छत्तीसगढ़ के सुकमा में माओवादियों की विरोध रैली, प्रधानमंत्री समेत मुख्यमंत्री बघेल के पुतलों से अभद्रता

विशेषज्ञों की मानें तो यह रैली सरकार द्वारा माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में लगातार स्थापित किये जा रहे नवीन कैंपो को लेकर आयोजित की गई है

The Narrative World    21-Mar-2023   
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छत्तीसगढ़ के सुकमा में माओवादियों (कम्युनिस्ट आतंकियों, नक्सलियों) ने एक बड़ी विरोध रैली निकाली है, जानकारी के अनुसार यह रैली शनिवार को सुकमा के दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में ओड़िशा से लगी सीमा के समीप निकाली गई है जिसमें प्रतिबंधित माओवादी संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) के कुछ शिर्ष नेताओं के शामिल होने की खबर है।
 
इस रैली से संबंधित एक वीडियो भी सामने आया है जिसमें माओवादियों की फ्रंटल इकाई चेतना नाट्य मंडली के माओवादी कलाकारों द्वारा रैली का नेतृत्व करते देखा जा सकता है, वहीं उनके पीछे माओवाद समर्थित ग्रामीणों की लंबी कतार देखी जा सकती है जबकि वीडियो में पंक्ति के पास सशस्त्र माओवादियों को भी देखा जा सकता है जो नक्सली वर्दी में पेड़ो पर पोस्टर चस्पा करते देखे जा सकते हैं।
 
जानकारी के अनुसार इस रैली का समापन ओड़िशा सीमा से लगे ऐतराज पहाड़ी क्षेत्र में किया गया है जिसके वीडियो में आश्चर्यजनक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत दो अन्य नेताओं के पुतलों को माओवादियों द्वारा धारदार हथियारों से काटते एवं पीटते हुए देखा जा सकता है, दावा किया जा रहा है कि जिन दो अन्य नेताओं के पुतलों को काटा जा रहा है वो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं स्थानीय विधायक कवासी लखमा के हैं।
 
जानकारी के अनुसार माओवादियों द्वारा दावा किया गया है कि यह विरोध रैली सुरक्षाबलों द्वारा स्थानीय जनजातीय (आदिवासी) समुदाय के विरुद्ध किये गए कथित अत्याचार को लेकर निकाली गई है हालांकि सुरक्षा विशेषज्ञों की मानें तो यह रैली सरकार द्वारा माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में लगातार स्थापित किये जा रहे नवीन कैंपो को लेकर आयोजित की गई है।
 

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क्या है बौखलाहट का कारण
 
दरअसल केंद्र सरकार द्वारा बीते कुछ वर्षों से झारखंड एवं छत्तीसगढ़ समेत देशभर के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों के कैंप स्थापित किये जा रहे हैं, झारखंड में तो सुदूर जंगलो में स्थापित किये जा रहे इन कैंपो के कारण माओवादियों के संगठन को तगड़ा झटका भी लगा है जबकि माओवादियों के गढ़ माने जाने वाले छत्तीसगढ़ में भी माओवादियों को पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा है।
 
इस क्रम में बीते दिनों छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित सुकमा में भी कुछ नवीन सुरक्षा कैंप स्थापित किये गए हैं जिसको लेकर माओवादियों की बौखलाहट अपने चरम पर है, अनुमान लगाया जा रहा है कि माओवादी इन रैलियों के माध्यम से ग्रामीणों को इन कैंपो का विरोध जताने को उकसा रहे। वहीं इस विरोध रैली को सप्ताह के अंत में गृहमंत्री अमित शाह की बस्तर यात्रा से भी जोड़ कर देखा जा रहा है।
 
ज्ञात हो कि गृहमंत्री अमित शाह ने इससे पूर्व झारखंड के चाईबासा एवं छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में हुई रैलियों में आगामी लोकसभा चुनावों से पूर्व देश को माओवदी हिंसा से मुक्त कराने की बात की थी, जिसको लेकर माओवादी संगठन की ओर से प्रेस विज्ञप्तियां भी जारी की गईं थी।
 
केंद्र पर आरोप
 
बता दें कि बीते कुछ वर्षों में माओवादियों के विरुद्ध चलाये जा रहे अभियानों को लेकर माओवादी संगठन केंद्र सरकार पर विज्ञप्तियों के माध्यम से क्षेत्र में अर्धसैनिक बलों की उपस्थिति बढ़ाने एवं ड्रोन हमले करने का आरोप लगाते आया है, इन विज्ञप्तियों में माओवादी संगठन की ओर से सरकार पर क्षेत्र में उद्योगपतियों को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय जनता की हितों की अनदेखी करने का भी आरोप मढ़ा गया है, माओवादियों की ओर से केंद्र सरकार पर जनजातीय क्षेत्रो में हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने का भी आरोप लगाया गया है।
 
यह भी की बीते कुछ महीनों में प्रतिबंधित संगठन द्वारा जनप्रतिनिधियों विशेषकर भाजपा नेताओं को निशाना भी बनाया गया है, इस क्रम में केवल इसी वर्ष अब तक 3 भाजपा नेताओं की हत्या कर दी गई है, जबकि इसी दौरान माओवादियों द्वारा आधा दर्जन नागरिकों को भी पुलिस मुखबिर बताते हुए हत्या कर दी गई है।
 
बता दें कि इन हत्याओं को लेकर राज्य में विपक्षी भाजपा राज्य सरकार पर माओवादियों के विरुद्ध निर्णायक नीति ना अपनाने का आरोप भी लगाती आई है, इस क्रम में बीते महीने भाजपा नेता सागर साहू की हत्या के बाद परिजनों से मिलने छत्तीसगढ़ पहुंचे भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी राज्य सरकार पर नक्सलवाद के मोर्चे पर विफल रहने का आरोप लगाया था।
 
नई उन्मूलन नीति
 
वहीं इस रैली में प्रधानमंत्री के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विरुद्ध भी नारेबाजी की गई है, यह विरोध तब किया गया है जब मुख्यमंत्री द्वारा अभी बीते सप्ताह ही राज्य से माओवाद के उन्मूलन के लिए नई नीति को स्वीकृति दी गई है जिसमें आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को लेकर सरकार की ओर से घोषित इनाम के इतर 10 लाख रुपये की सहायता राशि देने को स्वीकृति दी गई है।
 
अब माओवादियों द्वारा रैली के दौरान मुख्यमंत्री का भी विरोध किये जाने से यह स्पष्ट है कि भले ही अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में मुख्यमंत्री पर माओवाद के मोर्चे पर ढ़ीला- ढ़ाला रवैया अपनाने के आरोप लगे हों, माओवादियों की दृष्टि में लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुनी हुई सरकार उनके हिंसा से सत्ता परिवर्तन के विचारों के विपरीत ही है।