पॉर्क्यूपाइन डॉक्ट्रिन - चीन के विरुद्ध ताइवान की 'साही रणनीति'

इस रणनीति के माध्यम से ताइवान चीन के लिए अपने विरुद्ध किसी भी तरह के युद्ध को इतना कठिन और महंगा बना देना चाहता है कि जिससे चीन युद्ध के लिए ही ना सोचे। इसके तहत ताइवान ने हवा में मार करने वाले, टैंकों और जहाजों को भी नष्ट कर देने वाले हथियारों और गोला बारूद के व्यापक भंडार को इकट्ठा कर लिया है। इन हथियारों में अत्याधुनिक मानव रहित हवाई वाहन और मोबाइल तटीय रक्षा क्रूज मिसाइल जैसे कम लागत वाले युद्धपोत भी शामिल हैं।

The Narrative World    03-May-2023   
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साही नाम का एक जीव होता है, जिसे अंग्रेजी में कहते हैं 'पॉर्क्युपाइन', यह जीव मुख्यतः एशिया महाद्वीप में पाया जाता है। इस जीव की खास बात यह है कि इसके शरीर के बाहरी हिस्से में हजारों की संख्या में नुकीले कांटे होते हैं, जिनसे यह अपनी रक्षा करता है। दरअसल यह कांटे उसके बाल होते हैं।


किसी अन्य जानवर के द्वारा हमले की आशंका होते ही साही के ये सुई नुमा बाल सीधे खड़े हो जाते हैं, जिससे आक्रमण करने वाला जानवर खुद घायल हो जाते हैं। इसके अलावा एक दिलचस्प बात यह भी है कि साही कभी किसी अन्य जानवर पर हमला नहीं करते, लेकिन यदि कोई जानवर उनपर हमला करे तो साही के कांटों की चपेट में आने से उनकी मौत तक हो जाती है।


चलिए, काफी बात हो गई साही पर, अब बात करते हैं कैसे इस जीव से जुड़ी रणनीति के सहारे चीन से मुकाबला करने के लिए ताइवान ने कमर कस ली है। दोनों देशों के मध्य तनाव काफी अधिक बढ़ गया है।

“ऐसे दौर में दुनियाभर के विशेषज्ञों का कहना है कि ताइवान चीन के विरुद्ध 'साही रणनीति' का उपयोग कर रहा है। यह रणनीति ताइवान के द्वारा वर्ष 2017 से अपनाई गई है।”


इस रणनीति के माध्यम से ताइवान चीन के लिए अपने विरुद्ध किसी भी तरह के युद्ध को इतना कठिन और महंगा बना देना चाहता है कि जिससे चीन युद्ध के लिए ही ना सोचे। इसके तहत ताइवान ने हवा में मार करने वाले, टैंकों और जहाजों को भी नष्ट कर देने वाले हथियारों और गोला बारूद के व्यापक भंडार को इकट्ठा कर लिया है। इन हथियारों में अत्याधुनिक मानव रहित हवाई वाहन और मोबाइल तटीय रक्षा क्रूज मिसाइल जैसे कम लागत वाले युद्धपोत भी शामिल हैं।


चीन की सेना काफी आधुनिक और विशाल है, लेकिन बावजूद इसके ताइवान ने अपनी रक्षा प्रणाली के लिए ऐसे उपकरण एवं हथियारों का चुनाव किया है जो चीनी सेना को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचा सकते हैं।


ताइवान ने बड़ी संख्या में स्टील्थ फास्ट अटैक एयर क्राफ्ट और मिनिएचर मिसाइल असॉल्ट बोट जैसे उपकरणों को एकत्रित कर लिया है, जो कीमत में सस्ते हैं लेकिन युद्धकाल में अत्यधिक प्रभावी हो सकते हैं। इसके अलावा अभी भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए ताइवान ने समुद्री विस्फिटकों के जाल को बिछा लिया है, जो चीनी नौसेना के किसी भी तरह की घुसपैठ को असफल बना सकते हैं।


दरअसल चीन जिस प्रकार से बीते कुछ समय से अपने युद्धक विमानों के माध्यम से ताइवान की वायुसीमा में घुसपैठ कर रहा है, वह उसकी पुरानी युद्ध नीति का ही उदाहरण है। चीनी रणनीतिकार 'सुन त्ज़ू' के द्वारा लिखी पुस्तक 'आर्ट ऑफ वॉर' की रणनीतियों का उपयोग चीन दशकों से करता आ रहा है।


इस रणनीति के तहत विरोधी पक्ष को किसी अन्य क्षेत्र में उलझा कर अपने उद्देश्य की पूर्ति करने की बात कही गई है। इसी रणनीति के तहत चीन बार-बार ताइवान समेत दुनिया का ध्यान अपनी वायुसेना की ओर रखना चाहता है, जबकि सच्चाई यह है कि यदि चीन ताइवान पर कभी कोई हमला करेगा तो उसकी नौसेना मुख्य भूमिका में होगी, वायुसेना नहीं।


चीन की इस रणनीति को समझकर ताइवान ने अपने समुद्री तटों में 'साही के बाहरी आवरण के कांटों' की तरह घातक हथियारों को जमा रखा है। यह ताइवान का सबसे बाहरी क्षेत्र है। इसके अलावा ताइवान ने शहरों में छापामार युद्ध की रणनीति पर भी अपनी योजना बनाई है। ताइपे में कुछ भवनों का निर्माण ऐसा किया गया है कि इसे कभी भी हालातों के अनुसार बैरक में बदला जा सकता है।


इन रणनीतियों का सीधा सा अर्थ यही निकलता है कि, ताइवान भी 'साही' की भांति कभी किसी पर हमला नहीं करेगा, लेकिन चीन जैसा कोई जंगली जानवर उस पर यदि हमला करने का प्रयास करता है तो वह स्वयं ही 'साही' के कांटों से या तो घायल हो जाएगा या मारा जाएगा।


दरअसल इस 'साही रणनीति' या अंग्रेजी में कहे तो 'पॉर्क्युपाइन डॉक्ट्रिन' को सबसे पहले वर्ष 2008 में अमेरिकी नौसेना युद्ध महाविद्यालय के शोध प्राध्यापक विलियम एस मुरे ने दुनिया के सामने पेश किया था। उनके अनुसार यह युद्धनीति कमजोर राष्ट्रों के लिए उपयोगी है, जिनपर शक्तिशाली राष्ट्रों के द्वारा युद्ध का खतरा मंडरा रहा है।


इस रणनीति को कुछ इस तरह से बनाया गया है कि यदि शक्तिशाली राष्ट्र किसी कमजोर राष्ट्र पर आक्रमण करता है तो उसे हराने में उसके पसीने छूट जाए, क्योंकि इस रणनीति के तहत कमजोर राष्ट्र का रक्षातंत्र अपनी शक्ति के बजाय शत्रु की कमजोरी पर अधिक ध्यान रखता है और उसे ही निशाना बनाता है।


इन रणनीति में कुल तीन आवरण हैं, जिसमें से पहला खुफिया जानकारी एकत्रित कर यह सुनिश्चित करता है कि रक्षा बल युद्ध के लिए तैयार है कि नहीं। इसके बाद दूसरा आवरण अमेरिकी सहायता का उपयोग कर शत्रु के साथ हवा एवं जल क्षेत्र में गुरिल्ला युद्ध को अंजाम देता है। इस रणनीति का अंतिम आवरण द्वीप के भूगोल और उसकी जनसंख्या पर निर्भर करता है।


यही कारण है कि अमेरिका ने खुलकर ताइवान का साथ देने का फैसला किया हुआ है, और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ताइवान के द्वारा अपनाई जा रही 'साही रणनीति' में अमेरिका का दिमाग भी शामिल है।