'वारिस पंजाब दे' से लेकर 'पीएफआई' तक, माओवाद से इतर आंतरिक सुरक्षा के खतरे और भी हैं!

दावा किया जा रहा है कि अमृतपाल एकेएफ में उन युवाओं को भर्ती कर रहा था जो ड्रग्स के आदि हो चुके हैं, उन युवाओं को अमृतपाल एवं कंपनी दिलदार सिंह के तर्ज पर आत्मघाती हमलावर के रूप में तैयार कर रही थी

The Narrative World    23-Mar-2023   
Total Views |


representative images
 
ब भी देश की आंतरिक सुरक्षा का प्रश्न खड़ा होता है तो इसमें संशय नहीं कि माओवाद आधारित हिंसा की चुनौती देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में चिन्हित की जाती रही है, यह वास्तविकता भी है कि स्वतंत्रता के उपरांत माओवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बनकर उभरा है और चार दशकों से अधिक समय से चल रहे इस संघर्ष ने हजारों जानें ली है, हालांकि यह भी वास्तविकता है कि हालिया दिनों में माओवाद से इतर देश में आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से कई और गंभीर चुनौतियां सिर उठाते दिखाई दे रही हैं।
 
इस क्रम में सुरक्षा एजेंसियों ने बीते कुछ महीनों के भीतर देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त दो प्रमुख संगठनों के विरुद्ध वृहद स्तर पर कार्यवाई की है, देश विरोधी कृत्यों में लिप्त इन दोनों संगठनों में से एक "वारिस पंजाब दे" पर तो अब भी कार्यवाई जारी ही है जबकि दूसरे संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी कि पीएफआई को अभी कुछ ही महीनों पूर्व प्रतिबंधित किया गया है और वर्तमान में राष्ट्रीय अन्वेषण ब्यूरो (एनआईए) द्वारा संगठन के गिरफ्तार कैडरों के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल किया गया है।
 
दो पृथक धार्मिक कट्टर विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले इन दोनों संगठनों में एक समानता यह थी कि यह दोनों ही भारतीय गणराज्य के संविधान की मूल भावना के विपरीत देश को विखंडित करने अथवा इसके सवैंधानिक स्वरूप को धार्मिक आधार पर परिवर्तित करने का प्रयास कर रहे थे, जिसके परिणाम निश्चित ही भयावह होते, अब जब की इन दोनों ही संगठनों के विरुद्ध जांच जारी है तो जांच में बाहर आये इनसे संबंधित तथ्य हैरान करने वाले हैं।
 
वारिस पंजाब दे एवं आनंदपुर खालसा फ्रंट
 
इनमें से एक संगठन वारिस पंजाब दे मुख्य रूप से पंजाब राज्य में सक्रिय संगठन है, इस संगठन की स्थापना सितंबर 2021 में पंजाबी अभिनेता दीप सिद्धू द्वारा की गई थी, स्थापना के समय दीप सिद्धू ने संगठन को पंजाब के लोगों के अधिकारों को उठाने वाला संगठन बताया था, सितंबर 2021 में स्थापित हुए इस संगठन की जड़े लगभग एक वर्ष पूर्व दीप द्वारा कथित किसान आंदोलन में सहभागिता दिखाने के साथ ही पड़ गई थी, इस क्रम में दीप ने किसानों को अपना समर्थन देते हुए आंदोलन को कृषि कानूनों से इतर अन्य मुद्दों का भी संघर्ष बताया।
 
दीप ने इस आंदोलन के समर्थन में अपनी ओर से युवाओं के कई मोर्चे निकाले और वह इन प्रदर्शनों के दौरान 26 जनवरी 2021 को दिल्ली के लाल किले पर हुई हिंसा के नेतृत्वकर्ताओं में से था, जिसको लेकर उसे गिरफ्तार भी किया गया था, दरअसल इन प्रदर्शनों के दौरान दीप द्वारा लाल किले पर सिखों के धार्मिक ध्वज (निशान साहिब) फहराने एवं हिंसा भड़काने का आरोप लगा, इस प्रकरण में दीप न्यायालय से जमानत पर बाहर चल रहा था की फरवरी 2022 में एक सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई। दीप के जीवित रहने के दौरान वारिस दे पंजाब को खलिस्तान समर्थक यूट्यूब चैनलों एवं कट्टर विचारधारा रखने वाले युवाओं का समर्थन मिलता आया था।
 
दीप की मृत्यु के बाद सितंबर 2022 में इस संगठन में एंट्री हुई दुबई से भारत पहुंचे अमृतपाल की, विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार दुबई में ड्राइवर के रूप में कार्यरत अमृतपाल पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में था जो सड़क दुर्घटना में मारे गए दीप सिद्धू से सोशल मीडिया के माध्यम से संपर्क में था, भारत पहुंच कर अमृतपाल ने अपने आप को 'वारिस पंजाब दे' संगठन का मुखिया घोषित कर दिया, इस दौरान अमृतपाल पंजाब के मोगा जिले में खालिस्तान समर्थक आतंकी भिंडरावाले के गांव पहुंचा और उसने वहां अपनी 'दस्तार बंदी' करवाई जिसके बाद वो युवाओं को खलिस्तानी विचारों के नाम पर भड़काने के काम पर लग गया।
 
अब तक मिली जानकारी के अनुसार भारत पहुँचने से पहले आईएसआई ने अमृतपाल को जॉर्जिया में ट्रेनिंग दी थी और भारत पहुँचने के बाद से लेकर अब तक पाकिस्तानी एजेंसी उसे विभिन्न स्त्रोतों से धन मुहैया करा रही थी, कयास लगाये जा रहे हैं कि यह आईएसआई की सहायता से ही हुआ कि लगभग 6 महीने पूर्व भारत पहुंचा अमृतपाल इतने कम समय में ही 'वारिस पंजाब दे' का मुखिया बनने से लेकर अपनी निजी फौज आनंदपुर खालसा फ्रंट (एकेएफ) खड़ी करने में सफल रहा, दावा किया जा रहा है कि अमृतपाल एकेएफ में उन युवाओं को भर्ती कर रहा था जो ड्रग्स के आदि हो चुके हैं, उन युवाओं को अमृतपाल एवं कंपनी दिलदार सिंह के तर्ज पर आत्मघाती हमलावर के रूप में तैयार कर रही थी।
 
वर्तमान में अमृतपाल फरार बताया जा रहा है जबकि उसके संगठन के सैकड़ो समर्थकों को गिरफ्तार किया गया है, अमृतपाल कहाँ है यह अभी किसी को नहीं पता हालांकि इतना अवश्य है कि बीते कुछ महीनों से वह पंजाब में जिस तेजी से खालिस्तान प्रोजेक्ट को बढ़ावा दे रहा था उससे यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि इंदिरा गांधी की भिंडरावाले नीति के तर्ज पर उसे कुछ और समय के लिए छोड़ दिया जाता तो अमृतपाल पंजाब को चार दशक पहले के दौर में निश्चित ही ले गया होता।
 
इसमें भी संदेह नहीं कि अमृतपाल को लेकर वर्तमान स्थिति के लिए पंजाब की आम आदमी पार्टी द्वारा चुनावों के पूर्व एवं उसके बाद खालिस्तानी तत्वों को लेकर अपनाई गई ढ़ीली ढाली रणनीति भी उतनी ही उत्त्तरदाई है जिसने यह भांपने में देर कर दी कि अमृतपाल जैसों का लक्ष्य पाकिस्तानी एजेंसी के इशारे पर भारत को विखंडित कर पंजाब को खालिस्तान के रूप में स्थापित करने का है।
 
पीएफआई विज़न 2047
 
वहीं पीएफआई की बात करें तो एनआईए की जांच में अब तक जो जानकारी सामने आई है उसमें संगठन का लक्ष्य वर्ष 2047 तक भारत के संविधान को परिवर्तित कर शरिया कानून के आधार पर इसे इस्लामिक राष्ट्र घोषित करने का था जिसको लेकर संगठन ने चार चरणों में यह स्थिति लाने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
 
एजेंसी द्वारा जब्त किए गए विज़न डॉक्यूमेंट एवं पकड़े गए पीएफआई कैडरों के बयानों के अनुसार भारत को इस्लामिक देश के रूप में स्थापित करने के लिए पीएफआई ने पहले चरण में देश की कुल मुस्लिम जनसंख्या के 10 प्रतिशत को अपने साथ जोड़ने का लक्ष्य बनाया था, संगठन ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न फ्रंटल समुहों की भी स्थापना की थी।
 
दूसरे चरण में संगठन का लक्ष्य जाति के आधार पर बहुसंख्यक हिन्दू समाज को बांटने का था, तीसरे चरण में आरएसएस, भाजपा एवं अन्य हिंदू संगठनों के विरुद्ध लक्षित हिंसा की बात की गई है जबकि चौथे एवं अंतिम चरण में एसटी, एससी एवं ओबीसी को साथ लेकर राजनैतिक सत्ता प्राप्त कर संविधान बदलने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
 
सूत्रों के अनुसार पीएफआई संगठन पाकिस्तान के साथ किसी भी संघर्ष की स्थिति में दक्षिण भारत पर कब्जा जमाने के लिए कैडरों को हथियारों में प्रशिक्षित करने, हथियार एवं गोला बारूद एकत्रित करने की गतिविधियों में लिप्त था, संगठन ने लक्षित हत्याओं के लिए हिट स्क्वाड भी बनाये थे, जांच के अनुसार कर्नाटक के युवा भाजपा नेता प्रवीण, केरल के संघ शारीरिक प्रमुख समेत कई हत्याओं के पीछे पीएफआई के हिट स्क्वाड की ही भूमिका थी।
 
वर्तमान स्थिति
 
इसमें भी संदेह नहीं कि माओवाद (कम्युनिस्ट आतंक/नक्सलवाद) से लेकर, खालिस्तानी एवं इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनो के विरुद्ध केंद्र सरकार ने गंभीरता से कार्य किया है जिसके परिणामस्वरूप बीते वर्षो में देश भर में इनके द्वारा स्थापित किये गए आतंकी तंत्र बहुत हद तक कमजोर भी पड़ा है हालांकि बावजूद इसके यह भी वास्तविकता है कि सरकार द्वारा की गई यह कार्यवाई केवल उन संगठनों के विरुद्ध ही की गई है जिनके विरुद्ध एजेंसियों के पास प्रयाप्त साक्ष्य मिले हैं पर असल समस्या तो उन विचारों से है जिसे देश के संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक ढांचे पर विश्वास नहीं।
 
वर्तमान स्थिति में यह समझने की आवश्यकता है कि आंतरिक सुरक्षा से लेकर देश के सामने पाकिस्तान एवं चीन जैसी चुनौतियां मुँह बाय खड़ी हैं जिससे निपटने के लिए सुरक्षा को लेकर हमें एक मजबूत नेतृत्व एवं नीति चाहिए, इस क्रम में सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि चाहे सरकार किसी भी दल की हो, आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा को लेकर सरकार एवं विपक्ष के सुर ताल एक दिखाई देने चाहिए तभी हम इस देश के लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक मूल्यों की रक्षा कर पाने में सफल होंगे।