कम्युनिस्टों का दोहरा चेहरा: एक तरफ बीबीसी के नाम पर मोदी का विरोध, दूसरी ओर अपनी ही सरकार में पत्रकार को कर रहे प्रताड़ित

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने इससे पहले भी कई बार प्रेस की स्वतंत्रता, पत्रकारों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर हंगामा किया है, लेकिन वो खुद अपने शासित राज्य में पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल रही है। कम्युनिस्ट पार्टी खुद अपने शासन में प्रेस की स्वतंत्रता को खत्म कर रही है।

The Narrative World    25-Feb-2023   
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2024
के आम चुनाव से एक वर्ष पूर्व हाल ही में भारत और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिए ब्रिटिश प्रोपेगेंडा मीडिया समूह बीबीसी ने एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ की थी।


इस डॉक्यूमेंट्री को भारत सरकार ने झूठ, भ्रम एवं तथ्यों से छेड़छाड़ के चलते प्रतिबंधित कर दिया था। लेकिन कांग्रेस से लेकर कम्युनिस्ट दलों ने खुलकर बीबीसी का पक्ष लिया और इस मुद्दे को प्रेस की स्वतंत्रता से जोड़ा।


इस दौरान कम्युनिस्टों के एकमात्र गढ़ केरल में इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर कांग्रेस पार्टी ने बीबीसी की इस विवादित डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रखी।


यह स्क्रीनिंग केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने तिरुवनंतपुरम के शंकुमुघम में रखी थी। इस स्क्रीनिंग में परोक्ष रूप से सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम का भी साथ था।


इसके बाद विभिन्न स्थानों पर कम्युनिस्ट पार्टी ने भी बीबीसी के इस विवादित और भारत विरोधी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की।


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने इससे पहले भी कई बार प्रेस की स्वतंत्रता, पत्रकारों की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर हंगामा किया है, लेकिन वो खुद अपने शासित राज्य में पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल रही है। कम्युनिस्ट पार्टी खुद अपने शासन में प्रेस की स्वतंत्रता को खत्म कर रही है।


दरअसल जो आरोप कम्युनिस्ट पार्टी नरेंद्र मोदी की सरकार पर लगाती है, वो मोदी सरकार तो नहीं लेकिन कम्युनिस्ट सरकार खुद कर रही है।


गुरुवार 23 फरवरी को ही केरल मीडिया एक प्रमुख चेहरे और एशियानेट चैनल के एसोसिएट एडिटर वीनू वी जॉन को केरल पुलिस ने एक मामले में पूछताछ के लिए बुलाया था।


पूछताछ के बाद कम्युनिस्ट सरकार के निर्देश पर पुलिस ने शर्तों की एक लंबी सूची को स्वीकार करने के बाद उन्हें घर जाने दिया है।


केरल के वरिष्ठ पत्रकार वीनू जॉन के खिलाफ कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद ने केस दर्ज कराया था, उसी मामले में पुलिस ने उनसे पूछताछ की है।


पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद इलामरम करीम ने एक टीवी डिबेट शो में वीनू जॉन द्वारा कम्युनिस्ट पार्टी की प्रणाली पर सवाल उठाए जाने को लेकर अपराध दर्ज कराया था।


करीम ने यह केस मार्च 2022 में दर्ज कराया था, जिसके बाद उनसे अभी फरवरी 2023 में पूछताछ की जा रही है।


बीते वर्ष 28 मार्च को रात्रि 8 से 9 बजे के प्राइम टाइम डिबेट शो में वीनू जॉन ने कम्युनिस्ट समूह द्वारा आयोजित बंद में हुई हिंसा और उसके तरीके की आलोचना की थी।


दरअसल कम्युनिस्टों द्वारा बुलाए गए इस बंद के दौरान एक मरीज जो कि ऑटो से अस्पताल जा रहा था, उसे काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इस दौरान उसके ऑटो पर हमला किया गया और उसे प्रताड़ित किया गया।


कम्युनिस्ट पार्टी के गुंडों ने इस दौरान ऑटो रिक्शा चालक की पिटाई की थी। कम्युनिस्ट पार्टी के गुंडों का कहना था कि उनके बुलाए बंद में वह ऑटो चालक किसी को लेकर जाने की हिम्मत कैसे कर सकता है।


इस घटना को लेकर हुए डिबेट शो में एशियानेट के पत्रकार वीनू जॉन ने कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए थे।


उन्होंने नाराजगी दिखाते हुए कहा था कि यदि ऐसी ही हिंसा की घटना यदि इलामरम करीम के साथ होती, तो क्या होता?


पत्रकार ने कहा था कि जिस तरह यासिर (ऑटो चालक) को प्रताड़ित किया गया, उसी तरफ करीम को किया जाता तो क्या होता ? उन्होंने आगे कहा कि ऐसा होता, तभी करीम को उस दर्द का अहसास होता।


कम्युनिस्ट गुंडों के आतंक के विरुद्ध और उस आतंक से पीड़ित लोगों के पक्ष में आवाज उठाने के कारण कम्युनिस्ट नेता करीम ने केरल के इस पत्रकार वीनू जॉन के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवा दी।


इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी के ट्रेड यूनियन सीटू (CITU) की पेरुरकडा क्षेत्र इकाई ने जॉन के विरुद्ध प्रदर्शन शुरू किया और उसे अलग-थलग करने का आह्वान किया।


कम्युनिस्टों की धमकियां केवल यहां तक नहीं रुकी, सत्ता में अपनी सरकार होने का फायदा उठाते हुए कम्युनिस्टों ने जॉन के घर के बाहर पोस्टर भी चिपकाए।


जॉन को कम्युनिस्टों द्वारा प्रताड़ित करने का सिलसिला यहां नहीं थमा। कुछ दिनों बाद कम्युनिस्ट ट्रेड यूनियन के कर्मचारियों ने एशियानेट के दफ्तर तक मार्च निकाला और जॉन के विरुद्ध प्रदर्शन किया।


इन सभी गतिविधियों को केवल इस लिए अंजाम दिया जा रहा था, ताकि राज्य की कम्युनिस्ट सरकार के विरुद्ध अगली बार कोई पत्रकार या मीडिया आवाज ना उठाए।


“एक तरफ सीताराम येचुरी जैसे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता जहां बीबीसी की विवादित और झूठी डॉक्यूमेंट्री पर मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं, साथ ही प्रेस की स्वतंत्रता खत्म होने की बात कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर केरल में उनकी अपनी पार्टी की सत्ता में कम्युनिस्ट गुंडों के आतंक की बात करने पर पत्रकार को कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है, उनके मीडिया दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया जा रहा है, और तो और पुलिस का दुरुपयोग करते हुए उस पत्रकार से घंटों पूछताछ की जा रही है।”


क्या प्रेस की ऐसी स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं कम्युनिस्ट नेता ? क्या कम्युनिस्ट पार्टी जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कर रही है उसमें कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना शामिल नहीं है ?


दरअसल यह पूरी तरह से कम्युनिस्ट दलों का और खासतौर पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का दोहरा रवैया है, जो अब आम जनता को दिखाई दे रहा है।