वर्ष 1992 में बिहार के गया जिले में हुए बारा नरसंहार को लेकर गया न्यायालय ने कुख्यात माओवादी (नक्सली/कम्युनिस्ट आतंकी)कमांडर किरानी यादव उर्फ सूर्यदेव यादव को आजीवन कारावास का दंड दिया है, न्यायालय ने इस मामले पर पूर्व माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) कमांडर पर जुर्माना भी लगाया है।
गुरुवार को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से हुई सुनवाई के दौरान जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनोज तिवारी ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी पर सुनवाई करते हुए अभियुक्त किरानी यादव को इस वीभत्स नरसंहार का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास तथा 3 लाख रुपये के जुर्माने का निर्णय दिया।
यह पूरा मामला वर्ष 1992 में हुए बारा नरसंहार से जुड़ा हुआ है जब एमसीसी (अब सीपीआई माओवादी) के सशस्त्र कैडरों ने गया जिले के टिकरी थाना क्षेत्र अंतर्गत बारा गांव को 12-13 फरवरी की रात को चारों ओर से घेर लिया था, बंदूकों, धारदार हथियारों से लैस माओवादियों ने सबसे पहले बमों से ग्रामीणों पर हमला बोला और घरों को आग के हवाले कर दिया गया।
आगजनी के बाद फैली अफरा तफरी के बीच माओवादियों ने चुन-चुन कर गांव के पुरुषों को उनके घरों से बाहर निकाला और उन्हें गांव के पास की नहर के पास ले गए, नहर के समीप ले जाने के बाद माओवादियों ने पहले तो ग्रामीणों को रस्सियों ने बांधा फिर एक एक कर के कुल 35 लोगों को बेरहमी से मार डाला।
ग्रामीणों को जानबूझकर तड़पा तड़पा कर मारा गया था, नृसंशता से की गई इन हत्याओं के पीछे माओवादियों का उद्देश्य पूरे क्षेत्र में भय फैलाकर वर्चस्व स्थापित करने का था, इस वीभत्स नरसंहार में अकेले किरानी यादव ने रस्सियों में बंधे कुल 12 लोगों की गला रेतकर हत्या की थी, किरानी उस समय एमसीसी संगठन में गया का एरिया कमांडर था।
इस नरसंहार को लेकर पुलिस ने कुल 112 लोगों को नामजद किया था जबकि 350 अज्ञात लोगों पर भी मुकदमा दर्ज किया गया था हालांकि 90 के दशक में जाति आधारित राजनीति एवं पुलिस की सुस्त जांच के कारण न्यायालय में केवल 13 लोगों को ही दोषी ठहराया जा सका, इस संदर्भ में सबसे पहले वर्ष 2001 में टाडा कोर्ट ने जिन 13 अभियुक्तों को सजा सुनाई उनमें से 4 को फांसी दी गई थी, जबकि 7 माओवादियों को आजीवन कारावास का दंड दिया गया था, वहीं दो अन्य अभियुक्तों को इस मामले में 10-10 वर्ष कारावास का दंड दिया गया था।
इनमें से चार अभियुक्तों कृष्णा मोची, नन्हे लाल मोची, विरकुंवर पासवान एवं धर्मेंद्र सिंह की फांसी की सजा को राष्ट्रपति द्वारा आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया था, बाद में तीन अन्य अभियुक्तों को भी न्यायालय की ओर से मृत्युदंड दिया गया था, जबकि अब किरानी यादव को आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया था।
न्यायालय ने हुई सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से लोक अभियोजक प्रभात कुमार सिन्हा ने बहस की जो न्यायालय के इस निर्णय पर संतुष्ट दिखाई दिए, निर्णय के उपरांत प्रभात सिन्हा ने कहा कि "हम न्यायालय के इस निर्णय का सम्मान करते हैं और इस पर अपनी संतुष्टि जताते हैं।"
90 के दशक का रक्तपात
ज्ञात हो कि 90 के दशक में अविभाजित बिहार विशेषकर उत्तरी एवं मध्य बिहार में माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर बड़ी शक्ति बनकर उभरी थी जिसने एक के बाद एक कई वीभत्स नरसंहारों को अंजाम देकर हिंसा के मार्ग से अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए जमकर रक्तपात किया था।
उस दौर में राज्य में चल रही जाती आधारित राजनीति ने भी एमसीसी के उभार एवं उनके द्वारा किये गए रक्तपात में अहम भूमिका निभाई थी जिसने मोटे तौर पर बिहार को जातीय हिंसा के चक्र में लंबे समय तक उलझाए रखा, उस काल मे एमसीसी ने सेनारी, दलेलचक भगेड़ा, बारा समेत दर्जनों नरसंहारों को अंजाम दिया जबकि एमसीसी के तर्ज पर ही प्रतिक्रिया स्वरूप गठित की गई रणवीर सेना ने भी ऐसे ही अनेकों नरसंहारों को अंजाम दिया।
एमसीसी बिहार समेत पूरे देश मे अब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) - भाकपा माओवादी के नाम से जानी जाती है, यह नाम उसे वर्ष 2004 में दक्षिण में सक्रिय पीपुल्स वॉर ग्रुप के साथ हुए विलय के बाद मिला, चीनी तानाशाह माओ के हिंसा आधारित सिद्धांतो पर स्थापित की गई यह पार्टी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है जो लगभग दो दशकों के अपने अस्तित्व काल में 20000 से अधिक हत्याओं के लिए सीधे तौर पर उत्त्तरदाई है।