World    12-Feb-2023   
Total Views |

Representative Image
दुनिया में दो ऐसे विचार हैं जिनके विस्तार का इतिहास रक्तरंजित रहा है और जिनके अनुयायियों ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में नरसंहार किए हैं।


पहला विचार है इस्लाम का, जिसके प्रसार के लिए दुनिया के आधे से अधिक हिस्से में रक्तपात किया गया और तलवार की नोक पर लोगों को मुसलमान बनाया गया।


वहीं दूसरा विचार ऐसा है जिसने किसी पंथ या मजहब की स्थापना तो नहीं कि लेकिन एक ऐसी विचारधारा को अपनाया जिसने आधुनिक समय में लगभग 10 करोड़ से अधिक की आबादी को मौत के घाट उतार दिया। यह दूसरा विचार है कम्युनिज़्म का, जिसे हम वामपंथ के नाम से भी जानते हैं।


जिन स्थानों पर इस्लाम का वर्चस्व है वहां कम्युनिस्टों को पनाह नहीं है, वहीं जिन स्थानों पर कम्युनिस्ट शासन है वहां इस्लाम को सांस लेने की भी आजादी बमुश्किल है।


अरब मुल्कों से लेकर पाकिस्तान तक देखने पर कोई कम्युनिस्ट पार्टी या नेता नजर नहीं आते, वहीं क्यूबा से लेकर चीन तक में इस्लाम का नाम लेने वालों के साथ क्या होता है, यह जगजाहिर है।


आज हम बात करने वाले हैं कम्युनिज़्म की माओवादी विचारधारा के भीतर जिस तरह मुस्लिमों का नरसंहार किया गया, उस घटना पर।


एक तरफ जहां भारत में इस्लामिक और कम्युनिस्ट समूह देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, वहीं इस घटना का कोई उल्लेख नहीं करता जब कम्युनिस्ट समूह ने मुस्लिमों का नरसंहार कर दिया था।


दरअसल वर्ष 1989 में चीनी कम्युनिस्ट तानाशाही द्वारा तियानमेन नरसंहार की घटना को अंजाम देने के बाद अगले ही दशक में चीनी कम्युनिस्टों ने एक और नरसंहार किया और इस बार उनका शिकार बने शिनजियांग के उइगर मुस्लिम।


चीनी कम्युनिस्टों ने वर्ष 1997 के फरवरी माह में सैकड़ों मुस्लिमों का नरसंहार किया था, जिसे गुलजा नरसंहार कहा जाता है। हालांकि मीडिया हो या सोशल मीडिया, इस घटना को लेकर कभी कोई चर्चा नहीं होती और ना ही इस विषय पर कभी बात की जाती है।


दरअसल आज भी चीन ने जिस ने जिस शिनजियांग क्षेत्र में कब्जा किया हुआ है, वह तुर्केस्तान का क्षेत्र है। इस शिनजियांग क्षेत्र में 80 के दशक में एक आंदोलन शुरू हुआ जिसे मेशरप कहा गया।


इस मेशरप पद्धति के दौरान उइगर समूह सांस्कृतिक अभ्यास करता था, जिसमें संगीत, नृत्य एवं कविताएं शामिल थीं।


इस मेशरप को लेकर उइगर समूह में खासा उत्साह था और धीरे-धीरे उइगर युवाओं में यह अत्यधिक लोकप्रिय हो गया।


इस दौरान जब 90 का दशक आया तब मेशरप की प्रसिद्धि पूरे शिनजियांग क्षेत्र में बढ़ चुकी थी। लाखों युवा इससे जुड़ चुके थे।


मेशरप की बढ़ती लोकप्रियता और इसके माध्यम से एकजुट होते मुस्लिमों में चीनी कम्युनिस्ट सत्ता को एक 'खतरा' दिखाई देने लगा।


इसके बाद वर्ष 1996 में मेशरप का आयोजन करने वाले एक प्रसिद्ध उइगर मुस्लिम अब्दुहेलिल अब्दुर्रहमान को चीनी कम्युनिस्ट सत्ता ने गिरफ्तार कर लिया।


मेशरप से घबराई कम्युनिस्ट सत्ता के अधिकारियों ने अब्दुहेलिल को पीट-पीट कर मार डाला। इसके बाद चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने मेशरप जाने वाले उइगर मुस्लिमों पर 'स्ट्राइक हार्ड' कैंपेन चलाया, जिसके तहत उन्हें चुन-चुनकर पकड़ा जा रहा था।


इस दौरान शिनजियांग में मौजूद उइगर समूह में मौजूद पूर्वी तुर्किस्तान की स्वाधीनता की आवाज उठाने वाले 30 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया।


इसके बाद चीन ने उइगरों के विरुद्ध एक और दमनकारी नीति अपनाते हुए मेशरप में शामिल हुई महिलाओं को 3 फरवरी को गिरफ्तार कर लिया गया।


वहीं इसके साथ-साथ चीनी कम्युनिस्ट सत्ता ने उइगर मुस्लिमों की संस्कृति, परंपरा और मेशरप आयोजनों को भी खत्म करना शुरू किया।


इस दौरान हजारों उइगर मुस्लिमों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किए और शिनजियांग की आजादी की मांग की।


उइगरों की मांग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की असुरक्षा ने एक ऐसे नरसंहार की स्थिति को पैदा किया, जिसके कारण सैकड़ों उइगर मारे गए।


चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने एक-एक कार प्रदर्शनकारियों को मारना शुरू किया, और इस नरसंहार में सैकड़ों लोग मारे गए।


हालांकि अपनी झूठी कहानियों की भांति चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने इस घटना में केवल 9 लोगों के मारे जाने की बात कही, लेकिन वास्तविक संख्या 200 से भी अधिक थी।


कई चश्मदीदों का कहना था कि इस दौरान 30 से अधिक लोगों की तो सड़क पर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई।


प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल में यातनाएं दी गई, और इन यातनाओं के चलते कई लोगों ने जेल में दम तोड़ दिया।


इस नरसंहार को लेकर उइगर समूह के लोगों का कहना है कि घटना के 26 वर्ष बीतने के बाद भी उनको न्याय नहीं मिला है।


रेडियो फ्री एशिया में छपे एक आलेख के अनुसार उइगर समूह के एक व्यक्ति का कहना है कि अब स्थितियां इतनी बिगड़ चुकी है कि चीनी कम्युनिस्ट सरकार खुलेआम उइगरों का नरसंहार कर रही है, उन्हें शिविरों में बंद कर रही है, उनके साथ अमानवीय व्यवहार कर रही है और उनके धार्मिक स्थलों को तबाह कर रही है।


दअरसल यह एक ऐसी घटना है जिसे भारतीय मुस्लिमों को भी देखना और समझना चाहिए, कि आखिर यह कम्युनिस्ट प्रजाति वास्तव में कैसी है और जब उसकी सत्ता होती है तो कैसे वह नरसंहारों को अंजाम देती है।