माओवाद को मिटाने के लिये हमारे पास पर्याप्त बल एवं संसाधन : डीजीपी झारखंड

कोयल शंख जोन समेत माओवादियों के प्रभाव वाले अन्य क्षेत्रों में उनके द्वारा वसूली जा रही करोड़ो की लेवि पर लगाम लगाई जा सकी है।

The Narrative World    28-Feb-2023   
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झारखंड के नवनियुक्त पुलिस महानिदेशक ने राज्य में बीते वर्षो में सुरक्षाबलों द्वारा चलाए गए अभियानों का हवाला देते हुए दावा किया है कि राज्य में माओवाद (नक्सलवाद/ कम्युनिस्ट आतंकवाद) के विरुद्ध संघर्ष अपने अंतिम दौर में जा पहुंचा है और शीघ्र ही राज्य नक्सलवाद के दंश से मुक्त करा लिया जाएगा।
 
रविवार को पीटीआई भाषा को दिए अपने एक साक्षात्कार के दौरान 1989 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अजय सिंह जिन्हें इसी महीने ही झारखंड का नया पुलिस महानिदेशक बनाया गया है ने कहा कि " राज्य में नक्सल समस्या अपने अंतिम चरण है और जो अब भी राह गया है उसे खत्म करने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन हैं।"
 
साक्षात्कार के दौरान बीते वर्ष की उपलब्धियों के विषय में बात करते हुए श्री सिंह ने बताया कि " नक्सलवाद के खतरे के संमूल उन्मूलन की दृष्टि से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कुल 44 नए फारवर्ड ऑपरेटिंग बेसेज की स्थापना की गई है।"
 
वहीं इसी दौरान बीते वर्षों में राज्य में नक्सल रोधी अभियानों पर चर्चा करते हुए झारखंड पुलिस महानिदेशक ने बताया कि " बीते तीन वर्षों में माओवादियों के विरुद्ध चलाए गए अभियानों में रीजनल कमेटी सदस्य, जोनल, सब जोनल कमांडर एवं एरिया कमांडरों सहित कुल 31 कुख्यात माओवादियों को मार गिराया गया है जबकि इसी कालावधि में सेंट्रल कमेटी एवं पोलित ब्यूरो के सदस्यों समेत कुल 1319 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है।
 
कितनी बदली है झारखंड की स्थिति
 
बता दें कि झारखंड में बीते वर्ष से माओवादियों के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियानों में तेजी लाई गई है जिसके सकारात्मक परिणाम अब धरातल पर भी दिखने लगे हैं, इस क्रम में सबसे बड़ी सफलता तो ऑक्टोपस, थंडरस्टॉर्म एवं डबल बुल जैसे सफल अभियानों से मिली है जिसके परिणामस्वरूप छत्तीसगढ़ से सीमा से लगे दशकों माओवादियों जे गढ़ के रूप में पहचाने जाने वाले बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र को माओवादियों से मुक्त कराया जा चुका है।
 
माओवादियों के गढ़ बूढ़ा पहाड़ को सुरक्षाबलों द्वारा अपने कब्जे में लिए जाने से दशकों इस क्षेत्र को बेस बनाकर आतंक फैलाने वाले छोटे से लेकर बड़े माओवादी कमांडरों को या तो अपना बेस बदलना पड़ा है अथवा पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण के लिए बाध्य होना पड़ा है।
 
इस क्रम में केवल बीते कुछ महीनों के दौरान ही अमन गंझू, नवीन यादव समेत कई इनामी माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है जबकि इसी दौरान सुरक्षाबलों द्वारा चलाए गए अभियानों में कई अन्य कमांडरों को गिरफ्तार भी किया गया है।
 
वहीं इन अभियानों के बीच सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी सफलता कुख्यात माओवादी नेता और पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रशांत बोस की गिरफ्तारी से मिली है, पुलिस के सूत्रों की मानें तो यह दो वर्ष पूर्व बोस की गिरफ्तारी के बाद ही संभव हुआ कि कोयल शंख जोन समेत माओवादियों के प्रभाव वाले अन्य क्षेत्रों में उनके द्वारा वसूली जा रही करोड़ो की लेवि पर लगाम लगाई जा सकी है।
 
दरअसल प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) के बिहार-झारखंड रीजनल कमेटी की जिम्मेदारी देख रहे बोस को लेवि की राशि वसूलने एवं उसके माध्यम से संगठन में हथियारों एवं अन्य आवश्यकताओं की आपूर्ति के संयंत्र का मास्टरमाइंड माना जाता है जिसकी गिरफ्तारी ने ना केवल माओवादियों की अवैध आय पर लगाम लगा दी है अपितु बोस की देखरेख में चलाए जा रहे संगठन के विस्तार एवं हथियारों की आपूर्ति भी बुरी तरह प्रभावित हुई है, परिणामस्वरूप झारखंड में माओवादियों का संगठनात्मक ढांचा तेजी से बिखर रहा है।
 
बिखराव की इस स्थिति के पीछे एक कारण उन सामान्य कैडरों के भीतर आई निराशा भी है, जो सुरक्षाबलों द्वारा धुर माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में खोले गए एफओबी एवं वृहद अभियानों के कारण हुए नामी गिरामी कमांडरों के आत्मसमर्पण एवं गिरफ्तारियों से प्रभावित दिखाई देती है, कुल मिलाकर माओवाद के मोर्चे पर झारखंड की वर्तमान स्थिति संतोषप्रद दिखाई देती है, जिससे नए पुलिस महानिदेशक के इन दावों में सच्चाई दिखाई देती है की यदि उपलब्ध संसाधनों एवं केंद्रीय बलों के साथ राज्य सरकार भी अपनी नियत साफ रख कर इस कोढ़ का मुकाबला करें तो बिहार की तर्ज पर झारखंड से भी माओवाद के संमुल उन्मूलन का मार्ग स्पष्ट होता दिखाई पड़ने लगेगा।