छत्तीसगढ़ में निर्दोष ग्रामीणों को निशाना बना रहे माओ के सिपाही, बीते एक महीने में आधे दर्जन से अधिक ग्रामीणों की हत्याएं

पुलिस से इतर स्थानीय ग्रामीण हत्या के पीछे दबी जुबान से माओवादियों का हाथ होने की बात कह रहे हैं

The Narrative World    06-Mar-2023   
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छत्तीसगढ़ में माओवादियों (नक्सलियों/कम्युनिस्ट आतंकियों) का कहर निरंतर जारी है, इस क्रम में राज्य में माओवादियों द्वारा निर्दोष लोगों की निरंतर की जा रही हत्याओं का क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा, लक्षित कर के की जा रही इन हत्याओं के क्रम में माओवादियों ने बीते 48 घंटो में दो अलग अलग घटनाओं में दो और निर्दोष ग्रामीणों की बर्बरता से हत्या कर दी है।
 
पहली घटना राज्य के माओवाद प्रभावित जिले बीजापुर की है जहां जिले के भैरमगढ़ तहसील अंतर्गत शनिवार 4 मार्च को माओवादियों ने शिव मंदिर में पूजा कर रहे पुजारी पर हमला कर के उनकी बर्बरता से हत्या कर दी है, घटना शनिवार शाम 7 बजे की है, जानकारी के अनुसार पुजारी रामा कड़ती शनिवार को स्थानीय शिव मंदिर में आरती कर रहे थे तभी 3 लोगों ने कुल्हाड़ियों से मारकर उनकी हत्या कर दी।
 
अचानक हुए इस हमले में पुजारी रामा की मंदिर परिसर में ही मृत्यु हो जाने की सूचना है जिसके बाद रविवार सुबह उनके शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है, वहीं घटना के संदर्भ में पुलिस द्वारा अभी इसमें नक्सलियों का हाथ होने की पुष्टि नहीं की गई है।
 
इस संदर्भ में जानकारी देते हुए बीजापुर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चंद्रकांत गवरना ने बताया कि घटनास्थल से माओवादियों से संबंधित कोई भी प्रमाण प्राप्त नहीं हुए हैं इसलिए वर्तमान में पुलिस सभी दृष्टिकोणों से इसकी जांच आगे बढ़ा रही है, हालांकि पुलिस से इतर स्थानीय ग्रामीण हत्या के पीछे दबी जुबान से माओवादियों का हाथ होने की बात कह रहे हैं।
 
कोंडागांव में अपहरण के बाद ग्रामीण की हत्या
 
वहीं माओवादियों से संबंधित एक अन्य विकास में कोंडागांव जिले के पुंगरपाल थाने अंतर्गत माओवादियों द्वारा अपहरण के बाद एक ग्रामीण की निर्ममता से हत्या कर दी गई है, घटना पुंगरपाल थाने अंतर्गत तुमड़ीवाल गांव की बताई जा रही है जहां शनिवार को हथियारबंद माओवादीयों ने पहले तो धार्मिक आयोजन के लिए एकत्रित हुए 6 ग्रामीणों को अपहृत कर लिया फिर बाद में उनमें से एक कि निर्ममता से हत्या कर दी।
 
जानकारी है कि शनिवार को तुमड़ीवाल गांव में स्थानीय ग्रामीणों द्वारा एक धार्मिक आयोजन किया गया था तभी प्रतिबंधित माओवादी संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के सशस्त्र माओवादी गांव में आ घुसे और पुलिस मुखबिर बताते हुए ग्रामीणों को अपने साथ ले गए, जानकारी है कि उनमें से चार ग्रामीणों को माओवादियों ने पूछताछ के बाद छोड़ दिया जबकि दो लोगों को पुलिस मुखबीर बताते हुए छोड़ने से मना कर दिया।
 
जानकारी है कि उनमें से एक ग्रामीण किसी तरह अपनी जान बचाते हुए गांव लौट आया जबकि एक अन्य ग्रामीण पर माओवादियों ने मुखबिरी का आरोप मढ़ते हुए बर्बरता से उसकी हत्या कर दी, बाद ने उक्त ग्रामीण का शव जंगल के पास से बरामद कर लिए गया, वहीं मृतक का शव बरामद होने के बाद आस पास के जंगलो में खोजी अभियान तेज कर दिया गया है।
 
पुलिस मुखबिर होने का प्रपंच
 
बता दें कि छत्तीसगढ़ में बीते कुछ समय से माओवादीयों का आतंक अपने चरम पर दिखाई दे रहा है और राज्य में सुरक्षाबलों द्वारा धुर माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में चलाए जा रहे अभियानों एवं एक के बाद एक स्थापित किए जा रहे सुरक्षा कैंपो (एफओबी) से बौखलाए माओवादी निर्दोष ग्रामीणों एवं जनप्रतिनिधियों को लगातार निशाना बना रहे हैं।
 
इस क्रम में केवल बीते महीने में ही माओवादियों द्वारा लक्षित कर के किये गए हमलों में 8 सुरक्षाकर्मियों सहित कुल 13 लोगों की हत्याएं हुई हैं, सुरक्षाबलों के अतिरिक्त लक्षित कर के की गई ग्रामीणों की इन हत्याओं के पीछे माओवादी निर्दोष ग्रामीणों पर पुलिस मुखबिर होने का आरोप मढ़ते रहे हैं जबकि वास्तविकता यही है कि इनमें से ज्यादातर ग्रामीण सामान्य पृष्टभूमि वाले किसान एवं मजदूर हैं जिनकी हत्या केवल माओवादियों की हिंसक विचारधारा से भिन्न विचार रखने एवं क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम रखने की दृष्टि से की गई है।
 
विकास के समर्थक ग्रामीण एवं जनप्रतिनिधि हैं निशाने पर
 
ज्ञात हो कि माओवादियों द्वारा निशाना बनाये गये ज्यादातर ग्रामीण अथवा जनप्रतिनिधि या तो केवल इसलिए निशाना बनाये गए हैं क्योंकि वे माओवादियों के विकास विरोधी एजेंडे से इतर विकास के पक्षधर रहे हैं अथवा उनकी सनातन संस्कृति में आस्था रही है। कम से कम पिछले दो महीनों के भीतर राज्य में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चार पदाधिकारियों समेत बीजापुर में पुजारी की हुई हत्या तो इसी ओर संकेत करती है कि कथित रूप से समानता की क्रांति की डुगडुगी बजाकर हिंसा को बढ़ावा देने वाले माओवादियों के लिए मुखर हिंदू विरोध उनकी नीति का भाग है।
 
माओवादियों की इस नीति की पुष्टि बीते महीनों में उनके द्वारा जारी की गई विज्ञप्तियों से भी बखूबी समझी जा सकती है जिसके माध्यम से उन्होंने वर्तमान केंद्र सरकार को हिन्दू फासीवादी सरकार बताते हुए उनके विरुद्ध एकजुट होकर संघर्ष की बात कही है।
 
हालांकि इन सब के बीच दिलचस्प यह है कि धर्म को अफीम बताने वाली कम्युनिस्ट विचारधारा जहां एक ओर हिंदू धर्म एवं आस्थावान हिंदुओ को लक्षित कर के निशाना बना रही तो वहीं दूसरी ओर माओ के ये सिपाही कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के तर्ज पर किसी अन्य धर्म पर कोई भी प्रश्नचिन्ह नहीं उठाते आश्चर्यजनक तो यह है कि यह स्थिति उस राज्य की है जहां ईसाई मिशनरियों द्वारा दशकों से अवैध धर्मांतरण को धड़ल्ले से बढ़ावा दिया जाता रहा है, क्रांति की आड़ में पर्दे के पीछे की यह जुगलबंदी इनके स्याह चेहरे को ही उजागर करती है।