गर्भवती पत्नी से मिलने घर आये जवान की निर्मम हत्या की माओवादियों ने ली जिम्मेदारी, अग्निवीर योजना के विरोध में हुई हत्या

यक्ष प्रश्न तो यह है कि विरोध चाहे जिस योजना का भी हो अपनी गर्भवती पत्नी से मिलने घर लौटा जवान इस सनकी सर्वहारा वर्ग की क्रांति के लिए खतरा कैसे

The Narrative World    02-Mar-2023   
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प्रतिबंधित माओवादी (नक्सली/कम्युनिस्ट आतंकी) संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) ने छत्तीसगढ़ के कांकेर में बैनर लगाकर शनिवार को सेना के जवान की हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए इसे केंद्र सरकार द्वारा लाई गई अग्निवीर योजना के विरोध में की गई हत्या करार दिया है।
 
उक्त नक्सली बैनर को कांकेर जिले के आमाबेड़ा क्षेत्र अंतर्गत फुफगांव से बरामद किया गया है, माओवादियों ने बैनर में कहा है कि जवान मोतीराम आंचल की हत्या सेना में लाई गई अग्निवीर योजना, बस्तर के कॉरपोरेटिकरण एवं सुरक्षाबलों द्वारा माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में चलाए जा रहे अभियानों के कारण की गई है, माओवादी संगठन सेना में लाई गई अग्निवीर योजना का विरोध करता है।" यह बैनर भाकपा माओवादियों की कुमेरी एरिया कमेटी के नाम से जारी किया गया है।
 
वहीं अब इस बैनर के सामने आने के बाद जहां एक ओर इस बात की पुष्टि हो गई है कि अपनी गर्भवती पत्नी से मिलने छुट्टी पर घर लौटे जवान की शनिवार को उसेली बाजार में हुई हत्या कोई गलत पहचान का मामला ना होकर लक्षित कर के की गई हत्या है तो वहीं दूसरी ओर पुलिस इस पूरे मामले की जांच को अब भी प्रारंभिक अवस्था में बता रही है।
 

army jawaan 
 
इस संदर्भ में बात करते हुए बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया कि घटना के संदर्भ में माओवादियों द्वारा बैनर लगाए जाने की सूचना प्राप्त हुई है, अभी हमारी जांच प्रारंभिक अवस्था में हैं, हम इस पूरे मामले की प्रमाणों के आधार पर सघन जांच करेंगे, बैनर मिलने से इस मामले में पुलिस की जांच को सहयोग मिलेगा। वहीं पुलिस इस पूरे मामले को माओवादियों द्वारा स्थानीय युवकों के मन मे सेना में शामिल होने के प्रति भय बिठाने की प्रक्रिया से भी जोड़ कर देख रही है।
 
क्या है अग्निवीर योजना से माओवादियों का कनेक्शन
 
पिछले वर्ष लागू की गई अग्निवीर योजना जिसमें सेना में युवाओं की भागेदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने स्थायी कमिशन के स्थान पर 75% अग्निवीरों को चार वर्ष की सेवा एवं उसके बाद अर्धसैनिक बलों में होने वाली भर्ती में वरीयता देने संबंधी घोषणा की थी का विपक्षी कांग्रेस सहित माओवादीयों ने खूब विरोध किया था, इस योजना में 25% अग्निवीरों को सेना में स्थायी डेपुटेशन दिया जाना है जबकि शेष लोगों को चार वर्ष के भीतर मासिक मानदेय के अतिरिक्त सरकार लगभग 12 लाख रुपए की राशि भी प्रदान करेगी, इसके अतिरिक्त उन्हें अर्द्धसैनिक बलों की बहाली में वरीयता दिए जाने के साथ ही राज्य स्तर पर होने वाली पुलिस की बहाली में भी वरीयता दिये जाने की बात कही गई है।
 
दरअसल इस योजना के माध्यम से सरकार का दीर्घकालिक प्रयास देश के प्रत्येक गांव से युवाओं को सेना से जोड़ने का है ताकि युवाओं में अनुशासन लाने के साथ ही साथ उनमें देश की अखंडता एवं संप्रभुता अक्षुण रखने संबंधित विचारों को भी पोषित किया जा सके जिसका देश की कई राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों द्वारा पुरजोर विरोध किया गया, इस क्रम में इस योजना को लेकर बिहार, छत्तीसगढ़ एवं तेलंगाना में बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन देखने को मिला था।
 
इन विरोध प्रदर्शनों को बिहार में आरजेडी, तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस एवं छत्तीसगढ़ समेत राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था, हालांकि जहां एक ओर कांग्रेस इन हिंसक प्रदर्शनों को युवाओं का स्वाभाविक आक्रोश बता रही थी तो वहीं इन हिंसक प्रदर्शनों के कुछ महीनों बाद इसमें माओवादियों की व्यापक संलिप्तता का खुलासा हुआ था। दरअसल इस संदर्भ में माओवादी संगठन के भीतर आंतरिक वितरण के लिए तैयार किये गए एक डाक्यूमेंट्स के हवाले से सामने आया था कि दिल्ली बॉर्डर पर हुए कथित किसान आंदोलन समेत अग्निवीर योजना के विरुद्ध हुए प्रदर्शनो में नक्सली संगठन की व्यापक संलिप्तता थी।
 
बीजापुर से भी जुड़े थे तार
 
ज्ञात हो कि इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ के बीजापुर से कांग्रेसी विधायक विक्रम उसेंडी पर योजना के विरुद्ध युवाओं को भड़काने के भी गंभीर आरोप लगे थे जिसे लेकर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस पूरे मामले की जांच एनआईए से कराने की मांग की थी।
 
दरअसल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी माने जाने वाले विक्रम उसेंडी पर माओवादियों के साथ करीबी संबंध रखने के गंभीर आरोप भी लगते रहे हैं, इस क्रम में सबसे हैरानी की बात तो यह है कि विधायक उसेंडी पर यह आरोप किसी और ने नहीं अपितु पार्टी में उनके सहयोगी रहे कांग्रेस के एक अन्य नेता ने ही लगाए थे, हालांकि इतने गंभीर आरोपों के बावजूद ना तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और ना ही कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस मुद्दे पर उसेंडी के विरुद्ध कोई ठोस कदम उठाया।
 
भाजपा पदाधिकारियों की हत्याएं
 
वहीं इन सब के बीच अभी बीते एक-डेढ़ महीने में माओवाद प्रभावित इस राज्य में भाजपा नेताओं की एक के बाद एक हुई हत्याओं ने भी माओवादियों को लेकर कांग्रेस की राज्य सरकार पर नरमी बरतने जैसे प्रश्न खड़े किए हैं जिसको लेकर भाजपा राज्य में राजनीतिक षड़यंत्र के तहत अपने नेताओं को माओवादियों द्वारा निशाना बनाये जाने की बात कह रही है।
बता दें कि बीते डेढ़ महीने में नारायणपुर जिले के भाजपा उपाध्यक्ष सागर साहू समेत पार्टी से जुड़े कुल चार नेताओं की माओवादियों द्वारा अलग अलग घटनाओं में हत्या कर दी गई है।
 
सेना के जवान की हत्या
 
अब राज्य में भाजपा पदाधिकारियों की हत्या समेत अर्धसैनिक बलों पर हाल के दिनों में बढ़ रहे हमले एवं अब अपनी तरह की किसी पहली घटना में सेना के जवान की निर्मम हत्या ने माओवाद प्रभावित इस राज्य में कांग्रेस सरकार के लेफ्ट विंग टेररिज्म से सख्ती से निपटने के दावों की कलई खोल कर रख दी है, दरअसल छत्तीसगढ़ में कभी मजबूत स्थिति में रहे माओवादी केंद्रीय सुरक्षाबलों की अगुवाई में चलाए जा रहे अभियानों से बैकफुट पर जाने को बाध्य हुए हैं जिसकी बौखलाहट वे जनप्रतिनिधियों, निर्दोष नागरिकों एवं अब सेना के जवानों की लक्षित हत्याएं कर के जता रहे हैं जिस पर स्थानीय पुलिस के आसूचना तंत्र की नाकामी सवालों के घेरे में है।
 
अब इस प्रकार की लक्षित घटनाओं ने जहां एक ओर सत्तारूढ़ काँग्रेस की माओवादियों के विरुद्ध ढीले-ढाले रवैये एवं पुलिस प्रशासन के इंटेलिजेंस फेलियर को प्रमुखता से सामने लाया है तो वहीं दूसरी ओर कथित तौर पर जनजातियों के हित की बात करने वाले नक्सलियों के स्याह चेहरे को भी उजागर किया है, उनसे यक्ष प्रश्न तो यह है कि विरोध चाहे जिस योजना का भी हो अपनी गर्भवती पत्नी से मिलने घर लौटा जवान इस सनकी सर्वहारा वर्ग की क्रांति के लिए खतरा कैसे हो सकता है ?