इतिहास सीखने के लिए है, लेकिन इतिहास गवाह है कि कोई कुछ सीखता नहीं है

इतनी समृद्धि का कारण आपके पूर्वजों का अथक परिश्रम रहा होगा, बुद्धि चातुर्य रहा होगा, तभी न हाथी डोलता था, और घी की रोटी खाते थे। फिर उन पूर्वजों के वंशजों ने, अगली पीढ़ियों ने परिश्रम करना छोड़ दिया, बुद्धि बेच खाई, तभी न अब हाथी नहीं डोलता और पानी की रोटी खानी पड़ रही है? पर इतिहास पढ़ने वाला इन दोनों ही बातों को नहीं सोचता, वह बस हाथी और घी सोचकर खुश रहता है। "क्यों था", और "फिर क्यों नहीं था" से कोई मतलब ही नहीं उसे।

The Narrative World    12-Feb-2023   
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इतिहास पढ़ना मजेदार है
, शिक्षाप्रद है। पर इतिहास लिखना खतरनाक काम है। क्योंकि जो आपने सच लिख दिया तो लोग चढ़े चले आते हैं।


इतिहास मनन करने की चीज है। पर लोग उसमें जीने लगते हैं। अब आपके घर पर हाथी बंधा करता था और आटे को पानी की जगह घी से गूंथा जाता था, तो इसमें आपके लिए बहुत सारी सीख छुपी है।


इतनी समृद्धि का कारण आपके पूर्वजों का अथक परिश्रम रहा होगा, बुद्धि चातुर्य रहा होगा, तभी न हाथी डोलता था, और घी की रोटी खाते थे। फिर उन पूर्वजों के वंशजों ने, अगली पीढ़ियों ने परिश्रम करना छोड़ दिया, बुद्धि बेच खाई, तभी न अब हाथी नहीं डोलता और पानी की रोटी खानी पड़ रही है? पर इतिहास पढ़ने वाला इन दोनों ही बातों को नहीं सोचता, वह बस हाथी और घी सोचकर खुश रहता है। 'क्यों था', और 'फिर क्यों नहीं था' से कोई मतलब ही नहीं उसे।


इतिहास सीखने के लिए है, पर इतिहास गवाह है कि कोई कुछ सीखता नहीं है।


छत्रपति शिवाजी जब 'छत्रपति' बने, अपना राज्याभिषेक करवाया, तब औरंगजेब मयूरासन, तख्ते ताउस से उतर कर जमीन पर बैठ खुदा को याद करने लगा। राजा तो कई थे देश में, पर छत्रपति, जिसके सिर पर छत्र हो, जो राजा होने का अर्थ समझता हो, जो खुद का राजा होना दुनिया को मनवाने की जिद पकड़ कर बैठा हो, वैसा कोई अब तक न हुआ था। छत्रपति का उद्देश्य क्या था? हिंदवी स्वराज्य! पर उसी छत्रपति के पोते शाहूजी ने पेशवा बाजीराव के हाथ रोक लिए जब वह मुगलों का समूल नाश करने की क्षमता रखते थे। क्यों? क्योंकि शाहू जी ने मुगल सत्ता को बनाये रखने का, उसे संरक्षण देने का कौल करार कर लिया था।


कितने मजाक की बात है। हिंदवी स्वराज का सपना देखा दादा ने। और दादा ने एक विशाल साम्राज्य बनाया भी। फिर उसका पोता उसी क्षत्रपति के सिंहासन पर बैठ मूल वचन, हिंदवी स्वराज, के बिलकुल उलट वचन दे देता है।


शिवाजी ने अष्ट प्रधान बनाए, मतलब आठ मंत्री, जिसमें प्रधानमंत्री अर्थात पेशवा, सेनापति, न्यायाधीश इत्यादि थे। शिवाजी के समय सबका समान महत्व था, फिर प्रधानमंत्री को अष्टप्रधान का प्रमुख बना दिया गया। बाजीराव पेशवा ने उत्तर भारत को रौंद डाला। उनके भाई ने पुर्तगालियों को मार भगाया। बाजीराव ने होलकरों, शिन्दों को मजबूत किया। उनके साथ युद्ध में लड़े, उनके साथ भोजन किया। बाजीराव जाति से ब्राह्मण थे, पर अपने साथियों के साथ बैठकर कभी-कभी मांसाहार कर लेते थे। यह उनका सबसे बड़ा पाप हो गया।


पुणे के ब्राह्मणों ने उनका त्याग कर दिया। जिस धर्म के मंत्र में गंगा, यमुना, नर्मदा का नाम आता हो, जो सदियों से विधर्मियों के कब्जे में रही हों, उन्हें जिस व्यक्ति ने आजाद करा दिया, जिनके किनारे अब पहले की तरह सारे संस्कार बिना किसी डर के किये जाने लगे थे, उसका ही तिरस्कार?


बाजीराव एक मुस्लिम महिला से प्रेम करते थे। घरवालों का, पुणे शहर वालों का मानना था कि यदि मस्तानी हिन्दू होती तो कोई दिक्कत नहीं होती, दोनों की शादी करा देते। पर मुसलमान होने से कारण मस्तानी त्याज्य थी। स्वधर्मियों के, परिवार के ऐसे व्यवहार से वह वीर अंदर से खोखला होता गया और इसी गम में मर गया। सारे ही मराठे छत्रपति शिवाजी को देवता मानते हैं। कुछ ही वर्ष पहले का, शिवाजी का इतिहास ही भुला बैठे, कि शिवाजी ने एक नहीं, कई मौकों पर हिन्दू से मुस्लिम बने लोगों को वापस हिन्दू बनवाया था।


वापस हिन्दू बना एक सेनापति जब यह समस्या लेकर आया कि कोई हिन्दू उसके बेटे से अपनी बेटी नहीं ब्याहना चाहता तो शिवाजी ने अपनी प्यारी, सबसे बड़ी बेटी, पहली संतान का विवाह उसके बेटे से कर दिया था। क्या मस्तानी को हिन्दू नहीं बनाया जा सकता था? शमशेर बहादुर को क्यों मुस्लिम के रूप में पैदा होना पड़ा? कितने ही शमशेर हिंदुओं की ऐसी ही बचकाना जिद के कारण शमशेर बन पैदा होते हैं।


जिस शिवाजी ने छापामार युद्ध की नीति अपनाई, जिस पेशवा बाजीराव ने घोड़ों पर बैठकर रोटियां तोड़ी, दौड़ते घोड़े पर सोने का अभ्यास कर लिया, उन्हीं के वंशजों ने शिवाजी और बाजीराव से शिक्षा नहीं ली, बल्कि मुगलों की तरह होते गए। सदाशिवराव कहते रहे कि पानीपत केवल सेना जाएगी, पर उन्हें असैनिकों को साथ ले जाने के लिए मजबूर किया गया। हार के प्रमुख कारणों में से एक ये असैनिक भी थे।


जब देश में मुगल नाममात्र के रह गए तो देश में कुछ ही शक्तियां बची रह गई थी। मराठे कहने को शक्तिशाली थे, पर कल के सरदार अब राजाओं की तरह हो गए थे। हालांकि पेशवा अभी भी सर्वमान्य नेता थे। होलकरों के यहां एक दासीपुत्र यशवंतराव होलकर जब शक्तिशाली हुआ तो उसे पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपनाया ही नहीं, उसे मान्यता ही नहीं दी।


यशवंतराव पूरी जिंदगी युद्ध लड़ते रहे। एक समय ऐसा भी आया जब देश में यशवंतराव पेशवा से अधिक मान्य हो गए, पर यशवंतराव अब भी स्वामिभक्त बने रहे, भले स्वामी ने उन्हें कभी न स्वीकारा हो। यशवंतराव पूरे देश से अंग्रेजों को सदा-सदा से खदेड़ने के लिए सामर्थ्य जुटा रहे थे, कलकत्ता पर धावा मारना चाहते थे, कि अंग्रेजों को भगाकर पेशवा को यह देश अर्पित कर देंगे, और पेशवा ने क्या किया? खुद को, पेशवाई को अंग्रेजों को बेच दिया, सालाना पेंशन के बदले।


तिस पर भी यशवंतराव कोशिश करते रहे। उन्हें बड़ी उम्मीद थी सिखों से, महाराजा रणजीत सिंह से। महान रणजीत सिंह ने क्या किया? यशवंतराव की छावनी नदी किनारे डेरा डाले रही, पर उन्हें कोई मदद नहीं मिली। वर्षों के अथक परिश्रम और अपने मालिक द्वारा ठुकराए जाने के मानसिक आघात ने उन्हें लील लिया।


मुगलों ने, औरंगजेब ने सिखों को कितना कष्ट पहुँचाया था। अंतिम गुरु गोविंदसिंह जी ने एक हिन्दू संत, बैरागी का हाथ पकड़ कर कहा कि यह वैराग्य का समय नहीं, धर्म को शस्त्र की जरूरत है, यह सन्यास का चोला उतारो और कर्मक्षेत्र में उतरो। वह बैरागी गुरु का बन्दा कहलाया। और जब वह पंजाब पहुंचा तो गुरु के आदेश से सारे सिख सरदार उसके साथ हो लिए। बन्दा बैरागी ने मुगलों की चूलें हिला दी थी।


गुरु गोविंदसिंह जी शिवलोक को प्राप्त हुए, उधर दक्षिण में औरंगजेब भी मर गया। यह बढ़िया मौका था कि मुगलों की आपसी लड़ाई का फायदा उठाकर उन्हें उखाड़ फेंका जाए। पर हुआ क्या? मुगलों ने दिल्ली में रह रही गुरु की पत्नी से सम्पर्क किया और निवेदन किया कि वे बन्दा को रोकें।


गुरुपत्नी ने बन्दा को चिट्ठी लिखी कि लड़ाई-झगड़ा बन्द कीजिए, बादशाह आपको जागीर और पेंशन देगा। बन्दा ने लिख भेजा कि वह गुरु का बन्दा है, गुरु के आदेश से धर्म की रक्षा को निकला है, पीछे नहीं हट सकता। गुरुपत्नी ने इसे अपना अपमान समझा और सिख सरदारों को लिखा कि वे बन्दा का साथ छोड़ दें।


और सिखों ने बन्दा बहादुर का साथ छोड़ दिया। जिस व्यक्ति को गुरु ने अपना सैनिक उत्तराधिकारी बनाया था उसे त्याग दिया गया। बन्दा की शक्ति कम हो गई। उन्हें उनके सात सौ से कुछ अधिक वीरों के साथ पकड़ लिया गया और प्रति दिन सौ के हिसाब से उन वीरों की हत्या की गई। सारी हत्याएं बन्दा के सामने हुई। अंतिम हत्या बन्दा के अबोध बालक की हुई। गुरु अर्जुनदेव, गुरु गोविंद सिंह जी, चार साहबजादों का इतिहास कितनी जल्दी भुला दिया गया था।


श्रीराम ने बाली का वध किया, रावण का वध किया, पर उनके राज्यों से कोई सम्पत्ति अपने लिए नहीं रखी। शिवाजी ने छुपकर युद्ध करना सिखाया, महाराणा प्रताप ने भी छापामार युद्ध का उदाहरण दिया, स्वयं श्रीराम ने बाली का छिप कर वध किया, श्रीकृष्ण ने चालाकी से कालयवन को मुचुकुंद के हाथों मरवा दिया, पर इनसे कितनों ने कोई सीख ली?


पूजते रहे श्रीराम, श्रीकृष्ण को, गर्व करते रहे शिवाजी, प्रताप पर, पर किया उनसे उलट काम ही। श्रीकृष्ण मिथ्या अभिमान को दो कौड़ी की इज्जत न देते हुए अपनी जमीन छोड़ दूर द्वारका चले गए, यहाँ एक राजा ने वचन को प्रकारांतर से पूरा करने के लिए नकली किला बनाया, नकली युद्ध लड़ने के लिए सेना रखी, और सच का युद्ध कर बैठे।


इतिहास बहुत गौरवशाली है। इतिहास बहुत कठोर है। इतिहास सबसे अच्छा गुरु है, यदि आप वास्तव में कुछ सीखना चाहते हैं तो। नहीं तो घर पर हाथी बंधा था, और घी की रोटियां खाते थे, जैसी बातों से खुश तो हुआ ही जा सकता है।