बंजारा कुंभ का हुआ समापन : धर्म-संस्कृति एवं सनातनी जड़ों का दिखा अद्भुत समायोजन

इस विशिष्ट कुंभ में देशभर के कई साधु संतों ने सम्मिलित होकर ना सिर्फ इस कुंभ का मान बढ़ाया बल्कि विधर्मियों के निशाने पर रहने वाले बंजारा समाज को सही दिशा देने का भी काम किया।

The Narrative World    02-Feb-2023   
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सनातन संस्कृति में कुंभ का अत्यधिक महत्व है। कुंभ को संपूर्ण हिन्दु समाज में पवित्रतम धार्मिक एवं आध्यात्मिक उत्सव के रूप में देखा जाता है। कुंभ एक ऐसा पर्व है जिसमें समाज आध्यात्मिक चेतना से अर्जित होता है।


भारत में इस आध्यात्मिक ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक कुंभ आयोजित किए जाते हैं, इसके अलावा सनातन संस्कृति के अन्य अंगों को भी मुख्यधारा में समाहित करने के लिए शबरी कुंभ एवं नर्मदा कुंभ जैसे आयोजन किए जा चुके हैं।


इसी क्रम सनातन समाज के अविभाज्य अंग बंजारा एवं लाबाना-नायकडा समाज की धार्मिक चेतना जागृत करने, उन्हें विधर्मियों से बचाने और साधु-संतों के आशीर्वाद से अभिभूत करने बंजारा कुंभ का आयोजन किया गया।


इस कुंभ का आयोजन श्री गुरुनानक देव जी साहेब संगत एवं श्री बालाजी भगवान महाप्रसाद भंडारा के लिए प्रख्यात महाराष्ट्र के गोदरी में किया गया। यह क्षेत्र प्रदेश के जलगांव जिले के जामनेर तालुका में स्थित है।


इस बहुचर्चित बंजारा कुंभ को लेकर पोहरागढ़ के प्रमुख संत पूज्य बाबूसिंग जी महाराज का कहना है कि यह कुंभ भारतवर्ष को बंजारा समाज का दर्शन कराने का कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि इससे समाज का वैभव बढ़ेगा।


इस विशिष्ट कुंभ में देशभर के कई साधु संतों ने सम्मिलित होकर ना सिर्फ इस कुंभ का मान बढ़ाया बल्कि विधर्मियों के निशाने पर रहने वाले बंजारा समाज को सही दिशा देने का भी काम किया।


क्या हुआ इस बंजारा कुंभ में ?


बंजारा कुंभ वास्तव में आस्था, विश्वास, सौहार्द एवं संस्कृतियों के मिलन का एक महाउत्सव था। 25 जनवरी से लेकर 30 जनवरी तक गोदरी मे हुए इस कुंभ का सफल आयोजन किया गया, जिसके लगभग 10 लाख लोग साक्षी बने।


ज्ञान, चेतना और उसका परस्पर मंथन इस कुंभ मेले में देखने को मिला, यही कारण है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों से हिंदु धर्मावलम्बी इस कुंभ के प्रति आकर्षित होते गए।


जैसा कि उद्देश्य था कि इस विशाल कुंभ मेले के माध्यम से संस्कृतियों को एकसूत्र में बांधा जा सके, ऐसे में इसके समापन तक यह कहा जा सकता है कि इस कुंभ मेले ने अपने उद्देश्य को सार्थक किया है।


25 जनवरी को नये मंदिर में प्रतिमा स्थापना, भजन, नगाड़ा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पारंपरिक तलवारबाजी, व्यासपीठ प्रवचन एवं संत सेवालाल की अमृतलीला के आयोजन के साथ कुंभ का शुभारंभ हुआ।


इसके बाद अगले 5 दिनों तक विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम, संतों के प्रवचन, देवीभागवत, कृष्णलीला, लोकगीतों की प्रस्तुति, शास्त्रीय संगीत एवं संतों का आह्वान का कार्यक्रम चला जिसमें हजारों-लाखों लोग शामिल हुए।


बंजारा कुंभ में साधु-संतों का आह्वान


पोहरागढ़ के महंत श्री जितेंद्र महाराज ने विधर्मियों के षड्यंत्र की ओर इशारा करते हुए कहा कि भारत के कई प्रान्तों में पैसों का लालच व झूठे प्रलोभन दिखाकर ईसाई मिशनरियों द्वारा आक्रमण किया जा रहा है। महाराष्ट्र व तेलंगाना में बड़ी संख्या में धर्मान्तरण हो रहा है।


उन्होंने कहा कि बंजारा समाज की इतनी भव्य संस्कृति होने के बाद भी कुछ लोग लालच देकर मतांतरण कर रहे हैं, यह अच्छी बात नहीं है।


उन्होंने कहा कि बामसेफ जैसे संगठन जानबूझकर समाज में भ्रम पैदा कर रहे हैं, उनसे दूर रहिए।


इसके अलावा उन्होंने आगे कहा कि गोर बंजारा समाज हिन्दु धर्म का अविभाज्य हिस्सा है और हम सब सनातन धर्मी हैं।


पूज्य संत गोपाल चैतन्य महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह कुंभ धर्म का कार्यक्रम है। धर्म जिंदा रहा तो हम जिंदा रहेंगे। राष्ट्र जीवंत रहेगा। धर्म की रक्षा का दायित्व हमारा है। कुंभ के चलते धर्मांतरण का सत्य सामने आया है। समाज को धर्महीन बनाया जा रहा है। लालच देकर धर्मांतरण किया जा रहा है।


उन्होंने कहा कि ईसाई विद्यालयों में छात्रों को तिलक न लगाने, माला न पहनने के संस्कार किए जाते हैं। अपने बच्चों को ऐसे विद्यालयों में ना भेजें। हिंदू संस्कारों वाले विद्यालयों में ही बच्चों कोे भेजें।


उन्होंने कहा कि गुरु में निष्ठा होनी चाहिए। धर्म परिवर्तन न करें। धर्म ही हमारा है प्राण और गुरु का हाथ पक़ड़कर हमें धर्म की रक्षा करनी है।


संत बाबूसिंग महाराज ने कहा कि इस कुंभ में पूरे देश से संत और भक्त आए हैं। संतों ने 4 महीनों तक गांव-गांव जाकर कुंभ के बारे में जागरण किया है। कुंभ को कुछ लोग विरोध कर रहे हैं, लेकिन जब-जब विरोध होता है तब-तब कार्यक्रम सफल होता है।


संत जीतेंद्र महाराज ने कहा कि धर्मांतरण के कारण गोरबंजारा समुदाय की हानि हो रही है। हम हिंदू धर्म का ही हिस्सा है। लोग भ्रांतियां फैलाने का प्रयास करते हैं। पार्वती को हम भवानी मानते हैं और पार्वतीपुत्र गणेश का विरोध करते हैं। गोरमाटी संस्कृति हिंदू संस्कृति का ही हिस्सा है। लव जिहाद देश में दूसरा आतंकवाद है।


पू. संत महामंडलेश्वर अखिलेश्वरानंद महाराज ने कहा कि यह कुंभ हिंदू परंपरा की कार्यशाला है। मुग़ल और अंग्रेजों के साथ कुछ विकृतियां भी देश में आईं। देश का विभाजन अगर धर्म के आधार पर हुआ तो भारत हिंदू राष्ट्र होना चाहिए था। भारतीय संविधान लोकतंत्र की गीता है। हमारे पूर्वजों ने घुटने नहीं टेके बल्कि संघर्ष किया। संतों ने भारत जोडने का काम किया। गोहत्या रोकने के लिए कठोर कानून होने चाहिए।


इस अवसर पर मार्गदर्शन करते हुए पू. संत. गोविंददेवगिरीजी महाराज ने कहा कि संतों ने देश में धर्म को जीवंत रखा। मिशनरियों के चंगुल में मत फंसना। जो लोग हमें हिंदुओं से दूर करने का प्रयास करेंगे उनसे सावधान रहिए। श्रीराम ने वनवासियों को गले लगाया। हम हिंदू रहेंगे और औरों को भी हिंदू रखेंगे।


उन्होंने कहा कि अगले वर्ष वसंत पंचमी के दिन राम मंदिर पूर्ण होगा। मैं अयोध्या का निमंत्रण देने हेतु आया हूं। अयोध्या में प्रभू श्रीराम का मंदिर खुलने से पहले एक करोड़ हनुमान चालीसा अभियान शुरु किया है। राममंदिर राष्ट्रमंदिर है। आगामी चार शतक भारत के रहेंगे।


इस कुंभ के समापन में पहुँचे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जो लोग अवैध मतांतरण के माध्यम से राष्ट्रान्तरण की कुत्सित मंशा के साथ भारत के अंदर कार्य करना चाहते है, उनकी मंशा कभी नही पूरी हो सकती, क्योंकि ये देश और समाज जागृत हो चुका है।


बंजारा कुंभ की आवश्यकता क्यों ?


जैसा कि साधु संतों ने ही इस बात का उल्लेख किया कि बंजारा समाज को निशाना बनाकर विधर्मियों के द्वारा उनका मतांतरण किया जा रहा है, ऐसे में इस कुंभ की प्रासंगिकता और अधिक हो जाती है।


चूंकि बंजारा समाज मुख्यधारा से कटा हुआ था, साथ ही ब्रिटिश ईसाई सत्ता के दौरान उन पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए गए, जिसके कारण आज भी उनकी स्थिति (आर्थिक, सामाजिक) समृद्ध एवं सशक्त नहीं हो पाई है।


ऐसे में ईसाई मिशनरियों के द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, पैसे एवं अन्य वस्तुओं का प्रलोभन देकर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है।


ऐसी परिस्थितियों में आवश्यक है कि साधु महात्मा समेत, समस्त समाज आगे आकर बंजारा समुदाय की समस्याओं का निवारण करे, साथ ही साथ उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास करे।


यह कुंभ इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि विदेशी शक्तियों के माध्यम से ईसाई मिशनरियां और इस्लामिक जिहादी तत्व बंजारा समाज को निशाना बना रहे हैं और उन्हें सनातनी जड़ों से काटने का प्रयास कर रहे हैं।


सेवा, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार एवं प्रलोभन के माध्यम से बंजारा समाज को भ्रम में डालकर उनके अस्तित्व पर ही संकट लाने का प्रयास किया जा रहा है।


क्या है बंजारा जनजाति का इतिहास ?


सनातन संस्कृति का अविभाज्य भाग बंजारा समाज का संबंध सिंधु घाटी सभ्यता से है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से इसके संबंध दिखाई देते हैं। गोर बंजारा संस्कृति की जड़े सिंधु घाटी सभ्यता में इतनी गहरी हैं कि इसकी पुष्टि बंजारा प्राचीन व्यवस्था ग्रंथ के द्वारा भी होती है।


बंजारा व्यवस्था का विकास मुख्य रूप से तांडा (निवास), घाटी (परंपरा धर्म), बाणो (वेशभूषा), बाणी (भाषा) और लोक साहित्य के तत्व पर हुआ है।


गोर वंश विश्व के प्राचीन वंशों में से एक है, जो कालांतर में बंजारा-लबाणा के नाम से प्रसिद्ध हुए। गोर बंजारा जनजाति प्रकृति पूजक तथा मातृदेवी और पितृ पूजक रही है। इससे जुड़े कई अवशेष मोहनजोदड़ो के उत्खनन से सामने आए हैं।

ब्रिटिश ईसाइयों की तानाशाही के दौर में बंजारा समाज ने इनका जमकर विरोध किया था, जिसके बाद ईसाई शासकों ने इनकी आजीविका को ही प्रभावित करने का कार्य किया।


ईसाई शासकों ने बंजारा जनजाति के विरुद्ध कई प्रकार के कड़े प्रतिबंध लगाए, जिसके बाद यह समाज पिछड़ता चला गया।


बावजूद इसके बंजारा जनजाति ने आज भी अपने गोत्र एवं कुल परंपरा को जीवित रखा है। प्रत्येक कुल के देवी-देवता की आराधना स्वतंत्र रूप से की जाती है।


समाज भले ही मुख्यधारा से बाहर हो गया, लेकिन इसने अपनी सनातनी जड़ों को नहीं छोड़ा।