भ्रष्टाचार पर विपक्ष के वेंडेटा पॉलिटिक्स के दावों की क्या है वास्तविकता ?

इसे ऐसे समझें कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में ईडी द्वारा भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में लगभग 1 लाख करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है

The Narrative World    15-Mar-2023   
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बीते कुछ समय से देश में राजनीतिक रूप से बिखरा विपक्ष एक मुद्दे पर खूब गलबहियां करता दिखाई दे रहा है, दुर्भाग्य से यह मुद्दा कोई राष्ट्रीय हित के विमर्श के इतर विशुद्ध रूप से विपक्ष के नेताओं के विरुद्ध भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) एवं केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की कार्यवाई से जुड़ा है जिसपर दक्षिण से लेकर उत्तर तक देश में वैकल्पिक राजनीति देने का दंभ भरने वाले तमाम राजनीतिक दलों के साथ ही कांग्रेस भी लामबंद होते दिखाई दे रही है।
 
इस क्रम में आबकारी (शराब) घोटाले में घिरी अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (आप) एवं के चंद्रशेखर राव (केसीआर) की भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस), ममता बनर्जी की अगुवाई वाली ततृणमूल कांग्रेस, रेलवे जमीन घोटाले एवं चारे घोटाले में आरोप झेल रही राष्ट्रीय जनता दल (राजद), देश के विभिन्न राज्यों में अपनी सत्ता के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी कांग्रेस समेत कश्मीर में आतंकवाद एवं पाकिस्तान का महिमामंडन करने वाले अब्दुल्ला एवं मुफ़्ती परिवार एक स्वर में राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा लगातार की जा रही छापेमारी एवं कार्यवाई का विरोध करते हुए इसे वेंडेटा (बदले की कार्यवाई) बताते नहीं थक रहे।
 
आश्चर्यजनक तो यह है कि देश भर में ताबड़तोड़ हो रही इस छापेमारी ने उन राजनीतिक दलों को भी एक पंक्ति में ला खड़ा किया है जो अथक प्रयासों के बावजूद आगामी लोकसभा चुनावों में एक दूसरे के साथ चुनाव लड़ने पर आम सहमति नहीं बना पा रहे, मोटे तौर पर विपक्ष अपनी इस लामबंदी को लोकतंत्र बचाने की कवायद बता रहा है जिसको लेकर विपक्ष कभी विरोध मार्च तो कभी वेंडेटा पॉलिटिक्स की दुहाई देता दिखाई पड़ रहा है।
 
विपक्ष के दावों में कितनी है वास्तविकता ?
 
हालांकि बावजूद इसके की राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा लगातार की जा रही छापेमारी को विपक्ष लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत वेंडेटा पॉलिटिक्स बताने पर आमादा हैं वास्तविकता विपक्ष के दावों के विपरीत ही दिखाई देती है इसे ऐसे समझें कि जब कभी भी इस कथित वेंडेटा पॉलिटिक्स के विरुद्ध विपक्ष ने न्यायालय का रुख किया है तो वहां उसे निराशा ही हाथ लगी है।
 
उदाहरण के तौर पर आम आदमी पार्टी के पूर्व स्वास्थ्य एवं जेल मंत्री सत्येंद्र जैन को जब केंद्रीय ऐजेंसी द्वारा गिरफ्तार किया गया था तब भी केजरीवाल समेत आप पार्टी के तमाम नेताओं ने इसे वेंडेटा पॉलिटिक्स ठहराया था हालांकि बावजूद इसके की जैन ने अपने ऊपर लगे आरोपों को लेकर न्यायालय से राहत देने का अनुरोध किया, उनके ऊपर लगे आरोपों की दृष्टि से न्यायालय द्वारा उन्हें अब तक जमानत नहीं दी गई है।
 

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कमोबेश अब यही स्थिति पार्टी में सेकंड इन कमांड मनीष सिसोदिया की भी दिखाई पड़ रही है जिन्हें आबकारी घोटाले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के उपरांत अब ईडी ने अपनी हिरासत में लिया है, सिसोदिया को लेकर अब जैसे जैसे जांच का दायरा बढ़ रहा तो इस घोटाले के तार तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी के.कविता से भी जुड़ते दिखाई दे रहे हैं, बीते शनिवार को ही इस मामले में ईडी ने उनसे नौ घंटे की मैराथन पूछताछ की, जिसके बाद उन्हें गुरुवार को फिर से पूछताछ के लिए बुलाया गया है।
 
वहीं राजद से जुड़े मामले में सीबीआई एवं ईडी की जांच वर्ष 2004-09 के बीच लालू यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान रेलवे में ग्रुप डी में दी गई नौकरियों से संबंधित है, इस मामले में सीबीआई द्वारा दायर किये गए आरोप-पत्र के अनुसार रेल मंत्री रहने के दौरान कुछेक नौकरियों के लिए बिना किसी नोटिस के नियुक्तियां दी गई थी जिसके बदले में लाभार्थियों ने लालू के परिवार के सदस्यों को पटना में बेहद सस्ती भूमि उपलब्ध कराई थी, अब इस मामले में सीबीआई के आरोप-पत्र के बाद बुधवार को लाल यादव समेत पूर्व मुख्यमंत्री एवं उनकी पत्नी राबड़ी देवी एवं उनकी बेटी मीसा भारती की भी पेशी हुई है।
 
तृणमूल कांग्रेस की बात करें तो यहां जांच का दायरा शारदा चिट फंड एवं शिक्षा घोटाले से संबंधित है जिसको लेकर अब तक पार्टी के कद्दावर नेता एवं पूर्व शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी, उनकी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी, पार्टी के पूर्व मंत्री एवं विधायक माणिक भट्टाचार्या, कुंताल घोष एवं युवा इकाई के नेता शांतनु बनर्जी को गिरफ्तार किया जा चुका है, यहां केवल शिक्षा से जुड़े घोटाले में ही अब तक ईडी की ओर से लगभग 111 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की जा चुकी है, जबकि शारदा चिट फंड घोटाले में तृणमूल के अतिरिक्त कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम की पत्नी समेत कइयों की संपत्ति जब्त की गई है, इस घोटाले में ईडी ने अब तक कुल 600 करोड़ से अधिक की संपत्ति कुर्क की है।
 
कांग्रेस की बात करें तो नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी की पेशी से लेकर छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सचिव रही सौम्या चौरसिया की गिरफ्तारी से ग्रैंड ओल्ड पार्टी बिफरी हुई है ऐसी ही कार्यवाई महाराष्ट्र में एनसीपी के नवाब मालिक एवं अनिल देशमुख जैसे पूर्व मंत्रियों के ऊपर भी की गई है जिसको लेकर पूरा विपक्ष सरकार के विरुद्ध लामबंद हुआ दिखाई पड़ रहा है, इसमें भी संदेह नहीं कि वर्तमान केंद्र सरकार के कार्यकाल में प्रवर्तन निदेशालय एवं सीबीआई भ्रष्टाचार के मामलों में तेज गति से कार्यवाई कर रही है।
 

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इसे ऐसे समझें कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में ईडी द्वारा भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में लगभग 1 लाख करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है जबकि कांग्रेस में यह आंकड़ा केवल 5000 करोड़ तक सीमित था, यह स्थिति तब है जब वाजपेयी सरकार द्वारा लाये गए धन-शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए एक्ट) को उस कांग्रेस सरकार ने ही स्वीकृति दी थी जिसको उन तमाम दलों का समर्थन था जो अभी इसके विरोध में लामबंद दिखाई दे रहे हैं। तीस पर एक वास्तविकता यह भी है कि वर्तमान में चल रहे ज्यादातर प्रमुख मामलों में प्राथमिकी तब दर्ज की गई थी जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी इसलिए इसे वेंडेटा पॉलिटिक्स बताने की विपक्ष की कवायद में दम नहीं दिखता।
 
एकतरफा है कार्यवाई ?
 
अब ईडी एवं सीबीआई द्वारा ताबड़तोड़ की जा रही इन कार्यवाइयों को लेकर विपक्ष का एक आरोप यह भी है कि यह कार्यवाईयां एकतरफा रूप से की जा रही हैं जिसको लेकर बीते सप्ताह केसीआर, उद्धव ठाकरे, फारूक अब्दुल्ला, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव एवं अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसे एजेंसियों का दुरुपयोग भी बताया है।
 
अपने पत्र में इन नेताओं ने असम के मुख्यमंत्री हिमांता विश्वाशर्मा, सुवेंदु अधिकारी, मुकुल रॉय जैसे नेताओं का हवाला देते हुए दावा किया कि भाजपा का हाथ थामने के बाद इन नेताओं के विरुद्ध ईडी कार्यवाई करने से बच रहा है जिसके जवाब में भाजपा ने इन सभी नेताओं के विरुद्ध जांच की प्रक्रिया जारी होने की बात कही है।
 
इस संदर्भ में विपक्ष के आरोपों पर जवाब देते हुए भाजपा का कहना है कि हमनें भ्रष्टाचार का आरोप लगने के उपरांत किसी भी नेता के विरुद्ध कोई भी जांच बंद नहीं कि है फिर भी यदि विपक्ष को जांच की प्रक्रिया में समस्या है तो वे न्यायिक व्यवस्था का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन भ्रष्टाचार की जांच को लेकर सदन की कार्यवाई बाधित करना कहीं से भी उचित नहीं।
 
अब छापेमारी एवं जांच को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के बीच एक बात जो जनता को सुकून देती दिखाई दे रही है वो यह है कि पक्ष एवं विपक्ष के बीच कि यह खींचतान उन भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर है जिसे अब तक केंद्र की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों में या तो राजनीति का स्वाभाविक हिस्सा मानकर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता था अथवा उसका उपयोग सरकार बचाने या अपने विरुद्ध लगे आरोपों पर विपक्ष की हमलों को धार कम करने के लिए किया जाता था, इन मामलों में नेताओं की संपत्तियां जब्त होने और जेल भेजे जाने की बात तो केवल चुनावी घोषणापत्र की शोभा ही बढ़ाया करती थीं, अब ऐसे में विपक्ष की यह वेदना स्वाभाविक ही जान पड़ती है हां इतना अवश्य है कि देर सवेर जनता की यह अपेक्षा उन पक्ष के नेताओं के विरुद्ध भी होगी जिनके दामन पर भी भ्रष्टाचार के छींटे हैं।