छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में चीनी माओवाद की विचारधारा को अपनाकर हिंसा करने वाले नक्सली हमेशा खुद को किसानों, मजदूरों, वनवासियों का हितैषी बताते हैं। ये माओवादी-नक्सली तथाकथित शोषितों-वंचितों की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं।
इन्हीं दावों के माध्यम से इन्होंने दंडकारण्य को अपना गढ़ बनाकर यहां के भोले-भाले जनजातियों को आतंक के साएं में रहने को मजबूर कर रखा है।
इन माओवादी आतंकियों ने तो काफी पहले ही अपना वास्तविक चरित्र दिखाते हुए अपनी आतंकी गतिविधियों से यह बता दिया था कि उनके विचार को ना मानने वालों को वो जीने नहीं देंगे।
माओवादियों के इस आतंक का सबसे बुरा मार जनजाति समाज ने झेला है, क्योंकि माओवादियों ने सर्वाधिक इन्हें ही अपना निशाना बनाया है।
छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में माओवादी अपना आतंक फैलाते नजर आ रहे हैं। हाल ही में माओवादियों ने अपनी आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी करते हुए जनजातीय ग्रामीणों को ना सिर्फ डराया धमकाया है, बल्कि हाल ही के समय में कई जनजातीय ग्रामीणों की हत्या भी माओवादियों ने की है।
माओवादी आतंकियों ने बीते 14-15 जुलाई की रात को घोर माओवाद से प्रभावित क्षेत्र बीजापुर में एक जनजाति युवक की हत्या कर दी। माओवादियों ने तिमेनार गांव के निवासी सुंदर ओयाम को पहले घर से निकाला और फिर उसके घर वालों के सामने ही हथियार से गला रेतकर उसकी हत्या कर दी।
इस दौरान भारी संख्या में माओवादी गांव पहुँचे थे, और वारदात को अंजाम देने के बाद जंगल की ओर भाग निकले। मिरतुर थानाक्षेत्र के अंतर्गत माओवादियों ने इस घटना को अंजाम दिया है।
वहीं परिजनों के सामने ही जनजाति युवक की हत्या के बाद परिवार के सदस्यों एवं ग्रामीणों के भीतर भय का माहौल व्याप्त हो चुका है। परिजन इतना डरे हुए थे कि उन्होंने पुलिस को भी इसकी जानकारी नहीं दी थी।
माओवादी आतंकियों ने दशकों तक जो नैरेटिव बनाया था कि 'नक्सली जल-जंगल-जमीन के हक़ और जनजातियों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं', उस नैरेटिव की सच्चाई पूरी तरह से उजागर हो चुकी है।
माओवादी जिन जनजातियों के हितों के लिए लड़ने की बात करते हैं, उन्हीं जनजातियों के खून से वो अपने संगठन को सींच रहे हैं। हैवानियत की हद तो यह है कि दशकों पहले शुरू हुआ यह हिंसक सिलसिला अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है।
कुछ दिनों पूर्व माओवादियों ने सुकमा जिले के बुरकापाल क्षेत्र के 10 जनजातीय ग्रामीणों का अपहरण कर लिया था, जिन्हें माओवादियों बंधक बनाकर रखा था।
इन ग्रामीणों को छुड़वाने के लिए जनजातीय ग्रामीणों समेत समाज ने भी माओवादियों से अपील की, लेकिन माओवादियों ने इनमें से 2 अपहृत ग्रामीणों की हत्या कर दी।
इसके अतिरिक्त बंधक बनाने के बाद छोड़े गए अन्य 8 ग्रामीणों को ऐसी धमकी देने के बाद रिहा किया, कि वे आज भी डर के साएं में जी रहे हैं।
इससे पहले माओवादियों ने जून के माह में बीजापुर जिले के 2 जनजातीय ग्रामीणों की हत्या की थी। इनमें से एक जनजातीय ग्रामीण राजनीतिक रूप से क्षेत्र में सक्रिय था।
माओवादी आतंकियों ने छत्तीसगढ़ में ही बीते वर्ष (2022) में 19 ग्रामीणों की हत्या की थी, जिसमें से 15 से अधिक जनजातीय समाज से थे। वहीं 2021 में यह आंकड़ा 14 का था, जिसमें अधिकांश जनजाति समाज से थे।
इसके अलावा ग्रामीणों की सुविधा के लिए बनने वाली सड़कों पर माओवादी गड्ढा का देते हैं, विस्फोट कर उड़ा देते हैं, सुरक्षा में लगे जवानों पर हमले करते हैं, और पूरे क्षेत्र में भय का माहौल बरकरार रखने की कोशिश करते हैं।
निर्माण कार्य में लगे वाहनों में आगजनी से लेकर जनजातीय ग्रामीणों की हत्या तक, माओवादी इस क्षेत्र में अपनी विभिन्न आतंकी घटनाओ को अंजाम देते हैं।
यह सभी संकेत इस बात को स्पष्ट करते हैं कि गरीबों,मजदूरों और वनवासियों की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले नक्सली वास्तव में उनका शोषण करते हैं, उन्हें अपनी हिंसा का शिकार बनाते हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो बस्तर समेत देश के सभी माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में माओवादियों ने स्थानीय जनजाति ग्रामीणों का जीना दूभर कर रखा है और उनके कारण कई स्थानीय वनवासी ग्रामीण बेमौत मारे जा रहे हैं।