कम्युनिस्ट तानाशाह स्टालिन द्वारा किया गया ऐसा नरसंहार, जिसे बाद में रूस ने भी स्वीकार किया

इस नरसंहार में सिर्फ सैन्य या पुलिस अधिकारी ही नहीं बल्कि कुछ सरकारी कर्मचारी, आम नागरिक, शरणार्थी, विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, चिकित्सक, अधिवक्ता, इंजीनियर और शिक्षकों समेत पत्रकारों एवं लेखकों की भी हत्या की गई थी।

The Narrative World    05-Mar-2023   
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5 मार्च, विश्व के सबसे खूंखार कम्युनिस्ट तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन की मौत आज ही के दिन वर्ष 1953 में हुई थी।


विश्व में जब भी सबसे क्रूर तानाशाहों की बात होगी तो उसमें सोवियत संघ के कम्युनिस्ट तानाशाह जोसेफ स्टालिन का नाम जरूर आएगा।


वर्ष 1922 से लेकर 1953 तक अपने तानाशाही के दौर में स्टालिन ने ढेरों नरसंहार किए और अपनी कम्युनिस्ट सत्ता को बरकार रखने के लिए लाखों-करोड़ों निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया।


जोसेफ स्टालिन सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार का एक ऐसा तानाशाह था जिसकी वामपंथी नीतियों ने करोड़ों लोगों को एक वैचारिक पिंजरे में कैद रखा और साथ ही इस की नीतियों के चलते 2 करोड़ लोग काल के गाल में समा गए।


स्टालिन आधुनिक वैश्विक इतिहास के सबसे क्रूर तानाशाह में से एक था, जो मार्क्सवाद और लेनिनवाद के विचारों का अनुयायी था। स्


टालिन में कम्युनिस्ट विचार को विस्तार देने के लिए तमाम हथकंडे का सहारा लिया। इस दौरान उसने अमेरिका के साथ शीत युद्ध की शुरुआत की और विभिन्न क्षेत्रों हजारों-लाखों बेगुनाह लोगों की हत्या करवाई।


अपने शासनकाल में स्टालिन ने कई स्थानों पर नरसंहार किया। स्टालिन के द्वारा किए गए विभिन्न नरसंहारों में से एक है कैटिन नरसंहार, जिसे स्टालिन ने वर्ष 1940 में अंजाम दिया था।


रूस ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि कैटिन नरसंहार का आदेश स्टालिन ने ही दिया था, जिसमें पौलेंड के तकरीबन 22 हजार से अधिक नागरिकों की जान गई थी।


दरअसल वर्ष 2010 में रूस ने पौलेंड से संबंध सुधारने के लिए स्टालिन द्वारा नरसंहार की बात को स्वीकार किया था।


रूसी संसद के निचले सदन में प्रस्ताव पारित कर कहा गया था कि गुप्त दस्तावेजों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि स्टालिन ने स्वयं इस नरसंहार के आदेश दिए थे।


इस प्रस्ताव के पक्ष में 450 मत पड़े थे, वहीं विरोध में 342 मत मिले। यह रूसी इतिहास में पहला मौका था जब किसी कम्युनिस्ट तानाशाह को नरसंहार का दोषी बताया गया।


वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन और कम्युनिज़्म के पतन के बाद से कैटिन नरसंहार के लिए स्टालिन को दोषी मानने की मांग की जाती रही है, लेकिन रूस इस विषय पर बात करने से बचता रहा है।


इससे पूर्व रूस के पहले राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने भी सोवियत संघ के विघटन के बाद 1940 से जुड़े दस्तावेजों को नकार दिया था।


लेकिन जब 2010 में मामला फिर उठा तब कहा गया कि बीते कई वर्षों से गुप्त पुस्तकालय में रखे गए इन दस्तावेजों की जांच में इस बात की पुष्टि होती है कि कैटिन नरसंहार का आदेश सीधे तौर पर स्टालिन ने ही दिया था।


स्टालिन की ओर से इस नरसंहार को अंजाम देने की जिम्मेदारी उसके विश्वस्त साथी क्लाइमेंट वोरोशिलोव की थी।


दरअसल कैटिन नरसंहार में सोवियत संघ के कम्युनिस्टों ने पोलैंड के लगभग 22000 से अधिक लोगों की हत्या की थी।


इस नरसंहार को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1940 में अप्रैल-मई के महीने में अंजाम दिया गया था।


जब सोवियत ने पोलैंड पर आक्रमण किया था तब उसके द्वारा 8000 अधिकारियों को बंदी बनाया गया था, इन्हें भी इस नरसंहार के दौरान मारा गया।


इसके अलावा अन्य मारे गए लोगों में 6000 पुलिस अधिकारी और 8000 से अधिक पौलेंड के बुद्धिजीवी थे।


वर्ष 1943 में जब जर्मनी की नाज़ी सेना कैटिन जंगल क्षेत्र में बड़ी संख्या में जमीन में दफन किए गए लोगों को खोजा तब स्टालिन ने अपनी चाल को बदलते हुए इस नरसंहार का आरोप नाजी सेना पर लगा दिया।


आपको यह जानकर हैरानी होगी कि, अगले 5 दशकों तक सोवियत संघ इस घटना के लिए हिटलर और उसकी नाजी सेना को जिम्मेदार ठहराता रहा, जबकि वास्तविकता में सोवियत संघ के कम्युनिस्ट नेता स्टालिन के आदेश पर कम्युनिस्ट शक्तियों ने इस नरसंहार को अंजाम दिया था।


इस नरसंहार में सिर्फ सैन्य या पुलिस अधिकारी ही नहीं बल्कि कुछ सरकारी कर्मचारी, आम नागरिक, शरणार्थी, विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, चिकित्सक, अधिवक्ता, इंजीनियर और शिक्षकों समेत पत्रकारों एवं लेखकों की भी हत्या की गई थी।


दस्तावेजों से इस बात का खुलासा हुआ था कि सोवियत संघ के कम्युनिस्ट तानाशाह जोसेफ स्टालिन ने कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो की ओर से भी इस आदेश को मंजूरी दी थी, यह आदेश 5 मार्च, 1940 को दिया गया था।


दरसअल हिटलर और स्टालिन के बीच वर्ष 1939 में एक गुप्त संधि हुई थी जिसके तहत आगामी सैन्य युद्ध में दोनों एक दूसरे पर हमला नहीं करेंगे और सोवियत संघ पोलैंड के हिस्से पर कब्जा कर सकेगा।


इसके बाद सितंबर में एक तरफ से जर्मनी ने और दूसरी ओर से सोवियत ने पौलेंड पर हमला किया, जिसके बाद सोवियत ने बड़ी संख्या में युद्धबंदियों को अपने कब्जे में कर लिया, जिनका उसने बाद में नरसंहार कर दिया।


“ऐसा कहा गया कि इस नरसंहार का मुख्य कारण वर्ष 1920 में हुए सोवियत-पोलिश युद्ध का बदला लेना था, हालांकि यह भी कहा जाता है कि इस नरसंहार का असल उद्देश्य पौलेंड को नेतृत्वकर्ताओं, सैन्य अधिकारियों और बुद्धिजीवियों से विहीन करना था, जिसकी पूरी योजना कम्युनिस्ट तानाशाह जोसेफ स्टालिन ने बनाई थी।”


सोवियत अधिकारियों से जुड़े दस्तावेजों में मृतकों के बारे में कहा गया था कि ये सभी युद्धबंदी देशभक्ति से ओतप्रोत थे और सोवियत के शत्रु थे, जिनमें सुधार की कोई संभावना नहीं थी। इसीलिए इनकी हत्या की गई।


हालांकि आज 82 वर्षों के बाद भी इस नरसंहार से जुड़े अधिकांश तथ्य या तो सार्वजनिक नहीं किए गए हैं या तो नष्ट कर दिए गए हैं।


लेकिन एक बात की पुष्टि हो चुकी है कि कम्युनिस्ट तानाशाह जोसेफ स्टालिन ने अपनी सत्ता को मजबूत करने, दूसरे देश पर आक्रामण कर उसे कमजोर करने और वामपंथ की मूल विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए हजारों पौलेंड वासियों का नरसंहार किया, एवं नरसंहार के बाद भी दशकों तक अपनी वामपंथी नीति का पालन करते हुए इसका आरोप दूसरों पर मढ़ा।