झारखंड में साक्ष्यों के आभाव के कारण न्यायालय ने दो और माओवादियों को किया बरी, माओवादियों को सजा दिलाने में नाकाम साबित हुई है सोरेन सरकार

यह पहला मामला नहीं है जब झारखंड सरकार की पुलिस किसी आरोपी माओवादी को दंड दिलाने में असफल रही है

The Narrative World    17-Feb-2023   
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झारखंड के बुंडू से वर्ष 2012 में गिरफ्तार दो माओवादियों (नक्सलियों/कम्युनिस्ट आतंकियों) को एक स्थानीय न्यायालय ने बरी कर दिया है, दोनों माओवादियों पर पुलिसकर्मियों की हत्या में शामिल रहने का गंभीर आरोप था। जानकारी के अनुसार वर्ष 2012 में गिरफ्तार किए गए माओवादी त्रिभुवन मुंडा उर्फ अजय एवं गणेश मुंडा को न्यायालय ने साक्ष्यों के आभाव में अभियुक्तों के विरुद्ध चल रहे हत्या के प्रयास के प्रकरण में बरी कर दिया है।
 
दोनों ही माओवादियों को झारखंड के बुंडू थाना क्षेत्र से वर्ष 2012 में तत्कालीन एसडीपीओ शंभु प्रसाद की अगुवाई में परासी के जंगलो में चलाए गए एक विशेष अभियान में गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद चली सुनवाई में दोनों ही अभियुक्तों ने न्यायालय के समक्ष पुलिसकर्मियों की हत्या का षड़यंत्र रचने की बात स्वीकारी थी।
 
हालांकि अभियुक्तों द्वारा अपराध स्वीकार किये जाने के बावजूद सुनवाई के दौरान इस प्रकरण में गवाह बनाए गए संबंधित पुलिसकर्मियों ने न्यायालय के समक्ष अभियुक्तों को पहचानने से इंकार कर दिया।
 
जानकारी है कि इस प्रकरण में गवाह रहे तत्कालीन थाना प्रभारी अरविंद सिंह, विवेचना अधिकारी क़ानूराम होनहागा समेत गवाह रहे सभी आठ पुलिसकर्मियों ने अभियुक्तों को पहचानने से मना कर दिया जिसके बाद न्यायालय ने दोनों को इस प्रकरण में बरी करने का निर्णय सुनाया, दोनों ही माओवादीयों को पहले ही जमानत दी जा चुकी थी।
 
ज्ञात हो कि यह पहला मामला नहीं है जब झारखंड सरकार की पुलिस किसी आरोपी माओवादी को दंड दिलाने में असफल रही है और बीते कुछ वर्षो में ऐसे दसियों मामले सामने आए हैं जब साक्ष्यों के आभाव में न्यायालय को गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किए गए माओवादियों को या तो जमानत देनी पड़ी है अथवा कई प्रकरणों में उन्हें बरी करना पड़ा है।
 
इस क्रम में वर्ष 2014 में लोकसभा चुनावों के दौरान मतदानकर्मियों की मिनी बस को उड़ाने के आरोप में बंद कुख्यात प्रवीर दा एवं सहयोगियों को भी बीते वर्ष दिसंबर में साक्ष्यों के आभाव में बरी कर दिया गया था, इस विस्फोट में तीन मतदानकर्मियों समेत 5 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई थी, हालांकि बावजूद इसके झारखंड पुलिस न्यायालय में अभियुक्तों कर विरुद्ध पुख्ता साक्ष्य एवं गवाह जुटाने में असफल रही।
 
यहां तक की इस माओवादी हमले को लेकर पुलिस के बयान एवं आरोपपत्र में हमला करने वाले माओवादियों की संख्या भी कई बार परिवर्तित हुई, बता दें कि इस प्रकरण के संबंध में झारखंड के शिकारपाड़ा थाने में आर्म्स एक्ट सहित कई गंभीर अपराधों में प्राथमिकी दर्ज की गई थी हालांकि बावजूद इसके पुलिस न्यायालय के समक्ष साक्ष्य जुटाने में असफल रही।
 
वहीं इसी क्रम में झारखंड के अति माओवाद प्रभावित कोल्हान क्षेत्र में आतंक का पर्याय रहे कुख्यात माओवादी कुंदन पाहन जिसके विरुद्ध झारखंड के विभिन्न थानों में कुल 120 प्रकरण लंबित है को साक्ष्यों के आभाव में न्यायालय को 15 प्रकरणों में बरी करना पड़ा है।
 
वहीं माओवादियों से संबंधित एक अन्य प्रकरण में अभी बीते महीने ही न्यायालय ने साक्ष्यों के आभाव में जीटी रोड पर हुए माओवादी हमले में आरोपी नागेश्वर महतो एवं नवीन मांझी को संबंधित प्रकरण में बरी कर दिया था, जबकि इसी तरह के एक और प्रकरण में वर्ष 2009 में बिरनी थाना क्षेत्र अंतर्गत हुए माओवादी हमले के आरोपी कुख्यात माओवादी मिथलेश मंडल को भी साक्ष्यों के आभाव में वर्ष 2020 में गिरिडीह स्थानीय न्यायालय ने बरी कर दिया था।
 
यह सभी प्रकरण इस बात की ओर ही संकेत देते हैं कि भले ही केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों में चलाए जा रहे वृहद अभियानों के फलस्वरूप राज्य में माओवादियों का तंत्र पूर्ण रूप से ध्वस्त होने की कगार पर खड़ा है लेकिन जहां तक बात इनको न्यायालय के माध्यम से दंड दिलाने की है तो इस मोर्चे पर तो झारखंड में हेमंत सोरेन एवं कांग्रेस की गठबंधन की सरकार बुरी तरह विफल रही है।