दशकों तक कश्मीर में आतंकवाद को पोषित करने वाला पाकिस्तान के सामने वर्तमान में आंतरिक सुरक्षा एवं अर्थव्यवस्था का गहरा संकट उत्पन्न हो गया है, परिस्थिति ऐसी है कि जहां एक ओर अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाने की जुगत में सरकार लोगों की भुखमरी की चुनौतियों के बावजूद नए टैक्स रेट लगाने के लिए बाध्य है तो वहीं दूसरी ओर समानांतर रूप से सरकार के लिए तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे संगठन से आंतरिक सुरक्षा का गंभीर खतरा उत्पन्न हो चला है।
इस क्रम में बीते दिनों आटे की बोरियों के लिए लगनी वाली लंबी- लंबी कतारों से जूझते पाकिस्तान में पेशावर में हुए आत्मघाती हमले ने अर्थव्यवस्था के साथ साथ देश की आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं जबकि पाकिस्तान में सत्ता की डोर संभालने वाली 'डी-फैक्टो' रूलिंग एलीट यानी 'पाकिस्तानी सेना' शाहबाज शरीफ सरकार के पीछे सिर छुपाती दिखाई पड़ रही है।
हालांकि पाकिस्तान के लिए अर्थव्यवस्था से लेकर आंतरिक सुरक्षा का यह दोहरा संकट कोई यकायक खड़ा नहीं हुआ अपितु इसके पीछे उसकी दशकों से चलाई जा रही अच्छे एवं बुरे आतंकवाद की वही नीति है जिसके आधार पर पाकिस्तानी सेना जनता को गजवा-ए-हिन्द का चूर्ण फंकाकर उन्हें बदहाली की ओर ढ़केलते आई है।
दरअसल वर्ष 1947 में भारत से पृथक होकर अस्तित्व में आए कथित रूप से लोकतांत्रिक पाकिस्तान पर दशकों सेना के तानाशाहों ने ही शासन किया है जिन्होंने अपनी नीतियों को देश की जनता की आर्थिक समृद्धि के प्रति समर्पित रखने के बजाए भारत विशेषकर कश्मीर को केंद्र बिंदु मानकर ही आगे बढ़ाया है, इस क्रम में दशकों पाकिस्तान की सत्ता के मैजिकल चेयर पर बैठने वाले जनरलों ने आर्थिक विकास एवं उन्नति से इतर अपना सारा ध्यान भारत में अस्थिरता उत्पन्न करने एवं उसके आधार पर ज्यादा से ज्यादा भूमि कब्जाने की अपनी लोलुपता के दायरे में ही समेटे रखा।
पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के विभाजन के पूर्व तक तो यह प्रयास फिर भी सेना के प्रत्यक्ष सैन्य अभियानों तक सिमित रहे लेकिन एक के बाद एक सभी संघर्षों में मुँह की खाने के बाद पाकिस्तानी डीप स्टेट ने अपनी नीति में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए भारत मे आतंकवाद को पोषित करने की औपचारिक नीति अपना ली, इस क्रम में 80 के दशक में 'ब्लीड इंडिया विथ थाउजेंड कट्स' की सनक के साथ खालिस्तानी आतंकियों को दिए जाने वाला पोषण 90 के दशक में कश्मीर में आतंक को पोषित करने तक जारी रहा।
यही वो काल था जब पाकिस्तानी डीप स्टेट यानी कि पाकिस्तानी सेना ने अपनी भूमि पर ना केवल जेहाद के लिए आतंकी समुहों को गठन किया अपितु रूस के साथ अफ़ग़ान लड़ाकों के संघर्ष में अमेरिका से मिल रही अरबों डॉलर की फंडिंग को सेना ने इन आतंकियों को आधुनिक हथियारों से लैस करने एवं अपनी खुफिया इकाई आईएसआई के माध्यम से भारत मे आतंक के स्लीपर्स सेल खड़े करने में पानी की तरह बहाया।
यह उन समुहों एवं आईएसआई द्वारा खड़े किए गए स्लीपर्स सेल के द्वारा फैलाया गया आतंक ही था की 90 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार, 93 मुंबई बम धमाके, अहमदाबाद बम धमाके, कोयंबटूर बम धमाके, पार्लियामेंट अटैक, 26/11 मुंबई हमले से लेकर उरी एवं पुलवामा तक भारत ने दर्जनों भयावह हमलों को झेला, हालांकि दशकों विदेशी वित्तीय सहायता से भारत मे आतंक को पोषित करने वाले इस 'रॉग स्टेट' के सामने अब अपना अस्तित्व बचाने का संकट मुँह बाये खड़ा दिखाई दे रहा है।
दरअसल लगभग बीते एक दशक में अमेरिका एवं अफ़ग़ान तालिबान संघर्ष में पाकिस्तानी सेना के दोहरे चरित्र की कलई खुलने, भारत-अमेरिका संबंधो में आए जबरदस्त सकारात्मक परिवर्तन, अमेरिका एवं पश्चिमी देशों से इतर पाकिस्तान का चीन के समीप जाने एवं भारत में पाकिस्तान को उसी की भाषा मे प्रतिउत्तर देने वाली सरकार के सत्ता में आने समेत भू राजनीतिक स्तर पर तेजी से परिवर्तित होती परिस्थितियों ने पाकिस्तान के विद्वेषित उद्देश्यों को तगड़ा झटका दिया है और वैश्विक स्तर पर बीते एक दशक में ना केवल उसकी दुष्प्रचारित थोथली साख को बट्टा लगा है अपितु कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत ने उसे चारो खाने चित कर दिया है।
भारत की सफल कूटनीति एवं वैश्विक परिदृश्य में तेजी से बदली इन परिस्थितियों से सबसे गहरा आघात तो पाकिस्तान को खैरात में मिलने वाली उस आर्थिक सहायता को लगा है जिसके बलबूते उसने दशकों तक आतंकी समुहों को पोषित किया था रही सही कसर पाकिस्तानी सेना में वृहद स्तर और वयाप्त भ्रष्टाचार ने पूरी कर दी जिसने विपरीत परिस्थितियों में उसके कथित ऑल वेदर फ्रेंड चीन से भारी ब्याज दरों पर मिली कर्ज रूपी आर्थिक सहायता को भी देश की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन नहीं लाने दिया परिणामस्वरूप बीते वर्षों में इमरान खान से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ तक कर्ज इक्कठा करने के अथक प्रयासों के बावजूद आज पाकिस्तान कंगाली के कगार ओर खड़ा है।
स्थिति ऐसी है कि वर्तमान में स्वयं को डिफॉल्ट होने से बचाने के लिए पाकिस्तान आईएमएफ से मिन्नतें कर रहा जिसने लोन स्वीकृत करने के लिए सेना के अधिकारियों के बही खातों समेत शर्तों की लंबी सूची सामने रखी है, जिसमें जीएसटी को बढ़ाए जाने समेत 900 अरब के राजस्व घाटे संबंधित समस्याएं आएमएफ द्वारा प्रस्तावित ऋण की राह में बाधा की तरह खड़ी दिखाई दे रही है।
कंगाली के कगार पर खड़े पाकिस्तान के लिए इस वृहद आर्थिक संकट के बीच दूसरी गंभीर समस्या उसी कट्टरपंथी आतंकवाद ने खड़ी कर दी है जिसे सुविधानुसार कभी अच्छा तो कभी बुरा बताक़र अब तक पाकिस्तान पालते पोषते आया है, स्थिति इतनी गंभीर है कि अफगानिस्तान से लगती सीमा पर पाकिस्तानी रेंजरों से लेकर पेशावर एवं लौहार तक टीटीपी पाकिस्तानी नागरिकों को खुलकर निशाना बना रहा है, आश्चर्यजनक रूप से पाकिस्तान दबी जुबान टीटीपी द्वारा किये जा रहे ईन हमलों के लिए अब उसी तालिबान को जिम्मेदार ठहरा रहा है जिसके भरोसे बीते वर्षों में वह कश्मीर हथियाने का दंभ भरता रहा है।
“हालांकि पाकिस्तान के लिए समस्याएं केवल टीटीपी, अर्थव्यवस्था अथवा उसकी वैश्विक क्रेडिबिलिटी तक ही सीमित नहीं है अपितु बलूचिस्तान से लेकर सिंध, पीओके एवं खैबर पख्तूनख्वा तक इस रॉग स्टेट की फॉल्टलाइन्स अब प्रत्यक्ष होने लगी हैं, इस क्रम में सबसे बड़ी समस्या तो बलूचिस्तान से निरंतर सशक्त हो रहे सशस्त्र संघर्ष से खड़ी होते दिखाई दे रही है, दरअसल दशकों बलोचिस्तानियों पर बर्बरता करने वाली पाकिस्तानी सेना को अब बलोच नेशनल आर्मी समय समय पर बड़ा नुकसान पहुंचा रही है, पाकिस्तानी सेना की बलूची लड़ाकों से लड़ने में असमर्थता ऐसी कि बीते दिनों बलूचियों से आतंकित होकर पाकिस्तान में रह रहे चीनी नागरिकों की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त करते हुए चीन ने पाकिस्तान में अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए चीनी सैनिकों को भेजने की बात की थी।”
कुल मिलाकर भ्रामक प्रचार एवं मजहबी उन्माद के जिस तानेबाने को बुनकर सात दशकों पूर्व जो कथित पाक जमीं अस्तित्व में आई थी वो वर्तमान में अपनी भगौलिक फॉल्टलाइन्स एवं दशकों तक कट्टरपंथी मानसिकता को बढ़ावा देने की अपनी नीति के परिणामस्वरूप जनित परिस्थितियों में बुरी तरह जकड़ा दिखाई देता है,
विडंबना तो यह है कि जेहाद एवं उन्माद के संयंत्र खड़े करने की अपनी लालसा में हाशिये पर जा चुकी अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में बांधने वाले जिस एक सांस्कृतिक धागे की अत्यधिक आवश्यकता है, वो उनके पास कभी था ही नहीं और जिन आक्रांताओं, लुटेरों को अपना नायक मानकर उन्होंने अपने देश की लकीरें निर्धारित की थी उन्ही आक्रांताओं से प्रेरित आतंकी उन पर बम बनकर फट रहा है, यह स्थिति दयनीय है, लेकिन अपनी लूटी पिटी अर्थव्यवस्था एवं सांस्कृतिक अस्तित्व ढूंढने के क्रम में दोराहे पर खड़े पाकिस्तान के लिए तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि
बोए पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए