पीड़ित जनजातियों को निशाना बनाकर हिंसा करने वाले ईसाइयों का साथ देती कम्युनिस्ट लॉबी

स्वाधीनता के इस अमृतकाल में जहां एक तरफ वर्तमान सरकार जनजातीय अस्मिता की बात कर रही है, जनजातीय हितों को सुरक्षित करने का आह्वान किया जा रहा है, जनजातीय क्रांतिकारियों का स्मरण किया जा रहा है, और तो और भारतीय लोकतंत्र को अविस्मरणीय क्षण देते हुए पहली जनजाति महिला ने भारत की राष्ट्रपति का पद संभाला है, ऐसे समय में भी कम्युनिस्ट समूह जनजातियों के विरुद्ध षड्यंत्र करने से नहीं चूक रहे हैं।

The Narrative World    08-Feb-2023   
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ब्रिटिश ईसाइयों के जाने के बाद जनजाति समाज के विरुद्ध कम्युनिस्ट लॉबी ने एक के बाद एक षड्यंत्र रचे।


जनजाति समाज को मुख्यधारा से काटना हो, समाज को वंचित रखना हो, उन्हें उनकी जड़ों-परंपराओं से विमुख करना हो या मतांतरण कराने वाले ईसाई मिशनरियों का पक्ष लेना हो, इन सभी मामलों में जनजाति समूहों ने कम्युनिस्टों का ऐसा षड्यंत्र झेला है जो कभी अंग्रेज ईसाई करते थे।


हालांकि अब स्वाधीनता के इस अमृतकाल में जहां एक तरफ वर्तमान सरकार जनजातीय अस्मिता की बात कर रही है, जनजातीय हितों को सुरक्षित करने का आह्वान किया जा रहा है, जनजातीय क्रांतिकारियों का स्मरण किया जा रहा है, और तो और भारतीय लोकतंत्र को अविस्मरणीय क्षण देते हुए पहली जनजाति महिला ने भारत की राष्ट्रपति का पद संभाला है, ऐसे समय में भी कम्युनिस्ट समूह जनजातियों के विरुद्ध षड्यंत्र करने से नहीं चूक रहे हैं।


दअरसल हाल ही में छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में नवधर्मान्तरित ईसाइयों ने अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आने वाले मूल जनजाति संस्कृति के अनुपालनकर्ताओं पर प्राणघातक हमले किए थे, इस दौरान कई जनजातीय ग्रामीणों को अपनी जान बचाकर घटनास्थल से भागना पड़ा था।


इस घटना के बाद छत्तीसगढ़ में मौजूद जनजाति समाज के अलावा सर्व समाज के भीतर आक्रोश देखा गया था, और सभी ने एकमत होकर प्रदेश में ईसाई मिशनरियों के द्वारा किए जा रहे अवैध मतांतरण के विरुद्ध आवाज उठाई थी।


इस दौरान बस्तर बंद का सफल आह्वान किया गया, प्रेस वार्ता हुई, राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा गया और पुलिस एवं शासन-प्रशासन पर सवाल खड़े करते हुए पीड़ित जनजाति समाज ने सीबीआई जांच की मांग की।


एक तरफ जहां ईसाइयों के समूह ने पादरी के नेतृत्व में जनजाति ग्रामीणों पर हिंसक हमले किए, वहीं दूसरी ओर कम्युनिस्ट समूह ने इस घटना के बाद ईसाइयों को ही पीड़ित बताना शुरू कर दिया है।


यह तो सर्वविदित है कि ईसाई मिशनरियों और कम्युनिस्ट समूह का एक अदृश्य गठजोड़ है, जो अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है। इसी गठजोड़ की सच्चाई एक बार फिर कम्युनिस्ट समूहों ने अपनी ही करतूत से सामने लाई है।


नारायणपुर मामले को लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) का एक प्रतिनिधिमंडल छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू से मिलने पहुंचा था, जिसमें उन्होंने ईसाइयों को ही पीड़ित बताया है।


इस प्रतिनिधिमण्डल ने उसी बात को दोहराया है, जो हाल ही में सीपीएम की वरिष्ठ नेता बृंदा करात ने नारायणपुर दौरे के बाद कही थी।


सीपीएम के शीर्ष नेतृत्व से लेकर प्रदेश के नेतृत्व तक के नेताओं का कहना है कि नारायणपुर में प्रभावित ईसाइयों को नुकसान का मुआवजा मिलना चाहिए।


बृंदा करात समेत प्रदेश की कम्युनिस्ट लॉबी का कहना है कि ईसाइयों पर हमले हुए, चर्च पर हमले हुए और ईसाइयों के घरों पर हमले हुए।


“लेकिन इन्होंने 1 जनवरी, 2023 की उस घटना का उल्लेख नहीं किया जिसमें एड़का थानाक्षेत्र के अंतर्गत गोर्रा गांव में जनजातीय ग्रामीणों को, महिलाओं को ईसाइयों ने जान से मारने की कोशिश की, उन्हें लगभग अधमरा होते तक पीटा गया। आखिर इस विषय पर कम्युनिस्ट समूह कब बात करेगा ?”


कम्युनिस्ट समूह ने आरोप लगाया कि जनजातियों के कारण ईसाइयों को घर छोड़कर निकलना पड़ा है, और वो भटक रहे हैं।

क्या इस लॉबी ने कभी इस बारे में बात की कि आखिर जनजातियों के क्षेत्र में ईसाइयों की जनसंख्या इतनी कैसे बढ़ गई?


जनजाति क्षेत्र में माओवादी हिंसा के कारण जब जनजाति ग्रामीण जंगलों में भागने को मजबूर होते हैं, तब इनकी संवेदनाएं कहाँ जाती है?


क्या कम्युनिस्ट लॉबी की सारी संवेदनाएं केवल ईसाइयों के लिए है ?


जनजातियों के विरुद्ध कम्युनिस्ट लॉबी का यह पहला प्रपंच नहीं है, इससे पहले हाल ही में बृंदा करात के नेतृत्व में जनजातियों पर आरोप लगाए गए।


पीड़ित जनजातियों की पीड़ा को दरकिनार कर हिंसा करने वाले ईसाइयों का पक्ष लिया जा रहा है।


इन सब के अलावा दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह में भी एक ईसाई और कम्युनिस्ट समूह ने संयुक्त रूप से फ़ैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट बनाई थी, जिसमें भी जनजातियों को निशाना बनाकर उन्हें दोषी बनाया गया था, जिसके बाद ईसाइयों को पीड़ित बताकर सुर्खियां बटोरी गई।


राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया के माध्यम से बस्तर की जनजातियों को बदनाम करने का प्रयास कम्युनिस्ट लॉबी ने किया है, जिसमें उसका साथ चर्च के वैश्विक इकोसिस्टम ने दिया है।


अब आवश्यकता है जनजाति समाज के साथ-साथ सर्वसमाज भी षड्यंत्र को समझे और इन कम्युनिस्ट समूहों का एवं इन्हें मंच देने वालों और इनका साथ देने वालों का पुरजोर विरोध करें।