धर्मान्तरण से खत्म हो रही जनजातीय संस्कृति, ईसाई मिशनरियों के कारण बस्तर की परंपराओं पर मंडरा रहा खतरा

जांच समिति का कहना है कि कई ग्रामीण धर्मांतरण के मुद्दे पर बहुत मुखर थे और इस बात पर इतने आक्रोशित थे कि उन्हें जनजाति के रूप में अपनी पहचान रखने की अनुमति नहीं दी जा रही थी।

The Narrative World    24-Feb-2023   
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भोपाल में पंजीकृत सत्यशोधन ट्रस्ट ने नारायणपुर में हुई हिंसा की घटना एवं उसके मूल कारण को समझने के लिए एक जांच समिति बनाई थी।


इस समिति ने 2 दिनों तक नारायणपुर का दौरा कर ग्रामीणों से मुलाकात की और इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में प्रेस वार्ता कर अपने इस दौरे की जानकारी दी।


समिति ने जानकारी देते हुए बताया कि सत्यशोधन ट्रस्ट - रजिस्ट्रेशन नं. 49/09-10, e-2/142, अरोड़ा कॉलोनी भोपाल, .प्र. ने एक संकल्प के माध्यम से नारायणपुर घटना एवं अन्य जनजाति संबंधित मुद्दों पर एक फ़ैक्ट फाइंडिंग समिति नियुक्त की थी।


यह ट्रस्ट एक स्वतंत्रत गैर-सरकारी संगठन है जो मानवाधिकारों और वंचित वर्ग को न्याय दिलाने के लिए समर्पित है।


उक्त ट्रस्ट का नेतृत्व न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) कोकजे जी, राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल कर रहे हैं।


ट्रस्ट के अन्य ट्रस्टी डॉ. अजय नारंग (उद्यमी, भोपाल), डॉ. मुकेश शेष मोध (हृदय रोग विशेषज्ञ, इंदौर), गणेश दत्त पारा (कर सलाहकार, जबलपुर), जे. चंद्रशेखरन (चार्टर्ड एकाउंटेंट), शिरीष परांडेकर (उद्योगपति, भोपाल) और डॉ. राकेश मिश्रा (रेडियोलॉजिस्ट, भोपाल) हैं।


ट्रस्ट के उपरोक्त संकल्प के अनुसार म.प्र. उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राकेश सक्सेना के नेतृत्व में सदस्यों की नियुक्ति की गई।


समिति के अन्य सदस्य श्री मनोज श्रीवास्तव (आईएएस - पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव, मध्य प्रदेश) , डॉ. टी. डी. डोगरा (पूर्व निदेशक एम्स, नई दिल्ली), श्रीमती निर्मल कौर (आईपीएस - पूर्व डीजीपी, झारखंड), श्रीमती किरण सुषमा खोया (एडवोकेट, रांची), बी गोपा कुमार (भारत के पूर्व सहायक सॉलिसिटर जनरल, सदस्य सचिव) हैं।


टीम के सदस्यों ने रायपुर से 21 फरवरी को नारायणपुर की यात्रा शुरू की। ग्रामीणों से सीधा संवाद करने के लिए समिति दोपहर करीब 2:00 बजे भटपाल गांव पहुंची।


जाँच समिति के सदस्य सचिव बी गोपा कुमार ने बताया कि उन्होंने नारायणपुर जाने से पहले ने राज्य के लगभग सभी उच्चाधिकारियों जैसे मुख्य सचिव, डीजीपी, एसपी, कलेक्टर और आईजीपी (रायपुर और बस्तर) को सूचित किया था।


हालांकि प्रशासन ने टीम को गांव में जाने की इजाजत नहीं दी, जहां करीब 9-10 गांवों के करीब 500-600 लोग जमा थे। टीम ने अनुरोध किया और साइट पर जाने का आग्रह किया लेकिन प्रशासन का रुख पूरी तरह से नकारात्मक था।


इसके बाद विभिन्न गांवों के करीब 200-300 लोग मुख्य मार्ग भटपाल के पास जांच समिति से मिलने पहुंचे।


लगभग 20-25 ग्रामीणों ने धर्म परिवर्तन के पीछे की घटना और तथ्यों से संबंधित अपनी दुखद कहानी और जमीनी हकीकत बताई। तथ्यों और आंकड़ों का उनका संस्करण अत्यंत ही चिंताजनक है।


धर्मांतरण के पीछे के कारण के रूप में मजबूरी, प्रलोभन और अन्य लुभावने वादे प्रमुख रूप से दिखाई दिए।

ग्रामीणों ने 31 दिसंबर, 2022 और 1 जनवरी, 2023 की घटना के बारे में बताया कि कैसे धर्मांतरित ईसाई लोगों की भीड़ ने जनजातियों पर हमला किया। इस हमले में कई जनजाति ग्रामीण घायल हो गए।


ग्रामीणों ने बताया कि इस हमले के बाद से इलाके में दहशत का माहौल बढ़ गया है। कुछ ग्रामीणों का यह भी कहना है कि पुलिस या प्रशासन उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं करते हैं।


जांच समिति ने बताया कि यात्रा का अगला पड़ाव बोरावंड गाँव था, और वहाँ भी प्रशासन ने उन्हें गाँव जाने की अनुमति नहीं दी, लेकिन कुछ ग्रामीण मुख्य सड़क पर आ गए और समिति ने लोगों से बातचीत की।


इस स्थान पर भी ग्रामीणों ने समिति को विस्तार से धर्मान्तरण और इससे हो रही सामाजिक वैमनस्यता की जानकारी दी। कुछ मसीह समाज के लोगों ने भी कहानी के अपने नजरिए को समझाया।


जांच समिति ने कहा कि उनको गांवों में जाने से मना करते हुए संबंधित एसडीपीओ और एसएचओ ने यह आश्वासन दिया था कि वे ग्रामीणों को विश्राम गृह में लाएंगे, जहां टीम 21 और 22 फरवरी को रुकी थी. लेकिन पुलिस ने किसी को भी नहीं लाया।


जांच समिति ने बताया कि उन्होंने अगले दिन अर्थात 22 फरवरी की सुबह गोर्रा क्षेत्र का दौरा करने का रुख किया, लेकिन गांव जाने की अनुमति नहीं दी गई. लेकिन करीब 8 गांवों के लोग एड़का स्थित देवगुड़ी में जमा हो गए।


जांच समिति का कहना है कि कई ग्रामीण धर्मांतरण के मुद्दे पर बहुत मुखर थे और इस बात पर इतने आक्रोशित थे कि उन्हें जनजाति के रूप में अपनी पहचान रखने की अनुमति नहीं दी जा रही थी।


उनके अनुसार मूल मुद्दा धर्म परिवर्तन का है और इस तरह के धर्मांतरण के लिए अवैध और अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।


धर्म परिवर्तन अधिनियम के प्रावधानों को भी नहीं माना जा रहा है। अधिनियम के तहत धर्म परिवर्तन के संबंध में जिला कलेक्टर को कोई सूचना नहीं दी जाती है।


इसके बाद कमेटी एड़का के बाजार इलाके में गई, जहां करीब 100 लोग पहुंचे थे। वहां भी लोगों ने यही कहानी सुनाई।


जांच समिति ने बताया कि उसी दिन दोपहर में देवांगन समाज, आदिवासी समाज, साहू समाज, ब्राह्मण समाज, यादव समाज, निषाद समाज जैसे लगभग 13 विभिन्न समुदाय/समाज के लोग समिति से मिलने पहुंचे।


उनमें से अधिकांश के अनुसार, जबरन और अवैध धर्मांतरण तनाव का मुख्य कारण है और प्रशासन को इस मूल मुद्दे का समाधान खोजने की आवश्यकता है।


जांच समिति ने बताया कि समिति से मुलाकात करने वे प्रभावित लोग भी पहुंचे जिनके परिजनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। कमेटी ने उनकी कहानी भी सुनी।


कुछ ग्रामीण जो पहले ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे और बाद में वापस आ गए, उन्होंने भी दोनों मुद्दों के बारे में अपना दृष्टिकोण बताया।


जांच समिति ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि इसके बाद गांव के कुछ ईसाई समुदाय के लोग भी समिति से मिलने पहुंचे। उनके पास बताने के लिए कहानी का एक अलग नजरिया था। समिति ने उनका पक्ष भी दर्ज किया।