नेहरू की ऐतिहासिक गलतियां और चीनी षड्यंत्र

तिब्बत पर पूर्ण अधिकार करते ही 1955 से चीन ने कुछ ऐसे नक्षे जारी करने शुरू किये, जिनमें भारतीय भू-भाग को चीन का बताना आरम्भ किया और 1959 में तिब्बत पर पूर्ण नियन्त्रण होते ही उन्होंने कह दिया कि हमारे (भारत व चीन के) बीच गम्भीर सीमा विवाद है और चीन की एक लाख चार हजार वर्ग किलोमीटर जमीन आपने (भारत ने) दबा रखी है।

The Narrative World    27-Mar-2023   
Total Views |

Representative Image
प्रधानमंत्री नेहरु के काल में हमारा भ्रम था कि हम अगर पड़ोसी चीन को नई-नई सुविधाएँ देंगे तो उससे हमारे सम्बन्ध अच्छे होंगे। इसलिए 1950 में जब तिब्बतियों ने भारत के साथ रहने और भारत का प्रोटेक्टोरेट बनने की इच्छा व्यक्त की थी, तब उसके विपरीत हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने उनको परामर्श दिया कि नहीं आप चीन के प्रोटेक्टोरेट बनिये।


इसके बाद 1951 में एक सन्धि करवाई जिसमें जवाहरलाल नेहरु ने आश्वासन दिया कि आपकी (तिब्बत की) आंतरिक स्वायत्तता व संस्कृति और आंतरिक स्वशासन कायम रहेगी, आप चीन के साथ सन्धि कर उसकी सम्प्रभुता स्वीकार कर लीजिये, तब जाकर तिब्बतियों के नेतृत्व ने, नेहरू जी के भरोसे वह संन्धि की थी।


इसके पूर्व तिब्बत एक स्वतन्त्र राष्ट्र था। उसके बाद 1955 से चीन ने वहाँ अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ानी शुरू कर दी। वर्ष 1959 में तो चीन ने तिब्बत पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया, और पूज्य दलाईलामा को भारत में शरण लेनी पड़ी थी।


इससे पहले 1951 से 1955 तक चाऊ एन लाई, जवाहरलाल जी को बराबर कहते थे कि चीन व भारत के बीच कोई सीमा विवाद नहीं है। हमारी सीमाएँ बिल्कुल स्पष्ट हैं।


लेकिन, तिब्बत पर पूर्ण अधिकार करते ही 1955 से चीन ने कुछ ऐसे नक़्शे जारी करने शुरू किये, जिनमें भारतीय भू-भाग को चीन का बताना आरम्भ किया और 1959 में तिब्बत पर पूर्ण नियन्त्रण होते ही उन्होंने कह दिया कि हमारे (भारत व चीन के) बीच गम्भीर सीमा विवाद है और चीन की एक लाख चार हजार वर्ग किलोमीटर जमीन आपने (भारत ने) दबा रखी है।


इस प्रकार जब तक तिब्बत को हड़पने के लिये भारत का सहयोग चीन को चाहिये था, तब तक कहा कि हमारे (चीन-भारत के) बीच कोई सीमा विवाद नहीं है। जैसे ही उसने तिब्बत को पूरी तरह से अधिगृहित कर लिया एकदम कह दिया कि भारत ने चीन की एक लाख चार हजार वर्ग किलोमीटर जमीन दबा रखी है।


स्मरण रहे उसके पूर्व, जब चीन संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं था, तब कम्युनिस्ट देशों को छोड़ कर भारत ही एक मात्र देश था, जिसने चीन की सदस्यता के लिये सर्वाधिक प्रबल समर्थन दिया था। इन सारे उपकारों को भुलाकर अन्ततः 1962 में तो भारत पर आक्रमण कर के हमारी 38,000 वर्ग किमी. भूमि चीन ने बलात् अधिग्रहित कर ली।


इस प्रकार चीन से शान्ति खरीदने की भ्रान्तिवश तिब्बत को चीन को सौंपने की जो बहुत बड़ी भूल तब भारत ने की थी, उसके कारण एक ओर तो चीन सीधे हमारा पड़ोसी बन कर आज सीमा पर अनुचित दबाव बना रहा है। (यदि वहाँ स्वतन्त्र तिब्बत होता तो उत्तर से हम पूरी तरह सुरक्षित होते)


दूसरी ओर, आज चीन ब्रह्मपुत्र नदी का पानी मोड़ने की कोशिश कर रहा है। ब्रह्मपुत्र सहित तिब्बत से 10 बड़ी नदियाँ निकलती हैं और जिनसे 11 देशों को जलापूर्ति होती है, चीन उन नदियों के जल को मन चाहे ढंग से मोड़ रहा है।


यदि तिब्बत पर चीन का आधित्य नहीं होता तो यह जल संकट नहीं उपजता। चूंकि, उत्तर पूर्वी चीन सूखा इलाका है, उसका तीन घाटियों वाला बांध सूख रहा है और इसलिए वह बड़ी मात्रा में जल तिब्बत से उधर दे रहा है और उसी क्रम में ब्रह्मपुत्र नदी को भी अवरूद्ध करने के लिए उसने बांध बनाने शुरू कर दिये हैं।


उन बांधो से उसने सुरंगों (टनल) पाईप लाईनों और नहरों का निर्माण शुरू कर दिया है। उपग्रहों के चित्रों, अंतरराष्ट्रीय प्रेक्षकों, अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं व चीनी समाचार पत्रों के अनुसार वहाँ व्यापक स्तर पर निर्माण कार्य चल रहे हैं।


स्मरण रहे कि मेकॉन्ग (माँ गंगा) नाम की नदी भी वहीं तिब्बत से निकलती है जिससे लाओस, कम्बोडिया, वियतनाम और थाइलैण्ड इन चार देशों को जलापूर्ति होती रही है। उसके प्रवाह को चीन ने अवरूद्ध किया है।


वहाँ उन देशों में बड़ी मात्रा में भू भाग सूखे में बदल रहा है क्योंकि चीन ने मेकॉन्ग नदी का पानी रोक दिया है। इसी विवाद के चलते पाँच देशों का मेकान्ग नदी आयोग बना हुआ है, चीन या तो उसकी बैठकों में जाता नहीं है और जाता है तो कहता है कि हमने तो आपका कोई पानी नहीं रोका है, कोई डाईवर्जन नहीं किया है।


चीन इस बात को स्वीकारने को तैयार नहीं है कि उसने इन देशों का जल प्रवाह रोका है, जबकि ये शेष चार देश बहुत परेशान हैं। आज जब अपने देश के 10 करोड़ लोगों का जीवन ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्भर है, हमको इस विवाद को अंतरराष्ट्रीय नदी जल विवाद के रूप में उठाना चाहिये।


ब्रह्मपुत्र का जल अवरुद्ध होने से बांग्लादेश भी प्रभावित होगा। इसलिये हमें उसे भी साथ लेना चाहिये। चीन को इस बात के लिए बाध्य करना चाहिये तथा उसकी प्रतिबद्धता लेनी चाहिये कि वह ब्रह्मपुत्र के जल को मोड़े नहीं (डाईवर्ट नहीं करें)। अन्यथा अरूणाचल प्रदेश और आसाम सूखे में बदल जायेंगे।


ब्रह्मपुत्र नदी में सवा लाख क्यूबिक फीट पानी प्रति सैकण्ड बहता है, ग्लेशियरों का एकदम विषुद्ध जल। बाढ़ के समय तो 10 लाख क्यूबिक फीट पानी उसमें प्रति सेकण्ड बहता है। ब्रह्मपुत्र को मोड़ देने से सारी जल राशि हमको मिलनी बन्द हो जायेगी और स्थिति यह हो जायेगी कि ब्रह्मपुत्र नदी मौसमी नाले में बदल सकती है।