भारत के विरुद्ध चीन का षड्यंत्र

केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से स्थितियों में काफ़ी सुधार आया है, वरना एक समय था जब चीन के सैन्य अधिकारी मोटर साइकिल में सवार होकर आते थे, और ग्रामीणों को धमका कर चले जाते थे, इसलिए ग्रामीण हमारी सीमा के अन्दर जहां तक जाते रहे हैं, यहाँ पर उनका जाना कम हो गया था।

The Narrative World    16-Mar-2023   
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चीन आज भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व मानवता के लिए एक चुनौती बन कर उभर रहा है।


भारत के सन्दर्भ में हमें यह विदित है कि 1962 में आक्रमण करके चीन ने भारत की 38,000 वर्ग किलोमीटर भूमि अधिग्रहीत कर ली थी।


इसके अतिरिक्त जो पाक अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर है उसमें से 5,183 वर्ग किलोमीटर भूमि, पाकिस्तान ने 1963 में चीन को और दे दी थी।


उस भूमि के अन्तरण के परिणामस्वरूप ही पाकिस्तान एवं चीन के बीच काराकोरम हाईवे निकालना संभव हुआ।


विडंबना तो यह है कि भारत का इतना बड़ा भू-भाग उसके कब्जे में होने के उपरान्त भी, समय-समय पर चीन द्वारा ऐसे वक्तव्य दिए जाते हैं जिसमें भारत पर चीन भूमि कब्जा करने का आरोप लगाता है।


इस बात को लेकर वर्ष 2008 में हमारे तत्कालीन विदेश मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता रहे प्रणव मुखर्जी ने भी स्वीकार किया था कि चीन इस बात का दावा करता रहा है कि भारत ने उसकी 90,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर रखा है।


वस्तुतः 1962 में आक्रमण करने के पूर्व भी चीन ने 1959 में यह आरोप लगाया था कि भारत ने चीन की 1 लाख, 4 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर रखा है।


“लेकिन यह जानना आवश्यक है कि तत्कालीन समय में केंद्र सरकार में शामिल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और चीन की पैरवी करने के लिए कुख्यात सीताराम येचुरी ने तो बढ़ चढ़कर यहाँ तक कह दिया कि "हाँ यह तो एक ऐतिहासिक तथ्य है (चीन द्वारा भारत पर भूमि कब्जा करने का आरोप), और जो अपने बिना आबादी वाले निर्जन क्षेत्र हैं उनको चीन को देकर उसके साथ सीमा विवाद हल कर लेना चाहिए।"”


यह भी एक विडम्बना ही है कि कम्युनिस्ट दल का महामंत्री स्तर का व्यक्ति यह कह देता है कि भारत को अपने बिना आबादी वाले क्षेत्र चीन को देकर सीमा विवाद हल कर लेना चाहिये।


यह इस बात की ओर स्पष्ट रूप से संकेत करता है कि भारत में कम्युनिस्ट दल सीधे तौर पर चीन के फ़ायदे के लिए कार्य कर रहे हैं। देख जाए तो यह देश हित की अनदेखी राजनीति का ही परिणाम है।


दो देशों की सीमा पर भी एक बफर जोन होता है जिसमें कोई भी देष अपनी सीमा चौकियाँ स्थापित नहीं करता है। लेकिन भारत-चीन सीमा पर चीन बफर क्षेत्र में धीरे-धीरे अपनी सीमा चौकियों को क्रमशः आगे बढ़ाता चला आ रहा है।


अरूणाचल प्रदेश से लगे हिस्सों में तो चीन ने हैलीपैड भी बना लिया। अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम व लेह-लद्दाख क्षेत्र में भारतीय चरवाहे व किसान तथा अन्य स्थानीय ग्रामीण भारतीय सीमा में, जहाँ तक जाते थे, उनका वहाँ तक जाना भी वह अवरुद्ध कर रहा है।


केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से स्थितियों में काफ़ी सुधार आया है, वरना एक समय था जब चीन के सैन्य अधिकारी मोटर साइकिल में सवार होकर आते थे, और ग्रामीणों को धमका कर चले जाते थे, इसलिए ग्रामीण हमारी सीमा के अन्दर जहां तक जाते रहे हैं, यहाँ पर उनका जाना कम हो गया था।


इन सब के अलावा कांग्रेस के शासनकाल में लेह-लद्दाख क्षेत्र व अरूणाचल में, विभिन्न स्थानों पर जो हमारी सड़कों का काम चल रहा था, वहाँ भी चीन ने दबाव बना कर काम रूकवा दिया था।


हालाँकि अब मोदी सरकार ने इसे प्राथमिकता से लेते हुए सामरिक क्षेत्रों में बुनियादी विकास कार्यों में काफ़ी तेज़ी लाई है जिसके बाद चीन के भीतर भी तिलमिलाहट देखी जा रही है, इसी का परिणाम है कि चीन अब सिमावरती क्षेत्रों में संघर्ष की स्थिति पैदा करने का प्रयास कर रहा है।


इन सब के अलावा चीन ने हमारे अन्य पड़ोसी देशों के साथ सैन्य सम्बन्ध बना कर बाहर से भी भारत की चारों ओर से घेरा बंदी जैसा अभियान चला रखा है।


पाक अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर की भूमि से 5183 वर्ग किलोमीटर भूमि जो पाकिस्तान ने चीन को 1963 में दे दी थी व जहाँ से काराकोरम हाईवे निकला था, उसी हाईवे पर पाकिस्तान ने चीन को तीन लिंक सड़के दी हैं। इससे चीन ने पाकिस्तान में बलूचिस्तान, ग्वाडर बंदरगाह पर अपना नौ सैनिक अड्डा विकसित किया है।


इसके परिणाम स्वरूप अब फारस की खाड़ी, जहाँ से सम्पूर्ण विश्व को तेल की आपूर्ति होती है, और अरब सागर में भी चीन की नौ सेना की उपस्थिति व गतिविधियाँ बढ़ गयीं हैं, जिससे हिन्द महासागर में भी उसकी नी सैनिक गतिविधियों की पहुँच हो गई हैं।


दूसरी ओर पूर्वी तट की ओर दृष्टिपात करें तो म्यांमार (बर्मा, अर्थात् ब्रह्मदेष) में पूरे नदी परिवहन तंत्र को चीनी नौसेना ने अधिगृहित कर रखा है और म्यांमार के कोको द्वीप पर चीन ने अपना राडार स्थापित कर लिया है।


हालाँकि दोनों ही देश इस समझौते को लेकर कभी हामी भरते हुए दिखाई नहीं देते, लेकिन यहाँ से चीन भारत के सम्पूर्ण पूर्वी तट और वहाँ के सैन्य प्रतिष्ठानों पर निगरानी करने की क्षमता रखता है।


इसके साथ ही चीन ने नेपाल में माओवाद के माध्यम से जिस प्रकार अपना वर्चस्व बढ़ाया है उससे लगभग एक प्रकार से वहाँ की सम्पूर्ण राजनीति का सूत्रधार ही चीन उभर कर आ रहा है।


नेपाल में उसने माओवाद पनपाने के लिए जो रणनीति अपनाई थी, लगभग वैसी ही रणनीति भारत में भी वह माओवाद को बढ़ावा देने के लिए अपनाई है।


यानि ग्रामीण क्षेत्र में सामान्य भोले-भाले लोगों को डराना कि वो माओवादी कम्युनिस्ट सेन्टर या माओवादी संगठन जैसे संगठनों में शामिल हो जाएं तो उनका परिवार सुरक्षित रहेगा।


चीन की रणनीति के तहत माओवादी आतंकियों के माध्यम से यह भी कहा जाता था कि ग्रामीण परिवार का कम से कम एक व्यक्ति माओवादी संगठन का सदस्य न बना तो तुम्हारे पूरे परिवार को ख़त्म कर दिया जायेगा।


निरीह व भोले-भाले गांव के वनवासी एवं सामान्य ग्रामीण लोग, जहां सुरक्षा व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है, अपने परिवार का एक व्यक्ति उनकी बैठकों में भेजना शुरू कर देते थे और धीरे-धीरे फिर उस पूरे कुटुम्ब व कबीले के साथ उनका सम्बन्ध बढ़ता जाता है।


इसी प्रकार से चीन ने नेपाल में माओवाद को बढ़ावा दिया था। हालाँकि आज हमारे देश माओवाद का प्रभाव घट रहा है, लेकिन बावजूद इसके कई जिलों में अभी भी इसका प्रभाव है।


मणिपुर में तो माओवादियों व अन्य अलगाववादियों को प्रषिक्षण देने के लिए चीन प्रशिक्षण केन्द्र भी चलाता रहा है। बांग्लादेश में भी भारत के कई अलगाववादी संगठनों के लोगो को वह सशस्त्र प्रषिक्षण दे चुका है।


भूटान में भी चीन अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशि में जुटा हुआ है। पाकिस्तान को तो लगभग चीन ने अपना एक उपनिवेश बना लिया है।


इसके साथ ही वह जहाँ कहीं भी मौका मिलता है भारत के विरुद्ध कूटनीतिक युद्ध छेड़ने का भी कोई अवसर नही गँवाता है।


अंतरराष्ट्रीय मंचों में भारत द्वारा लाए गाए प्रस्तावों का विरोध करना हो या भारत के विरुद्ध किसी कूटनीति का इस्तेमाल करना हो, चीन इन सभी मामलों में शामिल रहा है।